धर्मशाला में सुधीर ऑलमोस्ट फाइनल, पच्छाद में आर्य का दावा भी नहीं है कमतर
पच्छाद और धर्मशाला में कभी भी उपचुनाव का औपचारिक बिगुल बज सकता है। दोनों ही मुख्य राजनैतिक दलों के लिए ये चुनाव प्रतिष्ठता का प्रश्न है, किन्तु दोनों की ही डगर मुश्किल है। भाजपा के पास सत्ता है, संसाधन है और कुछ हद तक समीकरण भी। पर पार्टी की अंदरूनी खींचतान इन सब पर भारी पड़ सकती है। विशेषकर धर्मशाला में।
कांग्रेस की बात करें तो 2017 में प्रदेश की सत्ता गवाने के बाद से पार्टी के लिए कुछ भी ठीक नहीं घटा है। 2019 लोकसभा में पार्टी की दुर्गति के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हौंसले पस्त है और कंधे झुके हुए। पार्टी का संगठन खेतों में लगाए जाने वाले स्केरी क्रो सा हो चूका है जो सिर्फ दिखाने को है, पर करता कुछ नहीं है। बावजूद इसके पार्टी गहरी जड़ें भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। बहरहाल, आज बात करते है कांग्रेस की।
पच्छाद में मुसाफिर या आर्य !
पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए कांग्रेस को एक अदद जीत की सख्त दरकार है। ऐसे में कांग्रेस उप चुनाव को हलके में नहीं ले रही है। पच्छाद की बात करें तो कांग्रेस नेता अनुभवी नेता और सात बार इस सीट से विधायक रहे गंगूराम मुसाफिर पर एक बार फिर दाव खेल सकती है। हालांकि पिछले दो चुनाव में पच्छाद की जनता ने गंगूराम को पछाड़ा है किन्तु फिर भी टिकट के लिए मुसाफिर की दावेदारी मजबूत है । मुसाफ़िर के अतिरक्त एक और नाम जो टिकट की दौड़ में है, वो है दिनेश आर्य। दिनेश राजगढ़ क्षेत्र से नगर पंचायत राजगढ़ के पूर्व चेयरमैन व पच्छाद कांग्रेस मंडल के महासचिव है। साथ ही दिनेश आर्य प्रदेश के सबसे कम आयु के नगर पंचायत के चेयरमैन भी रहे हैं। खासतोर से युवा वर्ग को लुभाने के लिए कांग्रेस आर्य पर दांव खेल सकती है। बीते दो चुनाव में जीआर मुसाफिर लगातार हार का सामना कर चुके हैं, ये समीकरण भी आर्य का पक्ष मजबूत करता है।
धर्मशाला: सुधीर इज बैक, कांग्रेस ऑन फ्रंट फुट
धर्मशाला में कांग्रेस टिकट के लिए सुधीर शर्मा के ताल ठोकने के बाद टिकट को लेकर कोई संशय नहीं बचा है। संभवतः एकाध दिन में कांग्रेस सुधीर के नाम का औपचरिक एलान कर दे। इसमें कोई संशय नहीं है कि मंत्री रहते सुधीर ने धर्मशाला में खूब विकास किया है। पर चुनाव काम के आधार पर कम और समीकरणों के आधार पर ज्यादा जीते जाते है। 2017 में समीकरण सुधीर के काम पर भारी पड़े थे और जनता ने सुधीर को हरा दिया। पर तब से अब तक समीकरण भी बदले है और विकास के नाम पर भी वर्तमान सरकार के खाते में कुछ ख़ास नहीं है। ऐसे में गुट-गुट में बंटी भाजपा के सामने अब कांग्रेस फ्रंट फुट पर दिख रही है।