जेसीसी के बाद कम होने के बजाए बढ़ गई सरकार की मुश्किलें | Himachal News
सरकार को उम्मीद थी कि जेसीसी की बैठक के बाद स्थिति बेहतर होगी। आर्थिक व्यय ज़रूर बढ़ेगा पर कर्मचारियों को साधने में कामयाबी मिलेगी। कर्मचारी भी खुश होंगे और विरोधी भी खामोश हो जाएंगे। पर हुआ कुछ और। जिन कर्मचारियों को सरकार ने सौगातें दी वो तो आधे अधूरे संतुष्ट हुए पर जिनके लिए सरकार कुछ नहीं कर पाई उनका गुस्सा दोगुना हो गया। प्रदेश में चार साल के लम्बे अंतराल के बाद भाजपा सरकार द्वारा कर्मचारियों के लिए जेसीसी की बैठक का आयोजन किया गया। कर्मचारियों की उम्मीदें आसमान छू रही थी। कर्मचारियों को लगा कि जो पिछले चार साल में नहीं हो पाया वो शायद अब हो जाए। उनकी सभी मांगे शायद सरकार पूरी कर दे। सरकार ने कोशिश भी की। कई मांगों को पूरा करने की घोषणा की गई। जेसीसी बैठक में मुख्यमंत्री ने पंजाब की तर्ज पर कर्मचारियों के लिए बहुप्रतीक्षित नए वेतनमान की घोषणा की, अनुबंध कर्मचारियों के नियमितीकरण की अवधि भी तीन वर्ष से घटाकर दो वर्ष करने की घोषणा हुई, सभी पेंशनरों और पारिवारिक पेंशनभोगियों को एक जनवरी 2016 से संशोधित पेंशन और अन्य संबंधित लाभ की घोषणा जैसी कई अन्य छोटी बड़ी मांगें पूरी करने की घोषणाएं हुई। पर कर्मचारी पूरी तरह संतुष्ट हुए ऐसा बिलकुल नहीं कहा जा सकता। तर्क दिए गए की जिस छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बात सरकार ने कही है उसमें तो पहले ही पांच साल का विलंब हो चुका है। ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू न कर सिर्फ 2009 की नोटिफिकेशन की घोषणा करना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है और अनुबंध काल घटाने की घोषणा तो भाजपा अपने 2017 के दृष्टि पत्र में ही कर चुकी थी। जेसीसी की बैठक से लम्बे समय से नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता की मांग कर रहे कर्मचारी निराश घर लौटे, करुणामूलक आश्रितों का अनशन भी नहीं टूटा और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए भी नीति नहीं बन पाई। बड़ा बवाल तो उनकी तरफ से किया गया जिनकी मांगों का ज़िक्र तक मुख्यमंत्री करना भूल गए। बैठक के बाद सरकार के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले भारतीय मजदूर संघ के बैनर तले प्रदेश के आशा वर्करों, आंगनबाड़ी वर्करों और कई संगठनों ने शिमला में विशाल रैली निकाली और सचिवालय गेट पर घंटों जमकर प्रदर्शन किया। पीस मिल कर्मचारी हड़ताल पर बैठ गए और यहां तक की पुलिस कर्मचारियों ने भी मुख्यमंत्री आवास का घेराव कर लिया। यानी की मोटे तौर पर देखा जाए तो सरकार की मुश्किलें कम होने के बजाए और अधिक बढ़ गई। अब मुख्यमंत्री द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पीस मिल वर्कर समेत असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों व अन्यों की मांगों पर गंभीरता से विचार करने के लिए सभी विभागों को इन मांगों को अध्ययन करने के निर्देश दिए गए। पुलिस के कर्मचारियों की समस्या का हल निकालने की बात भी मुख्यमंत्री द्वारा कही गई है। पर असल सवाल ये है कि इन समस्याओं के हल के लिए सरकार आखिर वित्तीय सहायता लाएगी कहां से।
आर्थिक तंगी बड़ी चुनौती
कर्मचारियों की नाराज़गी मात्र ही सरकार की मुख्य समस्या नहीं है। सरकार ने कर्मचारियों की जेसीसी बैठक तो करवा ली, लेकिन बैठक में लिए गए फैसलों को धरातल पर उतारने के लिए 18 से 20 हजार करोड़ रुपये की रकम जुटाना 62 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबी सरकार के लिए चुनौती होगा। इन फैसलों से इतर सड़कों पर उतर चुके असंतुष्ट कर्मचारियों और कामगारों को न्यायोचित वित्तीय लाभ देना भी आसान नहीं होगा। अगले वित्तीय वर्ष में केंद्र से लगभग 12 हजार करोड़ रुपये कम ग्रांट मिलेगी। राजस्व घाटा अनुदान, जीएसटी प्रतिपूर्ति आदि में कटौती हो रही है। नए वेतन अगर छह हजार करोड़ रुपये चाहिए तो इसके एरियर के लिए 12 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा रकम देनी होगी। एरियर की ज्यादा किश्तें बनाई तो भी कर्मचारी संतुष्ट नहीं होंगे। चुनावी साल से पहले पंजाब के बाद हिमाचल को नए वेतनमान देने की बाध्यता है। ऐसे में सरकार ये सब कैसे मैनेज करती है ये भी बड़ा सवाल है। सरकार कर्मचारियों की मांगें पूरी करनी की कोशिश कर रही है मगर इन मांगों को पूरा करने के लिए सरकार के पास संसाधनों की कमीं है ये स्पष्ट है। हर कर्मचारी को संतुष्ट कर पाना संभव भी नहीं लगता।
सरकार नहीं कर्मचारी हितेषी
कर्मचारियों की बढ़ती नाराज़गी के चलते विपक्ष को सरकार के खिलाफ मुद्दा मिल गया है। कांग्रेस के नेताओं के अनुसार मुख्यमंत्री कर्मचारी हितैषी नहीं है और जेसीसी की बैठक से कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं हुआ है। कर्मचारियों को ये यकीन दिलाने की कोशिश की जा रही है की जो अब तक नहीं हुआ वो आगे भी नहीं होगा। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता व शिलाई से विधायक हर्षवर्धन चौहान ने तो ये तक कह दिया की जेसीसी की बैठक के बाद अराजकता फ़ैल गई है। कर्मचारियों के मुद्दों पर अपनी सियासी रोटियां खूब सेकी जा रही है। खैर वजह कोई भी हो मगर कर्मचारियों की बात हो रही है ये बड़ी बात है । उम्मीद्द है कि अब इस सियासी दबाव के बीच कर्मचारियों का बेड़ा पार हो जाए।
- मुख्य लंबित मांगे
- -पुरानी पेंशन बहाल की जाए
- - नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए
- - करुणामूलक आश्रितों को वन टाइम सेटलमेंट के तहत नौकरियां दी जाए
- - पुलिस कॉन्स्टेबलों के प्रोबेशन पीरियड को घटाने की मांग
- - एचआरटीसी के पीस मिल कर्मचारियों को अनुबंध पर लाने की मांग
- - आशा वर्करों, आंगनबाड़ी, आउटसोर्स, सिलाई-कढ़ाई कर्मचारियों को सरकार के नियमित कर्मचारियों की तर्ज पर वित्तीय लाभ देने की मांग
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