MAHARASHTRA NCP CRISIS : भतीजे ने दिखाया दम, अब क्या होगा चाचा का अगल कदम ?
साल था 2019 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके थे। उद्धव ठाकरे विपरीत विचारधाराओं वाली एनसीपी और कांग्रेस के साथ जाने का मन बना चुके थे और इस गजब गठबंधन के सूत्रधार थे शरद पवार। इसी बीच 23 नवंबर की सुबह सुबह खेल हो गया। चाचा शरद पवार गठबंधन की गाँठ बांधते रह गए और भतीजे अजित पवार ने 12 विधायकों के साथ बीजेपी को समर्थन दे दिया। फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने डिप्टी सीएम की शपथ ली। हालांकि बाद में शरद पवार ने इस पूरे घटनाक्रम को पलट दिया और अजित पवार के साथ सभी विधायकों को पार्टी में वापस बुला लिया।
2019 से अब तक महाराष्ट्र की सियासत ने बहुत कुछ देख लिया। पहले शिवसेना में बगावत हुई और उद्धव ठाकरे की न सिर्फ सरकार गई बल्कि पार्टी भी एकनाथ शिंदे ले उड़े। शिंदे वर्तमान में भाजपा के साथ सरकार चला रहे है और भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उनके डिप्टी है। ये ही है सियासत। अब करीब चार साल बाद दो जुलाई में झटका लगा है शरद पवार को। भतीजे अजित ने फिर बगावत कर दी और इस बार अपने साथ करीब 30 विधायक ले गए। अजित डिप्टी सीएम बन गए और छगन भुजबल सहित आठ एनसीपी विधायक भी अब शिंदे सरकार में मंत्री है। चाचा देखते रह गए और भतीजे अजित पवार ने खेल कर दिया। अजित पवार के गुट का दावा है कि उनके पास 40 एनसीपी विधायकों का समर्थन है पर आंकड़ा लगभग तीस तो दिख ही रहा है। अजित ने साफ़ कहा है कि हमारे अधिकांश विधायक हमारे फैसले से संतुष्ट हैं और हम सभी चुनाव एनसीपी के नाम पर ही लड़ेंगे। ऐसे में अगर शरद पवार का कोई नया पैंतरा काम नहीं आता तो आने वाले समय में उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है।
बता दें की कुछ दिन पहले ही शरद पवार ने एनसीपी के स्थापना दिवस के मौके पर दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाये थे, जिनमें उनकी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल शामिल थे। इसके बाद से ही माना जा रहा था कि अजित पवार कोई बड़ा कदम उठा सकते है। दिलचस्प बात ये है कि प्रफुल्ल पटेल भी रविवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह में शामिल थे। यानी भतीजे ने चाचा की जमीन खिसकाने में कोई कसर नहीं रखी है।
लाजमी है कि अगर कोई सुलह का मार्ग नहीं निकलता तो एनसीपी में भी अब शिवसेना की तरह पार्टी पर कब्जे की लड़ाई देखने को मिल सकती है। बहरहाल शरद पवार के लिए ये बड़ा झटका है। फिर भी पवार को कम आंकना गलती होगी। दरअसल इस बार अजित का जाना कोई चौंकाने वाला कदम नहीं है, जब सबको इसकी गुंजाईश दिख रही थी तो जाहिर है शरद पवार भी तैयार होंगे। अब पवार के अगले कदम पर सबकी निगाह टिकी है।
विधानसभा में एनसीपी के कुल 53 विधायक हैं और ऐसा माना जा रहा है कि उनमें से 30 विधायक अजित पवार के साथ हैं। दल बदल कानून से बचने के लिए दो तिहाई विधायकों का अजित पवार के साथ आना जरूरी है। मतलब अजित पवार को एनसीपी के 36 विधायकों का साथ चाहिए। यहाँ शरद पवार के समर्थक विधायकों का रुख निर्णायक होगा।
चुनाव आयोग की प्रक्रिया के मुताबिक अगर किसी भी राजनीतिक दल में टूट होती है और वह टूट दो तिहाई की होती है, तो पार्टी में वर्टिकल स्प्लिट होता है। यानी कि सांसद विधायक से लेकर कार्यकर्ताओं तक में टूट होती है तो चुनाव आयोग बड़े खेमे को मान्यता दे सकता है जैसा कि शिवसेना और एकनाथ शिंदे के मामले में किया गया। जानकार मानते है कि यहाँ अजीत के लिए पार्टी पर कब्ज़ा मुश्किल हो सकता है। दो मई को शरद पवार के एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद पार्टी में उनकी पकड़ की झलक सबने देखी है। ऐसे में ठीक दो महीने में शरद पवार को कमजोर आंकना अजित के लिए भारी पड़ सकता है। इसलिए माहिर मान रहे है कि पार्टी पर कब्ज़ा करना अजित के लिए टेढ़ी खीर होगा। वहीँ वक्त और हालात को दखते हुए क्या शरद पवार लचीला रुख अपनाते है, ये देखना दिलचस्प होगा।