निकोलस रोरिक :प्रसिद्ध रूसी कलाकार ने दिलाई जिला कुल्लू के नग्गर को पहचान
1923 में एक प्रसिद्ध रूसी कलाकार ने रूस से अपनी यात्रा की शुरुआत की और कई देशो में घूमने के बाद आखिरकार हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों में बसने का फैसला कर लिया, वो शख्सियत थे निकोलस रोरिक। निकोलस का जन्म रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुआ था, लेकिन अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने भारत में ही गुजारा था। निकोलस अपनी पत्नी हेलेना और दो बेटों जॉर्ज और स्वेतोस्लाव रोरिक के साथ हिमाचल की कुल्लू घाटी के नग्गर में आ बसे थे। प्राचीन समय के प्रतिभाशाली चित्रकारों में निकोलस का नाम तो शामिल है ही लकिन उनके बेटे स्वेतोस्लाव को भी सबसे प्रतिभाशाली चित्रकार के रूप में जाना जाता है। यही कारण है कि आज अपनी विश्व स्तरीय चित्रकला के लिए रोरिक परिवार को भारत से लेकर रूस तक याद किया जाता है।
1874 में सेंट पीटर्सबर्ग में एक कुलीन परिवार में जन्मे निकोलस रोरिक ने 1917 की रूसी क्रांति के बाद रूस से बाहर रहने का फैसला किया। बताया जाता है कि निकोलस भारत की कला संस्कृति का गहन अध्ययन करना चाहते थे और इसकी शुरूआत उन्होंने मुंबई के एलीफेंटा की गुफाओं से की थी। फिर ये सफर कोलकाता तक पहुंचा और इसके बाद निकोलस दार्जिलिंग पहुंचे वहां पांचवें दलाई लामा जिस घर में रूके थे उसे निकोलस ने अपना निवास-स्थान बनाया। जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला के सुन्दर और मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता था। दार्जीलिंग के कुछ महीने के प्रवास के दौरान उन्होंने 'हिज कंट्री 'शीर्षक से चित्र श्रृंखला बनाई जिसमें हिमालय पर्वत श्रृंखला को उच्च आध्यात्मिक सुंदरता के साथ चित्रित किया। हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी की वादियों से निकोलस इतने प्रभावित हुए कि दो दशकों से भी अधिक समय कुल्लू घाटी में बिताया। अपनी चित्रकारी कि कला से निकोलस ने नग्गर, कुल्लू और लाहौल को दुनिया के कलात्मक मानचित्र पर लाया। आज, इन उत्कृष्ट कृतियों को दुनिया भर में प्रदर्शित किया जाता है। मास्को में रोरिक के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र से लेकर चित्रकला परिषद बैंगलोर, इलाहाबाद संग्रहालय, भारत में हॉल एस्टेट नग्गर और न्यूयॉर्क में रोएरिच संग्रहालय तक निकोलस कि चित्रकला देखने को मिलती है।
न केवल कुल्लू घाटी बल्कि रोरिक परिवार लाहौल के प्रति भी बेहद जुनूनी थे। कहा जाता है कि लाहौल के ठाकुर प्रताप चंद ने उन्हें प्रसिद्ध शशूर गोम्पा के पास केलांग के ऊपर गुंगशुल गाँव में बसाने में मदद की थी। तब पूरा लाहौल निकोलस और स्वेतोस्लाव के लिए एक स्टूडियो था, जिन्होंने वहां 130 से ज्यादा उत्कृष्ट कृतियों को चित्रित किया था, उन्होंने विशेष रूप से गुंगशूल में ये कार्यशाला बनाई थी जिसे अंतिम रूप दिया गया था।
- स्वेतोस्लाव रोरिक को मिल चूका है "पद्म भूषण" अवार्ड
निकोलस रोरिक के बेटे स्वेतोस्लाव रोरिक भी एक प्रभावशाली चित्रकार थे। स्वेतोस्लाव ने कम उम्र में ही चित्र बनाना शुरू कर दिया था। बताया जाता है कि उन्होंने कला प्रोत्साहन सोसाइटी स्कूल की कक्षाओं में भाग लिया, होम थिएटर सेटिंग्स के लिए डिज़ाइन तैयार किए, और यहाँ तक कि थिएटर डिज़ाइन स्केच पर अपने काम में अपने पिता की मदद भी की। अपने पिता कि तरह ही स्वेतोस्लाव ने भी चित्रकला में एक अलग पहचान बनाई है। संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए, और शांति के लिए उनके योगदान के लिए, स्वेतोस्लाव रोएरिच को भारत के सर्वोच्च नागरिक आदेश "पद्म भूषण", सोवियत आदेश "लोगों की दोस्ती" सहित विभिन्न देशों के ओवरनैटल पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। स्वेतोस्लाव रोरिक पंडित जवाहर लाल नेहरू के अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार के विजेता भी थे। वह बल्गेरियाई ऑर्डर ऑफ किरिल और मेथोडी के साथ-साथ बुल्गारिया के वेलिकोटिरन विश्वविद्यालय के मानद डॉक्टर के खिताब के धारक रहे थे।
रोरिक आर्ट म्यूजियम
रोरिक आर्ट गैलरी में अलग-अलग तरह की कलात्मक चीजों को संजोया गया है। रोरिक आर्ट गैलरी, निकोलस रोरिक के घर यानि रोरिक हाउस में ही बनाई गई है, जहां निकोलस रोरिक की तरह तरह की पेंटिंग्स को रखा गया है। साथ ही यहाँ निकोलस रोरिक और उनके परिवार की चीजों को भी बंद कमरों में उसी तरह रखा गया है जैसे उनके समय में हुआ करती थी। साथ ही उनकी विंटेज कार को भी संजोकर रखा गया है। हालांकि अब निकोलस रोरिक और उनके परिबार के इस घर के अंदर जाने की अनुमति किसी को नहीं पर घर की खिडकियों से स्न्धेर देख रोरिक परिवार के रहन सहन को महसूस जरुर किया जा सकता है। इस घर के हर कोने हर जगह सिर्फ और सिर्फ कला ही झलकती है। रोरिक हाउस के बहार ही एक पेड़ के नीचे कई तरह के पत्थर की मुर्तियां राखी गई है। कहा जाता है ये सभी मूर्तियां निकोलस रोरिक अलग अलग जगह से लेकर आगे थे |
- एक पेंटिंग की कीमत थी 12 मिलियन डॉलर
रोरिक के चित्रों के मूल्य का अंदाजा इस बात से आसानी से लगाया जा सकता है कि 2013 में लंदन में नीलाम हुई उनकी एक पेंटिंग की कीमत 12 मिलियन डॉलर थी। कहा जाता है कि रोएरिच ने हिमालय की अपनी यात्रा के दौरान परिदृश्य का गहन अध्ययन किया था। और पहाड़ उनके चित्रों में रंग सूर्योदय और सूर्यास्त के समय बर्फीली चोटियों के जादू को फिर से जगाते हैं। ये भी माना जाता है कि रोएरिच की विभिन्न आध्यात्मिक प्रथाओं में रुचि थी और उनके चित्रों में एक सम्मोहक गुण।
- रोरिक के प्रसिद्ध चित्र
रोएरिच के कुछ सबसे प्रसिद्ध चित्रों में शामिल हैं बुद्ध द विनर (पूर्व सेवाओं का बैनर), 1925; सेंट सर्जियस द बिल्डर, 1925; नंगा पर्वत (बर्फीले पहाड़ों के नीचे की घाटी), 1935-36; हिमालय (माइट ऑफ द स्नो), 1945; मास्टर की कमान, 1947, पवित्र हिमालय, 1933, आदि।