बिंदल को प्रभार : इनाम का पता नहीं पर हार का पर्चा न फट जाएं
इनाम का पता नहीं पर हार का पर्चा फिर फट सकता है, हाशिये पर चल रहे डॉ राजीव बिंदल की स्थिति फिलवक्त कुछ ऐसी ही लग रही है। भाजपा के इन वरिष्ठ नेता को न सरकार में ज़िम्मेदारी मिल रही है और न ही संगठन में, बस चुनाव लड़वाने का प्रभार मिलता जा रहा है। प्रभार भी ऐसे चुनाव लड़वाने का, जहां पार्टी की डगर कठिन होती है। पहले सोलन नगर निगम चुनाव का प्रभारी बनाया गया और अब अर्की उपचुनाव का। सोलन में भी अंदरूनी अंतर्कलह और खींचतान के चलते पहले से पार्टी बैकफुट पर थी और अर्की में भी यदि बगावत के सुर इसी तरह प्रखर रहे तो कोई चमत्कार ही पार्टी की नाव पार लगा सकता है। फर्क इतना है कि सोलन में पार्टी के दो गुटों में से एक गुट बिंदल के निष्ठावानों का ही है, जबकि अर्की की राजनीति में डॉक्टर साहब की सीधी दखल नहीं है। ऐसे में अर्की में शायद बिंदल सोलन से ज्यादा असरदार दिखे। यहां एक बात पर गौर करना भी जरूरी है, यदि सोलन नगर निगम भाजपा जीत भी जाती तो शायद क्रेडिट मुख्यमंत्री के तूफानी दौरों को मिलता, जहां उन्होंने वार्ड -वार्ड छान मारा था। वहीं हार के बाद मुख्यमंत्री के जनाधार पर तो सवाल उठे ही, पर खुलकर ये भी कहा जाने लगा कि डॉ बिंदल का जादू अब फीका पड़ चुका है। दरअसल बिंदल के बेहद करीबी माने जाने वाले नेता भी चुनाव हार गए थे। नतीजन फिलवक्त नगर निगम चुनाव के बाद अब सोलन में बिंदल गुट हाशिए पर है और विरोधी गुट हावी। अब डॉ राजीव बिंदल को पार्टी के फिर एक बेहद मुश्किल चुनौती दे दी है, यहां बिंदल के लिए खुद को साबित करना मुश्किल होने वाला है।
इसमें कोई संशय नहीं है कि डॉ राजीव बिंदल संगठन के भी डॉक्टर है, अपने लम्बे राजनीतिक सफर में उन्होंने कई मौकों पर अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है। उनकी जमीनी पकड़ और पॉलटिकल मैनेजमेंट को लेकर कोई सवाल नहीं है, पर जो अर्की भाजपा की वर्तमान स्थिति है उसमें जीत हासिल करना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर से कम नहीं है। जीत के लिए परिस्थितिओं को अनुकूल बनाना बेहद जटिल नज़र आ रहा है। ये कठिनाईयां चुनावी प्रतिद्वंदियों की बदौलत नहीं बल्कि पार्टी की आपसी अंतर्कलह का नतीजा है। अर्की में पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा और पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रतन सिंह पाल के बीच टिकट को लेकर जंग चल रही है। इस जंग की ज्वाला फिलहाल शांत होती नहीं दिख रही। पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा अब खुलकर अपनी नाराज़गी जाहिर कर रहे है। दरअसल 2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा की जगह टिकट रतन सिंह पाल को दिया गया। रतन सिंह पाल 2017 का चुनाव हार गए लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें हिमाचल प्रदेश कॉपरेटिव डेवलपमेंट फेडरेशन का चेयरमैन बनाया गया। संगठन में भी रतन सिंह पाल को प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष का दायित्व मिला जबकि दूसरी ओर पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा को पूरी तरह से साइड लाइन कर दिया गया। अब अर्की उपचुनाव से पहले ही गोविन्द राम शर्मा मैदान में है और पार्टी से टिकट की मांग कर रहे है। दोनों ही नेता सेटल होने के मूड में नहीं है। जो अंतर्कलह अर्की भाजपा में दिख रही है उसमें जीत की उम्मीद धुंधली है और अब ऐसे में बिंदल के हाथों इस डूबती नाव का पतवार थमा दिया गया है। वक्त रहते यदि बगावत नहीं साधी गई तो अनुकूल नतीजे की अपेक्षा बेमानी ही होगी।
डॉ सैजल पर भी उम्मीदों का बोझ
भाजपा की ओर से अर्की उपचुनाव के लिए डॉ राजीव बिंदल को प्रभारी व स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल को सह प्रभारी नियुक्त किया गया है। दो डॉक्टरों की ये जोड़ी सोलन नगर निगम चुनाव में फेल हो चुकी है। वहीं डॉ राजीव सैजल का जादू परवाणु नगर परिषद चुनाव में भी नहीं दिखा था। ऐसे में जाहिर है जिला के इकलौते मंत्री होने के नाते अर्की में उन पर भी काफी दबाव होगा।
कांग्रेस के संभावित भीतरघात से भाजपा को रहेगी उम्मीद
यदि प्रतिभा सिंह अर्की से चुनाव नहीं लड़ती है तो टिकट के मुख्य दावेदारों में संजय अवस्थी का नाम सबसे आगे दिख रहा है। उनके अतिरिक्त वीरभद्र परिवार के करीबी राजेंद्र ठाकुर भी टिकट के दावेदार है। इन दोनों में भी टिकट को लेकर खींचतान है। माना जा रहा है कि वीरभद्र सिंह का परिवार राजेंद्र ठाकुर की पैरवी कर सकता है, हालांकि अंतिम निर्णय पार्टी आलाकमान ही लेगा। उधर संजय अवस्थी आलाकमान में अच्छी पैठ रखते है जिसके बूते उनका दावा कम नहीं आंका जा सकता। ऐसे में यक्ष प्रश्न ये ही है कि इनमें से जिसका भी टिकट कटेगा क्या वो दूसरे के साथ खड़ा होगा ? कांग्रेस की इसी संभावित अंतर्कलह और भीतरघात पर भाजपा की उम्मीद भी टिकी होगी।