तिल-तिल कर जमींदोज होता जोशीमठ
उत्तराखंड के जोशीमठ में जो हो रहा है वह किसी त्रासदी से कम नहीं है। सैकड़ों मकानों में दरारें आ रही हैं। वहां की जमीन धंसने लगी हैं। आलम ये है कि अब जोशीमठ के लोग गांवों से पलायन को मजबूर हो गए हैं। सैकड़ों परिवारों को वहां से कहीं और शिफ्ट किया जा रहा है। बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे कुछ प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों के प्रवेश द्वार जोशीमठ के सैकड़ों घरों में दरारें आ गई हैं। जोशीमठ शहर पर जमीन में समाने का खतरा हर घंटे के साथ बढ़ता जा रहा है। इस पूरे क्षेत्र को 'सिंकिंग ज़ोन' करार दिया गया है। ऐसे में सभी के जहन में एक ही सवाल उठा रहा है कि आखिर जोशीमठ में ऐसा हो क्यों रहा है ?
‘गेटवे ऑफ हिमालय’ के नाम से मशहूर जोशीमठ को ज्योतिर्मठ के नाम से भी जाना जाता है। यह 6150 फीट (1875 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है जो बद्रीनाथ जैसे तीर्थ केंद्रों का प्रवेश द्वार भी है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख पीठों में से एक है। हेमकुंड साहिब, औली, फूलों की घाटी आदि स्थानों पर जाने के लिए यात्रियों को इसी जोशीमठ से होकर गुजरना पड़ता है। 1970-71 की बाढ़ के बाद जोशीमठ में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ने लगी। तब उत्तराखंड अलग राज्य नहीं था, बल्कि ये यूपी का ही हिस्सा हुआ करता था। उस समय तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। बताया जाता है कि गढ़वाल के कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में भूगर्भीय अध्ययन के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने अध्ययन में पाया कि जोशीमठ ग्लेशियर द्वारा लाई गई मिट्टी पर बसा है। लिहाजा ये बहुत अधिक मजबूत चट्टान नहीं है। ये भूस्खलन वाला क्षेत्र ही है। उस वक्त ये कहा गया था कि यदि जोशीमठ को स्थाई रखना है, तो जोशीमठ में चट्टानों के साथ छेड़छाड़ न की जाए और जोशीमठ में भारी निर्माण कार्य न किए जाएं। साथ ही, भूस्खलन की घटनाओं को रोकने के लिए ढलानों पर पौधरोपण किया जाएं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नतीज़न आज जोशीमठ जमींदोज़ होने की कगार पर है।
विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने का मुख्य कारण एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना बताया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार यह एक बेहद ही गंभीर चेतावनी है, ऐसे में पुरानी स्थिति को फिर से बहाल कर पाना भी मुश्किल होगा। बिना किसी योजना के बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास हिमालयी पारिस्थिति की तंत्र को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति और भी कमजोर बना रहा है। बताया जाता है कि जोशीमठ में जमीन धंसने की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी जब जोशीमठ के निचले इलाके में जयप्रकाश कंपनी ने काम शुरू किया। उस समय एक सड़क का निर्माण किया गया था। 90 के दशक में इसी निर्माण कार्य के बाद से समस्याएं शुरू हुई। इसके बाद एनटीपीसी की जल विद्युत परियोजना शुरू हुई। तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना भी शुरू हुई। 2010 में जब सुरंग में एक मशीन फंस गई तब उस सुरंग से 600 लीटर पानी प्रति सेकंड निकलने लगा, जिसके बाद पर्यावरण वैज्ञानिकों ने कहा कि जोशीमठ में इस सुरंग से असर पड़ रहा है। हालांकि एनटीपीसी के एक बयान के अनुसार 'एनटीपीसी द्वारा बनाए गए सुरंग जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजरती है। यह टनल एक टनल बोरिंग मशीन द्वारा खोदी गई है। वर्तमान में कोई धमाका भी नहीं किया जा रहा है। सुरंग नदी के पानी को संयंत्र की टरबाइन तक ले जाने के लिए है।
ड्रेनेज व सीवेज व्यवस्था भी जमीन धंसने का कारण
पिछले साल 16 से 19 अगस्त के बीच राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की एक टीम ने जोशीमठ का सर्वेक्षण किया था। शोध के बाद उन्होंने नवंबर माह में 28 पृष्ठों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसमें उन्होंने माना था कि जोशीमठ के नीचे अलकनंदा में कटाव के साथ ही सीवेज और ड्रेनेज की व्यवस्था न होने से पानी जमीन में समा रहा है। इससे जमीन धंस रही है।
अनियंत्रित निर्माण कार्यों का बोझ
जून 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसने अप्रैल 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) से ऊपर के क्षेत्रों को बांध परियोजनाओं से मुक्त रखने, पहाड़ों में वन-कटान, सुरंग निर्माण आदि के मद्देनजर क्षेत्र में हाइड्रो-जियोलॉजिकल प्रभावों का अध्ययन करने की सिफारिश की गई थी। उस दौरान एनजीटी, हाईकोर्ट और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) सभी ने बेतरतीब विकास गतिविधियों को ‘रेसिपी फॉर डिसास्टर’ घोषित किया था। इसके बाद वर्ष 2014 में उत्तराखंड सरकार ने अपना ‘क्लामेट चेंज एक्शन प्लान’ जारी किया। इसमें धारण क्षमता के आधार पर ही पर्यटन, तीर्थाटन की नियमावली जारी की गई।
अलकनंदा नदी में हो रहा भू-कटाव
पिछले साल विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में यह तथ्य भी सामने आया था कि जोशीमठ शहर के नीचे अलकनंदा नदी से हो रहा कटाव भी खतरनाक साबित हो सकता है। इस वजह से भू धंसाव हो सकता है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की भूस्खलन वैज्ञानिक डॉ. स्वप्नामिता चौधरी भी वर्ष 2006 में अपने शोध में इस बात को स्वीकार कर चुकी हैं।
तपोवन विष्णुगाड परियोजना भी हो सकता है कारण
पिछले साल जुलाई में शोध करने वाले प्रो. एसपी सत्ती का कहना है कि 24 दिसंबर 2009 में हेलंग की तरफ से लगभग तीन किमी की दूरी पर इस सुरंग में टनल बोरिंग मशीन फंस गई थी। उसके कारण सेलंग गांव से तीन किमी ऊपर पानी के भूमिगत स्रोत को उसने छेड़ दिया। इसके बाद लगभग एक माह तक वहां पानी रिसता रहा। उन्होंने आशंका जताई कि यह पानी भी जोशीमठ के धंसने की वजह हो सकता है। इसके अलावा तपोवन में पिछले साल जो त्रासदी आई थी, उसके बाद सुरंग में पानी घुस गया था। संभव है कि यह पानी अब नए स्रोत के जरिए बाहर आ रहा है।
इस गांव से हुई जमीन धंसने की शुरुआत
जोशीमठ से करीब 8 किमी. ऊपर जाने पर 7000 फुट की ऊंचाई पर सुनील नाम का गांव है। सबसे पहले इसी गांव में जमीन धंसने की शुरुआत हुई थी। जोशीमठ की घटनाओं से महीनों पहले यहां के घरों की दीवारों में दरारें दिखना शुरू हो गई थीं। पिछले कई दिनों में ये दरारें इतनी बड़ी हो गई कि अब घर के घर टूट रहे है। पहाड़ की ढलान पर बसा यह गांव खत्म होने के कगार पर है। यहां रहने वाले कुछ परिवारों को शिफ्ट कर दिया गया है। जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं के चलते अब तक लगभग 723 घरों में दरारें पड़ चुकी हैं। 131 परिवारों को अस्थायी रूप से विस्थापित किया जा चुका है। इनमे से 10 परिवार ऐसे है जिनके आशियाने पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं ।
मैन्युअल रूप से धराशाई किया जाएगा
जोशीमठ में जिन घरों में दरारें आ चुकी हैं और जो रेड जोन में आ गए हैं, उन्हें जल्द ही गिराने का कार्य शुरू किया जायेगा। स्थानीय लोगों और होटल मालिकों की तरफ से सरकार की इस कार्रवाई का लगातार विरोध किया गया है। होटल संचालकों की तरफ से मुआवजे की मांग सरकार से की जा रही है। दरअसल ‘माउंट व्यू' और ‘मालारी इन' नाम के होटलों को गिराने का फैसला किया गया था। इन दोनों ही होटलों में बड़ी दरार आ गयीं थी और दोनों एक-दूसरे की ओर झुक गये थे। इससे आसपास की इमारतों को खतरा पैदा हो गया था। विरोध प्रदर्शन के बाद प्रशासन ने फैसला किया है कि किसी भी इमारत को गिराने के लिए बुलडोजर जैसी किसी भी हैवी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, जिससे जमीन के हिलने या झटके आने का खतरा हो। इमारतों-घरों को तोड़ने के लिए हथौड़े, ड्रिलर्स और अन्य सामान उपकरणों का इस्तेमाल किया जाएगा।
ये है वर्तमान स्थिति
- बीआरओ ने हेलंग बाईपास का काम रोका
- एनटीपीसी पावर प्रोजेक्ट का काम रुका
- जोशीमठ-औली रोपवे सेवा बंद
- रोपवे के टावर नंबर 1 पर जमीन धंसी
- दो हजार प्री-फैब्रिकेटेड मकान बनाने की तैयारी
- एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम अलर्ट
प्री-फैब्रिकेटेड भवन तैयार करने के आदेश
भू-धंसाव की समस्या के समाधान के लिए जोशीमठ का जियो टेक्निकल और जियो फिजिकल अध्ययन कराया जाएगा। जिन क्षेत्रों में घरों में दरारें नहीं हैं वहां भवन निर्माण के लिए गाइडलाइंस जारी की गयी है। इस क्षेत्र का हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन भी कराया जाएगा। जिला प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को शिफ्ट करने के लिए एनटीपीसी और हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (एचसीसी) को 2000 प्री-फैब्रिकेटेड भवन तैयार करने के आदेश दिए हैं।
1.5 लाख की अंतरिम सहायता
जोशीमठ में प्रभावित परिवारों को तात्कालिक तौर पर ₹1.5 लाख की धनराशि अंतरिम सहायता के रूप में दी जा रही है। उत्तराखंड सरकार का कहना है कि भू-धंसाव से जो स्थानीय लोग प्रभावित हुए हैं उनको मार्केट रेट पर मुआवजा दिया जाएगा। लोगों को पुनर्वास के लिए 45 करोड़ रुपये की धनराशि जारी कर दी गई है।