महंगाई बेकाबू : जीवन डाँवाडोल, ख़बर लो शीघ्र सरकार कृपालू
" महंगाई की तहलील में जब जिस्म टटोला, मालूम हुआ हम तो कमर भी नहीं रखते " सय्यद ज़मीर जाफ़री का ये शेर आज हर आम आदमी का किस्सा है। एक तो कोरोना और इस पर बढ़ती महंगाई, गरीब और मध्यम वर्गीय वर्ग यदि कोरोना से बच भी रहा है तो महंगाई कमर तोड़ रही है। लॉकडाउन ने रोजगार ठप कर दिए है। आमद है नहीं और महंगाई है कि रुकने का नाम नहीं ले रही। सरकार को इस मुश्किल दौर में राहत पहुंचानी चाहिए लेकिन सरकार को तो मानो आम लोगों की तकलीफ से कोई सरोकार ही नहीं रह गया है। जब देश में चुनाव होते है तो महंगाई पर थोड़ा ब्रेक जरूर लगता है, फिर चुनाव खत्म और दाम बढ़ना शुरू। जब सियासी फायदे के लिए महंगाई पर ब्रेक लग सकता है, तो कोरोना के इस मुश्किल दौर में आमजन को राहत देने के लिए क्यों नहीं ? मानो सरकार असंवेदनशील हो चुकी है। आम आदमी लाचार है और सरकार से आस लगाए हुए है कि वह कुछ करेगी, वहीं सरकार है कि सिर्फ जनता को दिलासा देने के अलावा कुछ नहीं कर रही। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि सरकार की नीतियों से महंगाई बढ़ती जा रही है, सरकार खुद भी आए दिन पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाकर और अपनी इस करनी को देश के आर्थिक विकास के लिए जरूरी बताकर आम आदमी के जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही है। थोक महंगाई (WPI) के मोर्चे पर भी सरकार को बड़ा झटका लगा है। देश में अप्रैल के महीने में थोक महंगाई में रिकॉर्ड तोड़ तेजी देखने को मिली है। अप्रैल, 2021 में थोक महंगाई दर बढ़कर 10.49 फीसदी पर रही है, जो ऑल टाइम हाई है। जबकि मार्च में यह 7.29 फीसदी पर रही थी, जो 8 साल में सबसे ज्यादा थी। फरवरी में थोक महंगाई दर 4.17 फीसदी पर थी। फिलहाल अप्रैल में महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
2021 में 115 रुपये बढ़े रसोई गैस के दाम
वर्ष 2021 में घरेलू गैस की कीमत में बड़ी बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। जनवरी में इसकी कीमत में कोई बदलाव नहीं हुआ। पर 4 फरवरी को कीमत 694 रुपए से 25 रुपए बढ़कर 719 रुपए हो गई। उसके बाद 15 फरवरी को कीमत में 50 रुपए की तेजी आई और यह 769 रुपए का हो गया। फिर 25 फरवरी को 25 रुपए के उछाल के साथ यह 794 रुपए का हो गया। 1 मार्च को इसकी कीमत में फिर 25 रुपए की तेजी आई और यह 819 रुपए का हो गया। अप्रैल में कीमत में 10 रुपए की गिरावट आई और यह 809 रुपए का हुआ। मई में घरेलू गैस की कीमत में कोई बदलाव नहीं हुआ।
क्या बेहिसाब-बेलगाम मुनाफाखोरी है कारण !
बेकाबू महंगाई के पीछे एक तर्क ये दिया जा रहा है कि पिछले साल मानसून कमजोर रहा या पर्याप्त बारिश नहीं हुई, जिसके चलते खाद्य सामग्री के दाम बढ़े है। पर सवाल ये है कि क्या इसका असर सभी चीजों पर एकसाथ पड़ा है। कीमत इतनी ज्यादा होने के बावजूद बाजार में किसी भी आवश्यक वस्तु का अकाल-अभाव दिखाई नहीं पड़ता, पर जब आपूर्ति कम होती है तो बाजार में चीजें दिखाई नहीं पड़ती हैं और उनकी कालाबाजारी शुरू हो जाती है। मूल सवाल ये है कि क्या बेहिसाब-बेलगाम मुनाफाखोरी ही तो बेकाबू महंगाई का कारण नहीं है। सरकार को बाजार पर योजनाबद्ध तरीके से अंकुश लगाना चाहिए। उत्पादन लागत के आधार पर चीजों के विक्रय दाम तय होने चाहिए। जब सरकार कृषि उपज के समर्थन मूल्य तय कर सकती है तो वह बाजार में बिकने वाली चीजों की अधिकतम कीमत क्यों नहीं तय कर सकती?