‘सिर सांटे रूख रहे, तो भी सस्तो जाणिये' - क्यों बिश्नोई समाज को जान से प्यारे है खेजड़ी के पेड़ ?
- खेजड़ी के पेड़ बचाने के लिए 363 बिश्नोइयों ने कटवा दिए थे अपने सिर
खेजड़ी बिश्नोई समाज का धार्मिक पेड़ है। हर बिश्नोई के घर के बाहर यह पेड़ देखने को मिलता है। इसके पीछे की कहानी बेहद रोचक हैI दरअसल करीब 300 साल पहले राजा अभय सिंह ने अपने महल के दरवाजे बनवाने के लिए हरे पेड़ों की लकड़ी कटवाने का आदेश दिया था। राजा को ज्ञात हुआ कि बिश्नोई बहुल इलाके में सबसे ज्यादा हरे पेड़ मिलेंगे। आदेशानुसार सेना वहां पेड़ काटने के लिए पहुंच गईI
सेना को बिश्नोई समाज का विरोध झेला पड़ाI तब समाज की महिला ‘माता अमृता देवी’ ने इसका विरोध किया और संघर्ष करते हुए अपना शीश कटा दिया। शीश कटवाने से पहले माता अमृता देवी ने उनसे कहा, ‘सिर सांटे रूख रहे, तो भी सस्तो जाणिये।’ मतलब - अगर सिर कटवा देने से एक पेड़ भी बच जाता है तो यह मेरे लिए सस्ता सौदा है। उस वक्त 363 बिश्नोइयों ने भी अपना सिर कटवा दिया था। इसके बाद से खेजड़ी के पेड़ की पूजा शुरू हो गई।