सबकी आशा पूर्ण करती है मां बिलासा (बिलासपुर गुलेर)
हरिपुर-गुलेर रियासत 1415 ईस्वी में राजा हरिचंद ने बसाई थी। गुलेर का पहले का नाम ग्वालियर था और हरिपुर का नाम राजा हरिचंद के नाम पर पडा। उसी दौरान लगभग 500 के करीब ऐतिहासिक निर्माण हुए, जिनमें बावडिय़ां, तालाब, मंदिर, किले और कूओं का निर्माण हुआ। इन्हीं मंदिरों के निर्माण का एक हिस्सा गुलेर में आने वाले बिलासपुर नामक स्थान पर पर मां बिलासा और शिव भोलेनाथ का प्राचीन मंदिर है। बिलासपुर नगरोटा सूरियां (पौंग डैम) से देहरा की ओर जाने वाले रोड से 12 किलोमीटर की दूरी और हरिपुर से नगरोटा की ओर जाने वाले रोड से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह़ां से गुलेर रेलवे स्टेशन लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसी जगह पर स्थित है पावन मां बिलासा का मंदिर। यह मंदिर प्राचीन शैली में बना हुआ है। यह़ां खासियत यह है कि ऊपर मां का मंदिर बना हुआ है ठीक इसके नीचे एक सदाबहार और बहुत ही आकर्षक बावड़ी बनी हुई है। सदाबहार इसलिए कि इस बावडी का पानी कभी सूखता नहीं है और पानी बहुत ही शीतल है। स्थानीय भाषा में लोग इसे नौण के नाम से पुकारते हैं। मां बिलासा में भक्तों की बहुत ज्यादा आस्था है। यह़ां हर मन्नत पूरी होती है। यह़ां हर साल मां का जागरण होता है और विशाल भंडारा लगता है। दूर-दूर से भक्त शीश नवाने पहुंचते हैं। यह़ां स्थानीय तौर पर भक्तों की की कीर्तन मंडली भी बनी जो माता का गुणगान करती रहती है। मंदिर प्राचीन शैली में बहुत ही सुंदर ढंग से बना है, जिसे निहारने से अनायास ही पुरानी गुलेर रियासत की याद ताजा होती है। कुछ साल पहले यह़ां एक दीवार क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसका जीर्णोद्धार किया गया है। यह़ां से कुछ ही दूरी पर प्राचीन शैली में बना शिव भोले का मंदिर भी है। यह़ां पहुंचने पर ऐसा लगता है कि हम प्रकृति से पूरी तरह आत्मसात हो गए हैं। हो सकता है क्षेत्र में आसपास और भी प्राचीन निर्माण हों, जिन्हें सहेजने की बहुत जरूरत है।