पुरानी पेंशन बहाली : सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है
" वन विभाग में 35 साल सेवाएं देने के बाद मंडी के अमर सिंह वर्ष 2020 में रिटायर हुए। लगा पेंशन के सहारे बुढ़ापा स्वाभिमान के साथ गुजर जायेगा, पर जब हाथ में 1128 रुपये की पेंशन आई तो मानों पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ये ही कारण है कि अमर सिंह जैसे हजारों -लाखों मुलाजिम नई पेंशन योजना का विरोध करते है। वर्ष 1986 में डेली वेज पर भर्ती हुए अमर सिंह 2007 में नियमित हुए थे। नई पेंशन योजना का विरोध अमूमन देश के हर राज्य में हो रहा है और ये एक बड़े आंदोलन में तब्दील होता दिख रहा है। सरकारी मुलाजिमों को शिकवा ये भी है कि उन पर नई पेंशन थोपने वाले नेता खुद पुरानी पेंशन का सुख भोग रहे है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कालजयी पंक्ति है कि 'सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है'...इसी भावना और आशावाद के साथ लाखों मुलाजिम देश के अलग -अलग हिस्सों में पुरानी पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे है। "
बेरोजगारी, महंगाई, बिजली, किसान, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, भ्रष्टाचार और राष्ट्रवाद; ये तमाम वो मुद्दे है जिनकी बिसात पर दशकों से देश में चुनाव लड़े जाते रहे है। पर बीते कुछ वक्त में इस फेहरिस्त में एक नए मुद्दे की एंट्री हुई है। अब पुरानी पेंशन की बहाली भी चुनाव के दौरान बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। देश के 5 राज्यों में इस वक्त चुनाव का माहौल है और अन्य मुद्दों के साथ-साथ पुरानी पेंशन का मुद्दा भी खूब गूँज रहा है। कहीं राजनैतिक दल पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा कर रहे है, तो कहीं इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे संगठन मुखर है। पंजाब में तो मुलाजिमों द्वारा बाकायदा घरों के बाहर तख्ती लटकाकर नेताओं को स्पष्ट सन्देश दिया जा रहा है कि 'मेरे घर वही वोट मांगने आएं, जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएं।' यूँ तो ये मुद्दा सभी राजनैतिक दलों के गले की फांस बनता दिख रहा है लेकिन यदि ये आंदोलन प्रखर होता है तो मुमकिन है कि सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हो। दरअसल केंद्र में तो भाजपा की सरकार है ही, देश के अधिकांश राज्यों में भी भाजपा ही सत्ता में है।
साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव करते हुए नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) को लॉन्च किया। उन सभी सरकारी मुलाजिमों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। केंद्र की तर्ज पर राज्यों ने भी सरकारी क्षेत्र में नियुक्त होने वाले कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू कर दी। सिर्फ पश्चिम बंगाल ही देश में एकमात्र अपवाद है। शुरुआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब नई पेंशन स्कीम के नुकसान समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। धीरे- धीरे सभी राज्यों में कर्मचारी लामबंद होने लगे और संगठन बनाकर नई पेंशन स्कीम का विरोध शुरू हो गया। अब आहिस्ता- आहिस्ता ये विरोध आंदोलन का स्वरूप लेता दिख रहा है। फिलहाल देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली का मसला गूंजता दिख रहा है। कहते है दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, जाहिर है हर राजनैतिक दल उत्तर प्रदेश में बेहतर करने को प्रयासरत है। यहाँ भी मुलाजिमों का वोट हथियाने के लिए राजनैतिक दल पुरानी पेंशन की बहाली के ख्वाब दिखा रहे है। यूँ तो उत्तर प्रदेश में जाति -धर्म, विकास और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे सरकार बनाते -गिराते रहे है लेकिन अगर कर्मचारी फैक्टर चला तो समीकरण बन-बिगड़ सकते है।
यूपी के अलावा पंजाब और उत्तराखंड में पुरानी पेंशन की बहाली एक बड़ा मुद्दा है। लगातार कर्मचारी पुरानी पेंशन की गुहार राजनीतिक दलों से लगा रहे है। यदि यहां भी राजनीतिक दल पेंशन का समर्थन करते है तो सत्ताधारी पार्टी को बैक फुट पर लाने का काम पुरानी पेंशन कर सकती है। हालांकि ये पहली बार नहीं जब राजनीतिक दलों ने अपने मेनिफेस्टो में पुरानी पेंशन बहाली को शामिल किया हो। इससे पहले भी कई बार इसे मुद्दा बनाया गया मगर विडंबना ये है कि अब तक पश्चिम बंगाल के अलावा किसी भी अन्य राज्य में पुरानी पेंशन नहीं दी जाती। कई राज्यों में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद भाजपा पुरानी पेंशन को बहाल नहीं करवा पाई जिसकी टीस कर्मचारियों में है। उधर, पंजाब में कांग्रेस की चन्नी सरकार हर वर्ग के लिए दिल खोलकर घोषणाएं करती दिखी है लेकिन पुरानी पेंशन पर खामोश है। यदि आम आदमी पार्टी या कोई अन्य दल इस मुद्दे पर मुलाजिमों को आश्वस्त करता है तो इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। गोवा और मणिपुर में भले ही पुरानी पेंशन को लेकर आंदोलन संगठित न हो, पर कम ही सही इसका असर जरूर देखने को मिल सकता है।
पंजाब : कांग्रेस ने किया था वादा, पर पूरा नहीं किया
पिछले कई साल से पंजाब में कर्मचारी पुरानी पेंशन की मांग कर रहे है। पेंशन की मांग करने वाले एक संगठन, एनपीएस मुलाजिम पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष कमेटी ने तो एनपीएस वोटर जागरूकता पोस्टर अभियान की शुरुआत कर दी है। पंजाब के कर्मचारियों का कहना है कि अब तक किसी राजनीतिक दल ने चुनाव मेनिफेस्टो में पुरानी पेंशन की मांग को शामिल नहीं किया है और इसलिए यह पोस्टर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। हर पोस्टर में लिखा है कि " मैं साल 2004 के बाद भर्ती नई पेंशन स्कीम से पीड़ित सरकारी मुलाजिम हूँ। मेरे घर वही वोट मांगने आए, जो पुरानी पेंशन बहाल करवाए।" ये अभियान पंजाब चुनाव पर भी खासा असर डाल सकता है। पंजाब में सिर्फ कर्मचारी ही नहीं आम आदमी पार्टी के नेता भी पुरानी पेंशन को लेकर सरकार पर हमला बोल रहे है। आप का कहना कि पंजाब सरकार पेंशन भोगियों की कमाई पर सांप की तरह बैठी हुई है। आप के वरिष्ठ नेता और विपक्ष के नेता हरपाल सिंह ने आरोप लगाया कि पंजाब प्रदेश कांग्रेस ने 2017 में कांग्रेस सरकार बनने पर पंजाब में पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने का वादा किया था और राजनीतिक लाभ के लिए कर्मचारियों और पेंशन भोगियों के इस मुद्दे का इस्तेमाल किया। मगर अब तक पुरानी पेंशन कर्मचारियों को दी नहीं। स्पष्ट है कि पंजाब चुनाव में भी ओपीएस पर खूब सियासत हो रही है। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के पंजाब राज्य के अध्यक्ष सुखजीत सिंह का कहना है कि पंजाब चुनाव में ओपीएस की मांग एक बड़ा मुद्दा साबित होगी। यहां कर्मचारी सिर्फ ये नहीं चाहते कि राजनीतिक दल इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करे बल्कि जो पार्टी इस मांग को 6 महीने में पूरा करने का दम रखेगी ,ताजपोशी उसी की होगी। सुखजीत सिंह ने बताया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी तो पहले ही सत्ता मिलने के बाद पुरानी पेंशन बहाली का वादा कर चुकी थी मगर अब सुखबीर सिंह बादल भी कर्मचारियों को ये आश्वासन दे चुके है। कांग्रेस भी कहीं न कहीं इस मांग से इत्तेफ़ाक़ रखती है पर वे अपने कार्यकाल में इस मांग को पूरा नहीं कर पाए।
उत्तराखंड : खोखला आश्वासन नहीं, ठोस वादा चाहिए
उत्तराखंड में भी पुरानी पेंशन लागू करने की मांग को लेकर कर्मचारी लंबे समय से संघर्षरत हैं। सड़कों से लेकर सरकार के दर तक कर्मचारी लगातार आंदोलन करते आए हैं। यहां अब आधुनिकता के साथ कर्मचारी आवाज बुलंद कर रहे हैं, इंटरनेट मीडिया को हथियार बनाकर हजारों कर्मचारी आंदोलन को धार दे रहे हैं। राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा यहां कर्मचारी की इस मांग को लेकर लामबंद है। हालांकि यहां सरकार के पास मुख्यमंत्री बदलते रहने का एक बहाना मौजूद है। उधर, कांग्रेस कर्मचारियों की नाराज़गी भुनाने को प्रयासरत है, पर कर्मचारियों को खोखला आश्वासन नहीं बल्कि ठोस वादा चाहिए।
उत्तर प्रदेश : सपा ने किया वादा, देखना होगा भाजपा का इरादा
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया है। पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलाजिमों से वादा किया है कि सपा सरकार बनने पर कर्मचारी-शिक्षकों की लंबे समय से चल रही मांग पुरानी पेंशन को बहाल किया जाएगा। इसके लिए जरूरत पड़ी तो कार्पस फंड बनाया जाएगा। जाहिर है यूपी में पुरानी पेंशन एक ऐसा मुद्दा है, जिससे प्रदेश के लगभग 28 लाख कर्मचारी, शिक्षक और पेंशनर्स जुड़ते हैं। यह ऐसा वर्ग है, जो समाज को दिशा देने का काम करता है, अगर यह वर्ग समाज न सही अपने परिवार की सहमति बना लेता है तो यह संख्या लगभग एक करोड़ की हो जाएगी। निसंदेह ऐसा हुआ तो सपा को फायदा हो सकता है। उधर सत्तारूढ़ भाजपा पर भी अब कर्मचारी वर्ग को साधने का दबाव है।
हिमाचल में भी सियासी ताप बढ़ा सकता है ओपीएस का मुद्दा
पुरानी पेंशन का मुद्दा हिमाचल की सियासत में भी भरपूर दमखम रखता है। इसका ट्रेलर बीते 10 दिसंबर को दिखा जब धर्मशाला के दाड़ी मैदान में कर्मचारियों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन सरकार के सामने किया। एक नहीं अनेक संगठन पेंशन की मांग के लिए एकत्र हुए और अंत में सरकार को झुकना पड़ा और पुरानी पेंशन बहाली के लिए एक कमेटी गठन करने का आश्वासन दिया। अलबत्ता कमेटी अब तक गठित नहीं हो पाई है, लेकिन कर्मचारियों में कम से कम एक उम्मीद जगी है कि शायद संभावित सियासी नुक्सान को भांपते हुए प्रदेश सरकार उनके इस सबसे बड़े मसले को हल कर दे। हिमाचल प्रदेश में भी इस वर्ष के अंत में चुनाव होने है और कर्मचारी पहले ही पुरानी पेंशन की इस मांग को एक आंदोलन का रूप दे चुके है। कांग्रेस भी पूरी तरह पेंशन की मांग का समर्थन कर रही है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में भी ये मुद्दा सियासी ताप बढ़ा सकता है।
सत्ता में तो वो ही आएगा जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएगा : बंधू
पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में नई पेंशन का दर्द झेल रहे कर्मचारियों का बड़ा असर रहने वाला है। कई राजनीतिक दल हमें हल्के में लेने की गलती कर रहे है, क्यूंकि उन्हें लगता है कि हमारी संख्या कम है। मैं बता दूँ कि ऐसा समझना उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी बेवकूफी साबित होगी। आज पुरानी पेंशन एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुकी है और इन चुनावों में भी ये मुद्दा टर्निंग पॉइंट साबित होगा। सत्ता में तो वो ही आएगा जो पुरानी पेंशन बहाल करवाएगा।
-विजय कुमार बंधू, राष्ट्रीय अध्यक्ष, नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम