समस्त किन्नौर की एक आवाज " नो मींज़ नो "
वैश्वीकरण के इस युग में पर्यावरणीय चुनौतियों और समस्याओं ने एक ऐसा माहौल बना दिया है जिसकी कल्पना शायद ही कभी किसी ने की हो। लगातार दरकते पहाड़ों से हिमाचल में मौत का मातम पसर गया है। पिछले एक महीने में किन्नौर में दो बड़े हादसे हुए है जिसमें कई लोगों की जान चली गई है। नेता अब सामने आकर प्रभावित हुए लोगों के परिवार वालों से सहानुभूति जता रहे है। वही नेता जो अब तक किन्नौर के पहाड़ों में गूंजती युवाओं की आवाज़ " नो मींज़ नो " को सुनकर भी अनसुना करते रहे। अब कोई विद्युत् परियोजनाओं को आपदा का कारण बता रहा है, कोई भारी बरसात को तो कोई जलवायु परिवर्तन को। कारण कोई भी हो सत्य ये है कि पहाड़ों की स्थिति ठीक नहीं है। आर्थिक विकास की खोखली नीतियों ने इन पहाड़ों को आंतरिक रूप से झकझोर कर रख दिया है जिससे इनके आंचल में बसें लोगों के लिए खतरा लगातार बढ़ रहा है।
हर राजनीतिक पार्टी सत्ता में आते ही विकास को गति देने की बात कहती है। प्रदेश की आर्थिकी को बढ़ाने के लिए विकास ज़रूरी है, मगर अब किन्नौर में बने हाईडल प्राेजेक्ट्स संभवत: विकास की जगह विनाश का कारण बन रहे है। जिला किन्नौर में इस वक्त सतलुज बेसिन पर ही 22 छाेटे-बड़े विद्युत् प्राेजेक्ट्स बन चुके हैं और अब एक नया प्रोजेक्ट जंगी थोपन विद्युत् प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। घाटी के निवासी अप्रैल 2021 से सतलुज पर प्रस्तावित 804 मेगावाट के जंगी थोपन पोवारी जलविद्युत परियोजना (जेटीपी एचईपी) का विरोध कर रहे हैं। जानकार मानते है कि किन्नौर में सतलुज नदी के बेसिन पर 22 बिजली प्रोजेक्टों का निर्माण किया गया है जो नुक्सान का एक बड़ा कारण है। सतलुज ने 90 के दशक की शुरुआत से राज्य की जलविद्युत महत्वाकांक्षा का सबसे बड़ा भार उठाया है। जानकारी के अनुसार कुल स्थापित क्षमता में से 56 प्रतिशत विद्युत् उत्पादन (5720 मेगावाट) सतलुज बेसिन में किया जाता है। नदी की प्राकृतिक स्थिति के साथ इतने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी ने सतलुज बेसिन में जीवन, आजीविका और परिस्थिति को काफी प्रभावित किया है। इसके अलावा सड़कों के निर्माण के लिए होने वाले ब्लास्ट से भी पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। किन्नौर जिले के अधिकांश पहाड़ अति संवेदनशील हैं। बरसात के दौरान यह सबसे ज्यादा दरकते हैं। हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर के पहाड़ बिजली प्रोजेक्टों के निर्माण से खोखले हो रहे हैं। लगातार ब्लास्टिंग बढ़ने से किन्नौर जिले में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं।
किन्नौर की स्थिति पर भूवैज्ञानिकों का मानना है की अंधाधुंध जल विद्युत दोहन से किन्नौर के पहाड़ दरकने लग गए हैं। किन्नौर के पहाड़ अति संवेदनशील हैं। किन्नौर में पहाड़ों की बनावट कुछ ऐसी है कि इनमें बरसात में काफी ज्यादा नमी उत्पन्न होती है। ये पहाड़ छोटी-छोटी चट्टानों के टुकड़ों और मिट्टी से बने हैं। भूकंप की दृष्टि से भी यह क्षेत्र सिस्मिक जोन पांच के तहत आता है। इन प्राकृतिक हादसों से सबक लेते हुए किन्नौर को तत्काल ईको सेंसिटिव जोन घोषित किया जाना जरूरी हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार सतलुज नदी किन्नौर की जीवन रेखा है। इसके बगैर किन्नौर में जीवन असंभव है। वैदिक काल की जीवनदायी शतद्रु (सतलुज) ने कभी सोचा नहीं था कि उसे अंधाधुंध विद्युत दोहन के कारण 150 किलोमीटर में दम घुटकर भूमिगत सुरंगों में बहना पड़ रहा है। किन्नौर में सतलुज और उसकी सहायक नदियों पर पहले ही पन बिजली परियोजनाओं का जाल बिछा है। अब कोई भी बिजली परियोजना इस क्षेत्र में नहीं होनी चाहिए। पर्यटन, पर्यावरण और विद्युत दोहन आपस मेें प्रतिपूरक हैं।
सरकार ठंडे बस्ते से निकाले शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट
किन्नौर के पहाड़ कच्चे, खुरदरे और संवेदनशील हैं। इस कारण ये अपनी वास्तविक अवस्था से हिल-ढुल गए हैं। विशेषज्ञ मानते है कि पन बिजली परियोजनाओं के बारे में शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट को सरकार को ठंडे बस्ते से निकाल लेना चाहिए। उस पर सरकार को अमल करना चाहिए। इस रिपोर्ट के मुताबिक ट्री लाइन से ऊपर कोई भी पन विद्युत परियोजनाएं नहीं बननी चाहिए। प्रोजेक्टों के बीच में भी एक निश्चित दूरी होनी चाहिए। रिटायर्ड अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन) अभय शुक्ला ने अपनी रिपोर्ट में ये भी साफ किया था कि हिमाचल के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सभी तरह के प्रोजेक्ट्स पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिए। विशेषकर रावी, चिनाव और सतलुज बेसिन पर कोई भी प्रोजेक्ट नहीं होना चाहिए। मुख्य नदियों पर लगने वाले बड़े-बड़े हाइडल प्रोजेक्ट उत्तराखंड जैसी त्रासदी को न्योता दे रहे हैं।
सरकार को बनानी चाहिए मॉनिटरिंग एजेंसी
विनय चौधरी जो एक जियोलॉजिस्ट प्लस हाइड्रो जियोलॉजिस्ट है और पिछले 11 सालों से इसी फिल्ड में काम कर रह है, मानते है कि किन्नौर की इस स्थिति का मुख्य कारण प्राइवेट कंपनियों द्वारा की जा रही कंस्ट्रक्शन और ब्लास्टिंग है। ये पहाड़ यूँ तो स्थिर है लेकिन ब्लास्टिंग और कटाई के बाद ये काफी हद तक अस्थिर हो जाते है। ये साफ़ है की ज़्यादातर भूस्खलन इन हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के आसपास ही हो रहे है। किसी भी टनल के निर्माण में इंजीनियरिंग और जियोलॉजी दोनों ही महत्वपूर्ण फैक्टर्स होते है। एक जियोलॉजिस्ट का काम है की वो किसी भी निर्माण के दौरान निर्माण स्थल में किस तरह के पत्थर सामने आ सकते है इसका पता लगाए और फिर बताए की किस इंटेंसिटी से ब्लास्टिंग की जा सकती है, जो सुरक्षित होगी और पहाड़ों को नुक्सान नहीं पहुंचाएगी। लेकिन जब निजी एजेंसियां ये काम करती है तो इन बातों का कम ध्यान रखा जाता है, इसलिए गड़बड़ तो होगी ही। ब्लास्टिंग किस ग्रेड की हो रही है इसे रिपोर्ट करने के लिए सरकार द्वारा कोई मॉनिटरिंग एजेंसी बनाई जानी चाहिए।
आधा किन्नौर मानव जनित आपदाओं का घर
किन्नौर के चौरा बॉर्डर से लेकर नाथपा एरिया तक का भाग एसजेवीएनएल से इफैक्टिड एरिया में आता है। नाथपा से आगे करच्छम तक जेएसडब्लू कंपनी से इफैक्टिड एरिया में आता है। इसी तरह करच्छम से आगे शौगठंग तक एचपीसीएल कंपनी के कारण इफैक्टिड एरिया में है। यही क्रम आगे भी है। कहने का मतलब है आधा किन्नौर छोटे बड़े हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से प्रभावित है व आधा किन्नौर मानव जनित आपदाओं का घर बन चुका है। फिर भी सरकार में बैठे किन्नौर के नेता एवं ब्यूराेक्रेट्स चुप्पी साधे हुए हैं। हमारा यही कहना है कि नाे मींज़ नाे।
-ललित माेहन मेहता, ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट।
जल, जंगल, जमीन बचाने को पूरा क्षेत्र एकजुट
हमारा मुख्य लक्ष्य है किन्नौर काे बचाना है। अवैज्ञानिक तरीके से ब्लास्टिंग करना गलत है। अति संवेदनशील क्षेत्र की जनता काे बचाने के लिए हम हर संभव प्रयास करेंगे। जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण काे बचाए रखने के लिए पूरा क्षेत्र एकजुट है। इसके लिए राजनीति से उपर उठ कर काम करना हाेगा। जंगी-थाेपन बिजली परियाेजना के खिलाफ पूरा किन्नौर एकजुट है। सरकार और एसजेवीएन काे हम आगाह करना चाहेंगे कि भूल कर भी किन्नौर में बिजली परियाेजना स्थापित करने की काेशिश न करें। अन्यथा कई क्षेत्र बटसेरी और निगुलसेरी की तरह दिखेंगे। इसलिए नाे मींज़ नाे।
-नरेंद्र केविल कीर्ती नेगी, शिक्षाविध एवं साेशल एक्टिविस्ट।
टनल प्रोजेस्ट्स के मैं सख्त खिलाफ : सूरत
वन निगम के उपाध्यक्ष एवं भाजपा नेता सूरत नेगी का कहना है कि किन्नौर में बनने वाले टनल प्रोजेस्ट्स के वे सख्त खिलाफ है। इन प्रोजेक्ट्स को बनाने के लिए हो रही ब्लास्टिंग ही किन्नौर के दरकते पहाड़ों का कारण है। वे इस मुद्दे को उठाएंगे और सरकार से दरख्वास्त करेंगे कि ऐसे प्रोजेक्ट्स अब किन्नौर में और न लाया जाएं ।
बर्दाश्त की पराकाष्ठा हुई, अब पूर्ण विराम का वक्त: भंडारी
प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष निगम भंडारी ने कहा कि पहाड़ाे से छेड़छाड़ ठीक नहीं है, अब नाे मींज़ नाे। उन्हाेंने कहा कि शांत वातावरण, साफ़ सुथरी जल धारा और उपजाऊ मिट्टी जैसे वरदान हम हिमाचल वासियों के पास थे, जिस पर हम गर्व महसूस करते थे। पर आज किन्नौर की धरती पर नदी के बहाव को रोकना, पहाड़ों के बीच सुरंग खोदना और लगातार ब्लास्टिंग से पहाड़ों को काटना जैसे कई काम किए गये जिस से आज किन्नौर वासी हर पल ख़तरा महसूस कर रहे हैं। लगातार बन रहे हाईड्रो प्रोजेक्ट्स से किन्नौर और किन्नौर वासी हर पल ख़तरे में जीवन जी रहे हैं। भण्डारी कहते है कि अब बर्दाश्त की पराकाष्ठा हो गई है। अब पूर्ण विराम का समय आ गया है। युकां अध्यक्ष का कहना है कि हिमाचल सरकार हाईड्रो प्रोजेक्ट पॉलिसी में ज़रूरी बदलाव लाए और किसी भी नये प्रोजेक्ट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।