हिंदी पट्टी में कांग्रेस का सफाया, कैसे जीतेंगे 2024 ?
**हिंदी बेल्ट में अकेले दम पर सिर्फ हिमाचल में बची कांग्रेस की सरकार
**2019 में हिंदी पट्टी की 251 में से सिर्फ 7 पर जीता था कांग्रेस गठबंधन
2018 में जब कांग्रेस जब तीन राज्यों में जीती थी, तब भी 2019 में पीएम मोदी के चेहरे के सामने कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था। इस बार तो हिंदी पट्टी के इन तीन राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हुआ है। ये 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए बड़ा झटका है। कांग्रेस के तमाम दावे हवा हवाई हो गए और हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। यहाँ कांग्रेस का हर दांव उल्टा पड़ा। ऐसे में 2024 में केंद्र की सत्ता तक पहुंचने का कांग्रेस का ख्वाब फिलहाल पूरा होना मुश्किल होगा। इन तीन राज्यों में ही 65 लोकसभा सीटें है। आपको याद दिला दें कि 2018 में तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी थी, बावजूद इसके 2019 में कांग्रेस के हिस्से आई थी महज 3 सीटें। वहीँ इस बार भाजपा ने मोदी के चेहरे पर विधानसभा चुनाव लड़ा तो तीनों राज्यों में कांग्रेस साफ़ हो गई और ऐसे में 2024 में कांग्रेस का टिकना बेहद मुश्किल होगा। इन तीन राज्यों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है, उसका ओपीएस कार्ड भी फेल हो गया और गारंटी मॉडल भी। वहीँ राहुल गाँधी की जिस बढ़ती लोकप्रियता का दावा कांग्रेस कर रही थी वो दक्षिण में तो दिखी लेकिन हिंदी पट्टी में वैसा नहीं दिखा। नतीजे तो ये ही बताते है।
बगैर हिंन्दी पट्टी में खुद को मजबूत किये कांग्रेस किस आधार पर 2024 में जीत का स्वपन देख रही है, ये पार्टी के रणनीतिकार ही जानते है। इन तीन राज्यों को छोड़े भी दे तो उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात और दिल्ली में भी पार्टी वेंटिलेटर पर दिखती है। इन राज्यों में 153 लोकसभा सीटें है और राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़कर ये आंकड़ा 218 हो जाता है। इसके अलावा 10 सीटों वाले हरियाणा और 5 सीटों वाले उत्तराखंड में भी न कांग्रेस सत्ता में है और न कोई बड़ा तिलिस्म करने की स्थिति में दिखती है। वहीँ 14 सीटों वाले झारखण्ड में कांग्रेस गठबंधन सरकार का हिस्सा है लेकिन अकेले दम पार्टी की हैसियत किसी से छिपी नहीं है। हिंदी पट्टी में हिमाचल प्रदेश इकलौता राज्य है जहाँ कांग्रेस की सरकार है, लेकिन चार सीटों वाले इस छोटे प्रदेश में भी पार्टी बहुत सहज नहीं दिखती।
कुल मिलाकर हिन्द्दी पट्टी में 251 लोकसभा सीटें है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपीए को इनमें से सिर्फ 7 पर जीत मिली थी। हालांकि तब बिहार में जेडीयू एनडीए का हिस्सा था और यूपी में सपा और बसपा मिलकर लड़े थे और
यूपीए गठबंधन का हिस्सा नहीं थे। अब यूपीए गठबंधन खत्म हो चूका है और विपक्ष ने इंडिया गठबंधन बनाया है लेकिन ये नए पैकेट में पुराने सामान की तरह ही दिख रहा है। सपा और कांग्रेस के बीच मध्य प्रदेश में तल्खियों का ट्रेलर दिख चूका है और नतीजा भी अब सबके सामने है। वहीँ जेडीयू भी कांग्रेस के रवैये से नाखुश है।
कांग्रेस और आप भी आमने -सामने है। ऐसे में हिंदी पट्टी में विपक्ष कैसे भाजपा से लड़ पायेगा, ये तो माहिरों की भी समझ से परे है। कांग्रेस विपक्ष की धुरी है और हिंदी पट्टी में जीत दिल्ली का रास्ता प्रशस्त करती है। ऐसे में हिंदी पट्टी में कमजोर होकर कांग्रेस न तो विपक्ष की अगुवाई कर सकती है और न ही भाजपा से मुकाबला।
मोदी की टक्कर में चेहरा नहीं !
इस हार ने कांग्रेस की पुरानी कमी को फिर उजागर कर दिया। हिंदी पट्टी में प्रधानमंत्री मोदी सबसे लोकप्रिय नेता है और कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं जो टक्कर दे सके। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गाँधी को दक्षिण में तो लोकप्रियता मिली है लेकिन हिंदी पट्टी में अब भी राहुल की लोकप्रियता में कोई ख़ास बदलाव नहीं दिखता। जो दीवानगी पीएम मोदी के लिए इन तीन राज्यों में दिखी वो भाजपा की जीत का बड़ा कारण है। तीन राज्यों के चुनावों की बात करें तो सिर्फ राजस्थान में अशोक गहलोत ऐसा चेहरा दिखे जो भाजपा को मुद्दों पर घेरते दिखे और टक्कर में भी लगे, ये ही कारण है भाजपा को राजस्थान में पूरी ताकत झोंकनी पड़ी। इसके अलावा पूरी कांग्रेस में हिन्द्दी पट्टी का एक भी ऐसा चेहरा नहीं दिखता जो मुकाबले में खड़ा भी दिखे। हालांकि प्रियंका गाँधी भी भीड़ जुटाने में कामयाब दिखी लेकिन भीड़ वोटों मे नहीं बदल पाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दक्षिण से आते है और उसका लाभ पार्टी को कर्णाटक और तेलंगाना में मिला भी है, लेकिन वे हिंदी पट्टी से वैसे कनेक्ट नहीं कर पाते जिस तरह पीएम मोदी करते है। ऐसे में कांग्रेस को नीति रणनीति में बदलाव की सख्त जरुरत है।