खोखला होता किन्नौर, अब आंदोलन की राह पर जनता
68 विधानसभा क्षेत्रों वाले हिमाचल प्रदेश में सत्ता प्राप्ति के लिए हर एक सीट बेहद महत्वपूर्ण है। हर निर्वाचन क्षेत्र की अपनी समस्याएं है, अपने मुद्दे है। प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर के तहत सिर्फ एक ही विधानसभा क्षेत्र आता है, किन्नौर विधानसभा क्षेत्र। इस क्षेत्र के भी छोटे - बड़े कई मसलें है जिनपर सबकी नज़र रहने वाली है, और सबसे बड़ा मसला है प्रस्तावित बिजली प्रोजेक्ट्स। बीते एक साल में प्रदेश के ऊपरी इलाकों में जिस तरह भूस्खलन की घटनाएं हुई है उसके बाद किन्नौर वासियों ने इन प्रोजेक्ट्स के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसमें कोई संशय नहीं है कि इस क्षेत्र में दरकते पहाड़ विकास की तमाम नीतियों की खामियों को उजागर कर रहे है। किसी ने सही कहा है कि 'अब साेया ताे सुन ले साथी कभी जाग न आएगी।' लगता है किन्नौर की जनता ने ये बात गाँठ बांध ली है। मन में किन्नौर की वादियों को सुरक्षित रखने का दृढ़ निश्चय लेकर किन्नौर की जनता ने जिले में प्रस्तावित बिजली प्रोजेक्ट्स के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। स्थानीय लोगों के अनुसार पूर्व में स्थापित हुए पावर प्राेजेक्ट्स ने किन्नौर की स्थिति ख़राब कर दी है, आए दिन सामने आती प्राकृतिक आपदाओं ने लोगों की परेशानियों को बढ़ा दिया है। ये ही कारण है कि बीते दिनों हाथ में 'नाे माेर प्राेजेक्ट इन किन्नौर, नाे मींज़ नाे' के बैनर के साथ हर वर्ग, हर तबके के युवा, बुद्धिजीवी सड़कों पर उतरे थे। अब किन्नौर की जनता तय कर चुकी है कि विकास के नाम पर किन्नौर को छलनी नहीं होने दिया जायेगा। ये ही वादा यहाँ की जनता नेताओं से भी चाहती है, ये अलग बात है कि अधिकांश नेता इस मुद्दे से बचते नज़र आते है। पर अब चुनावी साल है और नेताओं को जनता के दरबार में आना ही होगा। ये देखना भी दिलचस्प होगा कि क्या राजनैतिक दल बिजली परियोजनाओं के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल करेंगे।
ऊर्जा राज्य हिमाचल में भले ही बिजली उत्पादन की भारी क्षमता है, मगर प्रदेश के पहाड़ अब खोखले हाेने की कगार पर है। जिला किन्नौर की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। किन्नौर की जनता के संघर्ष का भी ये ही कारण है। फिलवक्त जो सबसे बड़ी बिजली परियोजना किन्नौर में प्रस्तवित है वो है एसजेवीएन के तहत सतलुज बेसिन पर प्रस्तावित 804 मेगावाट क्षमता वाली जंगी-थाेपन बिजली प्राेजेक्ट जिससे सात गांव प्रभावित होंगे। फिलवक्त इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य शुरु नहीं हुआ हैं पर निर्माण कार्य शुरु होने की स्थिति में सात गांव को खतरा हाे सकता है। कारण यह है कि जिस क्षेत्र में प्रोजेक्ट तैयार होना है वहां का पूरा एरिया चट्टानों से भरा है। रारंग गांव का पूरा क्षेत्र एनएच-5 के ऊपर ढांक पर बसा हुआ है। उसके बाद थाेपन, खादरा, आकपा, जंगी और लिप्पा गांव तक इस परियाेजना का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब पिछले साल एनएच-5 काे चाैड़ा करने के लिए यहां बलास्टिंग हाे रही थी तब भी रारंग गांव के कुछ लाेगाें के मकानाें में दरारें आ गई थी। इसी के साथ लोगों का मानना है कि परियोजना शुरु होने से इन क्षेत्रों में प्राकृतिक जल स्रोत सूख जाएंगे, जिससे सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह से प्रभावित होगी। लोगों के मन में ये डर है कि प्रोजेक्ट बनने के बाद उन्हें विस्थापित किया जा सकता है। ऐसे में जंगी-थोपन बिजली परियोजना निर्माण कार्य शुरु होने से पहले ही सात गांव के लाेगाें ने एकजुट होकर संघर्ष का बिगुल बजा दिया है।
एसजेवीएन का दावा, कोई भी गांव नहीं होगा विस्थापित
कई वर्षों से विवादों में रही जंगी-थोपन बिजली परियोजना को लेकर हल्ला बाेल के बीच एसजेवीएन ने दावा किया है कि कोई भी गांव विस्थापित नहीं हाेगा। एसजेवीएन का कहना है कि प्रोजेक्ट निर्माण कार्य शुरु होने में अभी तीन से चार साल लग सकते हैं। अभी प्रोजेक्ट प्रस्तावित है और निर्माण से पहले सर्वे किया जा रहा है। एसजेवीएन के अनुसार जहां भी टनल, डैम, पावर हाउस स्थापित होंगे, सब जगहों का वैज्ञानिक तरीके से सर्वे हो रहा है। सर्वे के बाद ही निर्माण कार्य शुरू हाेगा। एसजेवीएन का दावा है कि परियाेजना क्षेत्र में विकास ही हाेगा न कि विनाश। इसके साथ-साथ हिमाचल प्रदेश पावर पाॅलिसी के तहत प्रभावित गांव के परिवाराें काे नाैकरी भी दी जाएगी। लोगों को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। उल्लेखनीय है कि 804 मेगावॉट की क्षमता वाली जंगी-थोपन बिजली परियोजना स्थापित करने के लिए प्रदेश सरकार के पास एसजेवीएन सहित चार पावर कारपोरेशन से ऑफर आया था। इसमें से एसजेवीएन के साथ एमओयू साइन किया गया। हालांकि इस परियोजना को स्थापित करने के लिए बीडिंग व प्रीमियम की शर्त नहीं हैं, लेकिन बिजली उत्पादन शुरू होने के 40 साल बाद परियोजना राज्य सरकार की होगी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक सरकारी शर्तों के अनुसार ही जंगी-थोपन बिजली परियोजना निर्माण कार्य शुरू होगा।
ऐसा रहा प्रस्तावित जंगी-थोपन बिजली प्रोजेक्ट का इतिहास
जंगी थोपन प्रोजेक्ट का काम पिछले डेढ़ दशक से लटका हुआ है। वर्ष 2006 में राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट का टेंडर किया था और ब्रेकल को ये प्रोजेक्ट मिला। ब्रेकल ने इसका काम अदानी कंपनी को दिया और अदानी कंपनी से अपफ्रंट मनी की 280 करोड़ की राशि सरकार को मिली। उसके बाद ये प्राेजेक्ट रिलायंस काे दिया गया, लेकिन अपफ्रंट मनी के चक्कर में रिलायंस कंपनी भी पीछे हट गई। इसके बाद इस मसले पर तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने 21 सितंबर 2016 को बड़ा फैसला लिया था। रिलायंस के पीछे हटने के बाद राज्य सरकार ने पीएसयू यानी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग के साथ समझौता करने का फैसला किया, जिसके बाद ये प्रोजेक्ट एसजेवीएन को सौंप दिया गया। जंगी-थाेपन बिजली परियोजना पर अनुमानित 5708 करोड़ रुपये व्यय होने है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक परियोजना के लिए अनुमानित 281.16 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी जिसमें से 247.12 हेक्टेयर भूमि वन भूमि होगी, जबकि 24.81 हेक्टेयर निजी भूमि तथा 9.23 हेक्टेयर बीआरओ व लोक निर्माण विभाग से उपलब्ध होगी। बता दें कि परियोजना के तहत जंगी गांव के नजदीक बांध प्रस्तावित है, जबकि भूमिगत पाॅवर हाऊस का निर्माण काशंग नाला में किया जाएगा। परियोजना से कानम, जंगी, रारंग, मूरंग, स्पीलो व अकपा पंचायतें प्रभावित होंगी। परियोजना के तहत बनने वाली सुरंग आधुनिक तकनीक टीवीएम से बनाई जाएगी।
सरकार ठंडे बस्ते से निकाले शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट
किन्नौर के पहाड़ कच्चे, खुरदरे और संवेदनशील हैं। इस कारण ये अपनी वास्तविक अवस्था से हिल-ढुल गए हैं। विशेषज्ञ मानते है कि पन बिजली परियोजनाओं के बारे में शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट को सरकार को ठंडे बस्ते से निकालना चाहिए। उस पर सरकार को अमल करना चाहिए। इस रिपोर्ट के मुताबिक ट्री लाइन से ऊपर कोई भी पन विद्युत परियोजनाएं नहीं बननी चाहिए। प्रोजेक्टों के बीच में भी एक निश्चित दूरी होनी चाहिए। रिटायर्ड अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन) अभय शुक्ला ने अपनी रिपोर्ट में ये भी साफ किया था कि हिमाचल के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सभी तरह के प्रोजेक्ट्स पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिए। विशेषकर रावी, चिनाव और सतलुज बेसिन पर कोई भी प्रोजेक्ट नहीं होना चाहिए। मुख्य नदियों पर लगने वाले बड़े-बड़े हाइडल प्रोजेक्ट उत्तराखंड जैसी त्रासदी को न्योता दे रहे हैं।
सतलुज बेसिन पर ही 22 विद्युत् प्राेजेक्ट्स
हर राजनीतिक पार्टी सत्ता में आते ही विकास को गति देने की बात कहती है। प्रदेश की आर्थिकी को बढ़ाने के लिए विकास ज़रूरी है, मगर अब किन्नौर में बने हाईडल प्राेजेक्ट्स संभवत: विकास की जगह विनाश का कारण बन रहे है। जिला किन्नौर में इस वक्त सतलुज बेसिन पर ही 22 छाेटे-बड़े विद्युत् प्राेजेक्ट्स बन चुके हैं और अब एक नया प्रोजेक्ट जंगी थोपन विद्युत् प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। घाटी के निवासी अप्रैल 2021 से सतलुज पर प्रस्तावित 804 मेगावाट के जंगी थोपन पोवारी जलविद्युत परियोजना (जेटीपी एचईपी) का विरोध कर रहे हैं। जानकार मानते है कि किन्नौर में सतलुज नदी के बेसिन पर 22 बिजली प्रोजेक्टों का निर्माण किया गया है जो नुक्सान का एक बड़ा कारण है। सतलुज ने 90 के दशक की शुरुआत से राज्य की जलविद्युत महत्वाकांक्षा का सबसे बड़ा भार उठाया है। जानकारी के अनुसार कुल स्थापित क्षमता में से 56 प्रतिशत विद्युत् उत्पादन (5720 मेगावाट) सतलुज बेसिन में किया जाता है। नदी की प्राकृतिक स्थिति के साथ इतने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी ने सतलुज बेसिन में जीवन, आजीविका और पारिस्थितिकी को काफी प्रभावित किया है। इसके अलावा सड़कों के निर्माण के लिए होने वाले ब्लास्ट से भी पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। किन्नौर जिले के अधिकांश पहाड़ अति संवेदनशील हैं। बरसात के दौरान यह सबसे ज्यादा दरकते हैं। हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर के पहाड़ बिजली प्रोजेक्टों के निर्माण से खोखले हो रहे हैं। लगातार ब्लास्टिंग बढ़ने से किन्नौर जिले में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं।
अब नेताओं की होगी जनता की अदालत में पेशी
2022 विधानसभा चुनाव में प्रस्तावित बिजली प्रोजेक्ट्स और खोखले होते पहाड़ों का मुद्दा गूंजना तय है। आज किन्नौर की जो स्थिति है उसके लिए दोनों मुख्य राजनैतिक दल जिम्मेदार है क्यों कि हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन के सियासी रिवाज के साथ दोनों दलों ने सत्ता सुख भोगा है। पर अब बदले हालत में जनता मुखर है और नेताओं के लिए आगे कि रह आसान नहीं होने वाली। अब जब चुनावी साल में टालमटोल की राजनीति करने वाले नेताओं की जनता के दरबार में पेशी होगी, तो उन्हें भी खुलकर अपना रख स्पष्ट करना होगा।
जल, जंगल, जमीन बचाने को पूरा क्षेत्र एकजुट
हमें किसी भी कीमत पर पावर प्रोजेक्ट मंजूर नहीं है, विकास के नाम पर विनाश होते हुए हम देख नहीं सकते। हमारी पंचायत इस बात पर अड़ी हुई है कि परियोजना का निर्माण होने नहीं दिया जाएगा। इस क्षेत्र में सिंचाई का एक मात्र साधन प्राकृतिक जल स्त्राेत है, साथ ही गांव चट्टानों पर बसे हुए है। यदि प्राेजेक्ट निर्माण कार्य शुरु हाेगा ताे संभवत: पूरे का पूरा क्षेत्र उजड़ जाएगा। इसके लिए सबकाे राजनीति से उठकर संघर्ष करना हाेगा, तभी जल, जंगल और जमीन काे हम बचा पाएंगे। 2022 के चुनाव में ये बड़ा मुद्दा होगा, जो नेता खुलकर साथ देगा उसे ही समर्थन मिलेगा।
-राजेंद्र नेगी, प्रधान ग्राम पंचायत रारंग।
राजनीति से ऊपर उठ कर संघर्ष करना होगा
संघर्ष समिति रारंग ने यह ठान लिया है कि जंगी-थोपन बिजली परियोजना को किसी भी सूरत में शुरु होने नहीं दिया जा सकता। क्षेत्र काे बचाने के लिए सबको एकजुट होकर प्रोजेक्ट का विरोध करना होगा। हम पिछले साल से ही आंदोलन की राह पर अग्रसर है, लेकिन कुछ लोग इसमें भी राजनीति कर रहे हैं, जो बिल्कुल गलत है। हम प्रकृति को बचाने के लिए राजनीति से ऊपर उठ कर संघर्ष करना हाेगा। रारंग, खादरा और अकपा गांव की जनता ने विद्युत परियोजना प्रबंधन को पहले ही चेतावनी दे दी है कि प्रोजेक्ट का काम शुरू हुआ तो अंजाम भुगतने के लिए वे तैयार रहें। हमने कह दिया है कि 'NO MEANS नो'। सभी राजनैतिक दलों और नेताओं को किनौर की आवाज सुननी ही होगी।
-सुंदर नेगी, उपाध्यक्ष संघर्ष समिति रारंग।
प्रोजेक्ट बना तो कभी भी उजड़ सकते हैं कई क्षेत्र
सीधी सी बात है कि थाेपन से लेकर जंगी तक का एरिया पावर प्राेजेक्ट के लिए अनुकूल नहीं हैं, यह क्षेत्र काफी संवेदनशील है, जहां पर छाेटे-छाेटे पहाड़ हैं। प्रोजेक्ट बनने से ये क्षेत्र कभी भी उजड़ सकते हैं। हमारा यही मानना है कि जंगी-थाेपन बिजली परियाेजना का भार सहने के लिए प्राकृतिक एवं भाैगाेलिक दृष्टि से इन पहाड़ों में क्षमता नहीं हैं। हमने पहले दिन से इसका विरोध किया है, जाे अंतिम चरण तक जारी रहेगा। यह प्राेजेक्ट न ताे न्याय संगत है और न ही प्रकृति के अनुकूल। प्राकृतिक जल स्त्रोत से ही हमारे क्षेत्र में कृषि एवं बागवानी होती है। यदि बिजली परियोजना का निर्माण कार्य शुरु हाेगा ताे सब कुछ लुप्त हाे जाएगा जिसे हम होने नहीं देंगे।
-राेशन लाल नेगी, अध्यक्ष संघर्ष समिति जंगी।
सनद रहे, चार पंचायतों ने किया था चुनाव का बहिष्कार
ऐसा नहीं है कि हम प्रोजेक्ट्स का विरोध कुछ महीने पहले से कर रहे है, हिमालय संरक्षण को लेकर हम कई वर्षो से आवाज़ उठा रहे है। मसलन हर चुनावी वर्ष में सेव किन्नौर का मुद्दा अहम रहा है। कई वर्ष पहले से ही हम लोगों से अपील करते आ रहे है जो दुष्परिणाम से अवेयर नहीं थे, हमने नोटा दबाने को लेकर अपील कि लेकिन लोगों में इतना रोष था कि चार पंचायतों ने चुनाव का ही बहिष्कार किया। इसमें रारंग पंचायत, आकपा पंचायत, जंगी पंचायत और कानम यूथ क्लब शामिल है। हमने कैलकुलेट किया पिछले मंडी संसदीय सीट पर हुए चुनाव में नोटा की संख्या में चार गुणा इजाफा हुआ है, निश्चित तौर पर यह काफी बड़ा आंकड़ा है। देखिये हमारी लड़ाई सिर्फ प्रोजेक्ट्स को शुरू करने को लेकर ही नहीं है, हमारी लड़ाई है उन कर्मियों को लेकर जिन्हे बिना नोटिस दिए नौकरी से निकाल दिया जा रहा है या वेतन नहीं दिया जा रहा है, इसके अलावा मुआवजा को लेकर भी हम आवाज़ उठा रहे है। हमारे लिए यह काफी हर्ष की बात है कि इस लड़ाई में साथ देने वाले लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और हिमालयन रेंज के संरक्षण को लेकर हम अन्य राज्यों से भी लोगों को जोड़ने का प्रयास कर रहे है। यह लड़ाई सिर्फ किन्नौर को बचाने का ही नहीं है बल्कि प्रकृति को बचाने के लिए है।
-महेश रोंसेरू,क्यंग किन्नौर
सपने दिखाकर किन्नौर वासियों को ठगा गया : निगम भंडारी
युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष निगम भंडारी ने कहा कि किन्नौर वासियों का हाइड्रो प्रोजेक्टका विरोध करना जायज है। सरकार ने बड़े बड़े सपने दिखा कर किन्नौर वासियों को ठगा और शोषण किया। आज किन्नौर के मजबूत पहाड़ भी जर्जर होने की कगार पर है। पिछले वर्ष पेश आये कई हादसे इस बात के गवाह है कि किन्नौर को सरकार ने खतरे में डाला है। इसके अलावा किन्नौर जिले के काफनू में रमेश एवं पन्छोर हाइड्रो प्रोजेक्ट से 36 कर्मचारियों को नौकरी से निकलना दुर्भाग्यवश है। रोजगार के सपने दिखा कर लोगों को ठगा गया और आज इन स्थानीय मजदूरों को प्रोजेक्ट द्वारा नौकरी से निकालने के बाद अब इन सभी कर्मचारियों के घर के चूल्हे भी जलने बंद हो गए हैं। यदि समय रहते सरकार व प्रोजेक्ट के आलाधिकारी काफनू के स्थानीय कर्मचारियों को नौकरी पर वापस नहीं लेती और 9 महीने की सैलरी नहीं देती, तो आने वाले दिनों में प्रदेश युवा कांग्रेस सरकार व रमेश एवं पन्छोर हाइड्रो प्रोजेक्ट के खिलाफ एक उग्र धरना प्रदर्शन करेगी, जिसकी जिम्मेदार सरकार होगी।