श्री राम जन्म भूमि : वीएचपी ने सांस्कृतिक तो बीजेपी ने राजनैतिक मोर्चे पर अगुवाई की
अयोध्या में श्री राम मन्दिर निर्माण को कई दशकों तक आंदोलन चला और आखिरकार विधिवत रूप से अपने अंजाम तक पंहुचा। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विवादित जमीन को भगवान राम का जन्मस्थान घोषित करने के साथ ही इसे हिंदू पक्ष का आदेश दिया था। इस फैसले से राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े हजारों-लाखों लोगों की मुहिम और सैकड़ों लोगों की कुर्बानियों को सार्थक बनाया।
श्रीराम जन्म भूमि पर जहां मस्जिद का निर्माण किया गया, वहां के आसपास के कई स्थानों पर पहली बार 1853 में दंगे हुए। इसके बाद 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित स्थान के पास बाड़ लगा दी और मुसलमानों को ढांचे के अंदर वहीं हिंदुओं को बाहर चबूतरे के पास पूजा करने की इजाजत दे दी। 1885 में पहली बार फैजाबाद की एक अदालत में महंत रघुबीर दास के मस्जिद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के साथ ही राम जन्म भूमि आंदोलन के बीज पड़े थे। विवादित स्थल पर पहले से ही ताला लगा था, लेकिन 1949 में ढांचे के भीतर भगवान राम की मूर्तियां मिली थीं और यहीं से आंदोलन की असल नींव पड़ी। इसके बाद सरकार ने विवादित स्थल पर ताला जड़ दिया था और सभी के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने अदालत में मुकदमा दर्ज करा दिया, जिसका निबटारा 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ हुआ।
इस पूरे आंदोलन के दौरान अप्रैल 1984 में हुई विश्व हिंदू परिषद की धर्म संसद अहम साबित हुई। इसी धर्म संसद में राम मंदिर को लेकर निर्णायक आंदोलन छेड़ने का फैसला हुआ था। इसके बाद जुलाई 1984 में अयोध्या में एक और बैठक हुई और गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ को श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का अध्यक्ष बनाया गया। वहीं बीजेपी ने राजनीतिक फ्रंट पर इस आंदोलन की जिम्मेदारी उठाई। इस बीच जब 1989 में जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया, तो वीएचपी ने उसके पास ही राम मंदिर की आधारशिला रख दी।
आडवाणी की रथ यात्रा और आंदोलन से जुड़े लाखों कार सेवक :
1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के पक्ष में जन समर्थन के लिए रथ यात्रा निकाली, जिसे 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। इसे खूब जन समर्थन मिला और देशभर से लाखों कार सेवक अयोध्या के लिए निकल गए।आडवाणी का रथ तो बिहार में ही रुक गया, लेकिन कारसेवक अयोध्या पहुंचने लगे। तब मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली यूपी सरकार ने अयोध्या में घुसने पर रोक लगा दी थी। अयोध्या में कर्फ्यू था और भारी संख्या में पुलिस तैनाती थी। बावजूद इसके अशोक सिंघल, विनय कटियार और उमा भारती जैसे नेताओं के नेतृत्व में न देश के अलग-अलग हिस्सों से जुटे हजारों कार सेवक न सिर्फ अयोध्या में घुसे बल्कि विवादित ढांचे की ओर भी बढ़ गए। विवादित ढांचे के ऊपर कार सेवकों ने भगवा झंडा लहरा दिया और परिणामस्वरूप वहां अफरा-तफरी हो गई। पुलिस ने गोलीबारी की जिसमें कई कारसेवकों की मौत हो गई।
1992 में ढहा दिया विवादित ढांचा :
6 दिसंबर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा का आह्वान किया गया था, जिसके बाद लाखों कार सेवक बीजेपी, वीएचपी और बजरंग दल नेताओं के नेतृत्व में अयोध्या पहुंचे। देखते ही देखते वहां विवादित ढ़ांचा गिरा दिया गया। तब उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी। इसके बाद मामला न्यायलय में चलता रहा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने पलटा :
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया जिसमें विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया गया। पर 2011 अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। इसका बाद 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया और 1992 में हुए बाबरी विध्वंस के लिए भाजपा के कई नेताओं पर आपराधिक साजिश आरोप बहाल किए गए। 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा और 8 सप्ताह के भीतर कार्यवाही को खत्म करने के आदेश दिए। 1 अगस्त को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट पेश की और 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता पैनल मामले में समाधान निकालने कामयाब नहीं रहें। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले को लेकर प्रतिदिन सुनाई होने लगी और 16 अगस्त 2019 को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया। आखिरकार 09 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने श्रीराम जन्म भूमि के पक्ष में फैसला सुनाया। वहीं 2.77 एकड़ विवादित भूमि हिंदू पक्ष को मिली और मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुस्लिम पक्ष को मुहैया कराने का आदेश दिया गया।