बार-बार झंडा बदलते रहे जनता के झंडाबरदार
सियासत में निष्ठा, समर्पण और विचारधारा की बातें बेमानी हैं। नेताओं का दल बदलना आम बात है और जब नेताओं को अपने वर्तमान राजनीतिक दल में तवज्जो न मिले या निजी सियासी अरमान पुरे न होते दिखे ताे वे विरोधी दल के साथ हाथ मिलाने से भी गुरेज नहीं करते। जिन्हें गालियां देते रहे हो उनका झंडा उठाने से भी नेता गुरेज नहीं करते। यह राजनीति है, कुर्सी हथियाने के लिए हमारे माननीय कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे सड़कों उदहारण जहाँ दल बदलने से नेताओं की किस्मत चमक गई।हिमाचल की राजीनीति में भी दल बदलने की परंपरा काफी पुरानी है। अभी वर्तमान सरकार में बैठे मंत्रियों, विधायकों की बात करें तो जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर सबसे अधिक बार राजनीतिक दल बदलने वालों में से हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम व उनके पुत्र अनिल शर्मा भी कांग्रेस - भाजपा और हिमाचल विकास कांग्रेस में रहे। आपको बताते है हिमाचल प्रदेश के ऐसे कुछ नेताओं के बारे में जिन्होंने दल बदले और वर्तमान में सक्रिय भी है।
घाट- घाट का पानी पीकर महेंद्र सिंह को भाजपा रास आई
जयराम सरकार में जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की राजनीति एक आजाद प्रत्याशी से शुरू हुई थी और आज वह भाजपा में सीएम के बाद पहले वरिष्ठ नेता बन गए। बता दें कि महेंद्र सिंह ठाकुर 1990 में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार विधानसभा चुनाव जीते। इसके बाद 1993 के विधानसभा चुनाव से पूर्व वे कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीते। तदोपरांत 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, फिर 2003 में वामपंथियों से हाथ मिलाकर हिमाचल लाेकतांत्रिक माेर्चा से चुनाव लड़े और जीत भी गए। इसके बाद महेंद्र सिंह भाजपा में शामिल हो गए और 2007 से लेकर अब तक भाजपा टिकट से चुनाव जीतते आ रहे हैं।
पंडित सुखराम एंड फैमिली : कभी यहां, कभी वहां
पंडित सुखराम कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे है। उनके पुत्र अनिल शर्मा की राजनीति भी कांग्रेस से शुरू हुई थी। बाद में कांग्रेस के भीतर गुटबाजी हावी हुई ताे पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया। अनिल शर्मा भी पंडित सुखराम के साथ चले। हिमाचल विकास कांग्रेस की मेहरबानी से ही 1998 में धूमल सरकार बनी और पुरे पांच साल चली भी। इसके बाद सुखराम परिवार फिर कांग्रेस में आ गया। 2012 के चुनाव में वीरभद्र सरकार में अनिल शर्मा मंत्री भी बने। पर 2017 के चुनाव से पहले सुखराम परिवार ने बीजेपी से हाथ मिला लिया और अनिल शर्मा भाजपा टिकट पर चुनाव जीत फिर मंत्री बन गए। तदोपरांत वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पंडित सुखराम पोते आश्रय शर्मा के साथ कांग्रेस में चले गए और आश्रय ने कांग्रेस टिकट से चुनाव लड़ा। दादा और पोते के कांग्रेस में जाने के चलते अनिल शर्मा को जयराम कैबिनेट में मंत्री पद भी गवाना पड़ा। बहरहाल, अभी पंडित सुखराम और आश्रय कांग्रेस में है और तकनीकी तौर पर अनिल शर्मा अभी भी भाजपा विधायक है।
हिमाचल विकास कांग्रेस से कांग्रेस में आये शांडिल
आर्मी अफसर के पद से रिटायर हाेते ही 1999 के लाेकसभा चुनाव में कर्नल धनीराम शांडिल राजनीति में आये और हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर शिमला संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ संसद पहुंचे। उसके बाद उन्होंने हिमाचल विकास कांग्रेस स किनारा कर 2004 में कांग्रेस टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ा और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे। हालंकि 2009 का लाेकसभा चुनाव वे हार गए, पर उसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट से जीते भी और मंत्री भी बने। वर्तमान में भी वे सोलन निर्वाचन क्षेत्र से विधायक है।
भाजपा में ही लौट आये महेश्वर
मंडी संसदीय क्षेत्र से पूर्व सांसद रहे कुल्लू के नेता महेश्वर सिंह ने भी दल बदल चुके है। हालांकि उनका अधिकांश राजनीतिक सफर भाजपा में गुजरा है, पर 2012 में जब उनकी पार्टी में नहीं बनी तो उन्होंने हिमाचल लोकहित पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत भी गए। बहरहाल, महेश्वर फिर भाजपा में लौट आये हैं और मंडी लोकसभा उप चुनाव के लिए टिकट के दावेदार है।
तवज्जो नहीं मिली तो पवन नैयर ने बदल डाली टीम
चंबा सदर से भाजपा विधायक पवन नैयर ने पिछले कई वर्षों तक कांग्रेस के लिए तन-मन और धन से काम किया। पर जब विधानसभा टिकट की बात हाेती है ताे उन्हें ठेंगा दिखाया जाता। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाया। उन्हें टिकट भी मिल गया और वे जीत भी गए। पवन नैयर राजनीति से पहले क्रिकेट के मैदान में चमकते सितारे रह चुके हैं।
कांग्रेस से भाजपा में आ गए नरेंद्र ठाकुर
हमीरपुर से भाजपा विधायक नरेंद्र ठाकुर 2017 के चुनाव से पहले कांग्रेस में रहे हैं। बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र ठाकुर कांग्रेस से चुनाव लड़े थे और अनुराग सिंह ठाकुर से हार गए थे। इस साल कांग्रेस ने इंटरनेशनल क्रिकेटर मदनलाल को टिकट दिया तो विरोध शुरू हुआ। संगठन ने नरेंद्र ठाकुर की सिफारिश की और टिकट में बदलाव किया गया। हालांकि नरेंद्र ठाकुर लोकसभा का चुनाव हार गए। 2017 के चुनाव से पहले नरेंद्र भाजपा में शामिल हो गए और वर्तमान में वे हमीरपुर सीट से विधायक हैं। नरेंद्र ठाकुर के पिता स्व. ठाकुर जगदेव चंद जनसंघ समय से भाजपा के कद्दावर नेता रहे थे। वह पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। जगदेव चंद ठाकुर की पुत्रवधू उर्मिल ठाकुर भी दो बार भाजपा विधायक और सीपीएस पद पर रह चुकी हैं। उर्मिल ठाकुर नरेंद्र ठाकुर की भाभी है। अब नरेंद्र भी भाजपाई है।
हिविकां में रहकर मंत्री बने, अब भाजपा में आकर भी मंत्री है मारकंडा
प्रदेश के जनजातीय विकास मंत्री डा. रामलाल मारकंडा की राजनीति एनएसयूआई से हुई थी और शुरुआती दौर में वे कांग्रेस के लिए काम करते रहे। बाद में 1998 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत कर मंत्री भी बन गए। उसके बाद 2003 से लेकर अब तक के वे भाजपा में ही है और इस वक्त जयराम सरकार में मंत्री हैं।
भाजपा छोड़ी, फिर भाजपा के सीएम फेस को ही हरा दिया
सुजानपुर विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल काे पराजित कर जयराम ठाकुर की राह में लक्की साबित हाेने वाले कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह राणा की सियासत बीजेपी से शुरु हुई थी। पूर्व में जब प्रेम कुमार धूमल सीएम रहे ताे राजेंद्र राणा उनके करीबी थे। उसी कार्यकाल में हाेटल वुडविल प्रकरण सामने आया ताे उसके बाद राजेंद्र राणा ने भाजपा से नाता ताेड़ दिया और सुजानपुर विधानसभा सीट पर निर्दलीय चुनाव जीते। उसी दाैरान 2014 के लाेकसभा चुनाव में विधायक पद से इस्तीफा देकर हमीरपुर संसदीय सीट से भाजपा के अनुराग ठाकुर के खिलाफ कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा, मगर जीत नहीं मिली। 2017 के विधानसभा चुनाव में सुजानपुर सीट पर कांग्रेस टिकट से चुनाव लड़े और प्रेमकुमार धूमल को हराकर कांग्रेस के राइजिंग स्टार बन गए।
भाजपा के दिग्गज रहे, अब बना ली अपनी पार्टी
एक दौर में भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे डॉ राजन सुशांत ने भी दल बदलने से गुरेज नहीं किया। 1982 के विधानसभा चुनाव में वे सबसे कम उम्र के विधायक बने थे और पांच बार भाजपा टिकट पर जीतकर विधायक बने। 1998 से 2003 तक धूमल सरकार में मंत्री भी रहे और 2009 का लोकसभा चुनाव भी भाजपा टिकट पर जीता। पर सांसद बनते - बनते प्रदेश भाजपा और उनके बीच दूरियां आ गई थी। तब प्रदेश में भाजपा सरकार थी और सुशांत अपनी ही सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने लगे। 2011 में भाजपा ने उन्हें निष्कासित कर दिया। इसके बाद सुशांत आम आदमी पार्टी में गए और 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा। तब राजन सुशांत तीसरे पायदान पर रहे। इसके बाद आम आदमी पार्टी में भी उनकी नहीं जमी और वे वहां से भी बाहर हो गए। वर्तमान में उन्होंने 'अपनी पार्टी हिमाचल पार्टी' के नाम से नया राजनीतिक दल बनाया है।