प्याज पॉलिटिक्स : जब-जब प्याज उठा सरकार गिर गई
हिन्दुस्तान की सियासत और महंगाई के सम्बन्ध का ज़िक्र प्याज के बगैर अधूरा है। ऊंचे दामों से आम जनता को रुलाने वाला प्याज सियासतगरों को भी रुलाता रहा है। आम तौर पर उपेक्षित-सा रहने वाला प्याज अचानक उठता है और सरकारों की नींव हिला देता है। भले ही इसके पीछे मौसम या फसल-चक्र की मेहरबानी रही हो, लेकिन इतिहास पर नज़र डाले तो प्याज ने सरकारें भी गिराई हैं। अतीत में झांके तो आपातकाल के बुरे दौर के बाद जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। यूँ तो यह सरकार अपने ही अंतर्विरोधों से लड़खड़ा रही थी, पर विपक्ष में बैठी इंदिरा गांधी के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं था जिससे वो सरकार पर हमलावर हो सके। पर तभी अचानक प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी और बैठे बिठायें इंदिरा गाँधी को एक मुद्दा मिल गया। कांग्रेस ने इस मुद्दे का बेहद नाटकीय ढंग से इस्तेमाल किया। प्याज की बढ़ती कीमतों की तरफ ध्यान खींचने के लिए कांग्रेस नेता सीएम स्टीफन तब संसद में प्याज की माला पहन कर गए। देखते -देखते इस मुद्दे का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगा। 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी प्याज की माला पहनकर प्रचार करने गईं। चुनावी नारा भी बना कि ' जिस सरकार का कीमत पर जोर नहीं, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं।' चुनावी नतीजे आए तो जनता पार्टी की हार हुई और कांग्रेस ने सरकार बनाई। माना जाता है कि जनता पार्टी की सरकार भले ही अपनी वजहों से गिरी हो, लेकिन कांग्रेस की सत्ता वापसी में प्याज का भी अहम् योगदान रहा। हालांकि सत्ता में लौटी कांग्रेस भी इसकी कीमतों का बढ़ना नहीं रोक पाई और एक साल बाद फिर प्याज ने रुलाना शुरू कर दिया। इस बार विपक्ष ने प्याज का नाटकीय इस्तेमाल किया। तब लोकदल नेता रामेश्वर सिंह प्याज का हार पहन कर राज्यसभा में गए, पर बात नहीं बनी और सभापति एम हिदायतुल्ला ने उन्हें खरी-खोटी सुना दी।
वर्ष 1998 में केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो प्याज की कीमतों ने फिर रुलाना शुरू कर दिया। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा भी कि जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रहती तो प्याज परेशान करने लगता है, शायद उनका इशारा था कि कीमतों का बढ़ना राजनैतिक षड्यंत्र है। तब दिल्ली प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और विधानसभा चुनाव दस्तक दे रहे थे। तब एक बार फिर कांग्रेस ने प्याज का जबरदस्त राजनीतिक इस्तेमाल किया और इस मुद्दे पर भाजपा को जमकर घेरा। नतीजन जब चुनाव हुआ तो मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा बुरी तरह हार गई। शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और इसके बाद भी लगातार दो बार उनकी सरकार बनी। पर 15 साल बाद प्याज ने उन्हें भी रुलाया। अक्तूबर 2013 में प्याज की बढ़ी कीमतों पर सुषमा स्वराज ने टिप्पणी की थी कि यहीं से शीला सरकार का पतन शुरू होगा। हुआ भी ऐसा ही, भ्रष्टाचार और महंगाई का मुद्दा चुनाव में बदलाव का साक्षी बना।
दिल्ली में भाजपा ने तीन सीएम बदले थे
1998 में दिल्ली में भाजपा की सरकार थी और मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री थे। पर प्याज की कीमतें बढ़ीं और विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू किया। जनता में रोष था और दबाव इतना बढ़ा कि खुराना को हटाकर साहिब सिंह वर्मा को कमान सौंपी, पर कीमतें फिर भी नहीं घटीं। भाजपा ने फिर सीएम बदला और सुषमा स्वराज को मौका दिया गया। पर वे भी असफल रहीं।
सीएम को मिठाई के डिब्बे में भेजे थे प्याज
1998 की दिवाली में महाराष्ट्र में प्याज की भारी किल्लत थी और प्याज की कीमत आसमान पर। तब कांग्रेसी नेता छगन भुजबल ने इस पर तंज कसने के लिए महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को मिठाई के डिब्बे में रखकर प्याज भेजे थे। कहते है इससे शर्मिंदा होकर मनोहर जोशी ने राशन कार्ड धारकों को 45 रुपए की प्याज 15 रुपए प्रति किलो में उपलब्ध करवाई।