अजब राजनीति: उत्तराखंड में 21 साल से भी कम समय में 13 सीएम, दो बार राष्ट्रपति शासन
चार माह में तीन मुख्यमंत्री, उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर से लाइमलाइट में है। सियासत महाठगिनी है, ये कब किसे फर्श से अर्श पर ले जाएं और कब किसे अर्श से फर्श पर पटक दे कोई नहीं जानता। हाथ से रेत की तरह फिसलती सत्ता को संभाल पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती और मौजूदा परिवेश में उत्तराखंड राज्य इस बात का सबसे बढ़िया उदहारण है। अपने 21 साल के इतिहास में इस राज्य ने कुल 13 मुख्यमंत्री देखे है और दो बार इस प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग चुका है। ये कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि विभिन्न राजनैतिक पार्टियों ने उत्तराखंड को शायद मुख्यमंत्री परिवर्तन की प्रयोगशाला समझ लिया है। मुख्यमंत्री के खिलाफ जनता आवाज उठाए तो इस्तीफा, कोई आरोप लगे तो इस्तीफा, तो कभी संवैधानिक संकट के नाम पर इस्तीफ़ा। हालहीं में सीएम पद से इस्तीफा देने वाले तीरथ सिंह रावत को हटाने का कारण संवैधानिक संकट ही बताया गया है। नियम के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने के 6 महीने के अंदर उन्हें विधानसभा का सदस्य बनना था, लेकिन संविधान के आर्टिकल 151 के मुताबिक अगर विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचता है तो वहां उपचुनाव नहीं कराए जा सकते। सो तीरथ सिंह रावत ने इस्तीफा दे दिया। पर सवाल ये है कि क्या चार महीने पहले भाजपा को इसका ख्याल नहीं था? दरअसल, इनसाइड स्टोरी कुछ और ही बताई जा रही है। अपने छोटे से कार्यकाल में तीरथ सिंह रावत कोई ऐसा करिश्मा नहीं कर पाए कि उन्हें आगामी चुनाव में फेस बनाया जा सके, बल्कि अपने बेतुके बयानों से उन्होंने पार्टी की किरकिरी ही करवाई। पार्टी में भी उनके के खिलाफ विरोध की आवाज तेज हो गई थी, इसलिए संवैधानिक संकट को ढाल बनाकर पार्टी ने उनकी छुट्टी कर दी।
अंतरिम विधानसभा में मिले दो मुख्यमंत्री
उत्तराखंड की राजनीति में सीएम बदलना कोई नई बात नहीं है। 21 साल से भी कम समय में 13 मुख्यमंत्री शपथ ले चुके है जिनमें सबसे अधिक 3 बार हरीश रावत ने शपथ ली है। साल 2000 में आस्तित्व में आए उत्तराखंड प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने नित्यानंद स्वामी, पर महज एक साल के भीतर ही मुख्यमंत्री पद से उनकी छुट्टी हो गई। 30 अक्टूबर 2001 में सत्ता संभालते हैं भगत सिंह कोश्यारी जो आजकल महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं, पर बतौर मुख्यमंत्री उनका सफर भी महज 122 दिन में समाप्त हो गया। यानी अंतरिम विधानसभा में ही उत्तराखंड को दो मुख्यमंत्री मिले।
सिर्फ तिवारी ने 5 साल संभाली कुर्सी
दो मार्च 2002 को उत्तराखंड में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बाद कांग्रेस की सरकार बनी और नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने। दिलचस्प बात ये है कि राज्य के गठन से लेकर अब तक केवल नारायण दत्त तिवारी ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।
दूसरी विधानसभा में तीन मुख्यमंत्री
मार्च 2007 में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की सत्ता में वापसी हुई और भुवन चंद खंडूरी मुख्यमंत्री बने। पर पार्टी के भीतर हावी खींचतान के चलते जून 2009 में उन्हें हटाकर आलाकमान ने रमेश पोखरियाल को मुख्यमंत्री बनाया। पर पोखरियाल कुछ ख़ास नहीं कर सके और विधानसभा चुनाव से करीब 6 माह पहले फिर से भुवन चंद खंडूरी सीएम की कुर्सी मिल गई। पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले असंतोष साधने को सीएम फेस बदला था, लेकिन ये कारगार सिद्ध नहीं हुआ।
तीसरी विधानसभा में तीन बार मुख्यमंत्री बने रावत
मार्च 2012 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता वापसी हुई और विजय बहुगुणा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। पर करीब दो साल बाद ही जनवरी 2014 में विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को सीएम बना दिया गया। इससे पहले हरीश रावत केंद्र में सक्रिय थे लेकिन प्रदेश की सत्ता उन्हें उत्तराखंड खींच लाई। पर कांग्रेस की अंतर्कलह के बीच हरीश रावत के लिए कुर्सी संभाले रखना बिलकुल भी आसान नहीं हुआ। तीन साल में हरीश रावत ने तीन बार सीएम पद की शपथ ली और दो बार राष्ट्रपति शासन लगा। आम जनता को भी हरीश रावत की सरकार पसंद नहीं आयी और नतीजन 2017 के विधानसभा चुनाव में खुद हरीश रावत भी हार गए। रावत दो सीटों से चुनाव लड़े थे और दोनों जगह जनता ने उन्हें नकार दिया।
चौथी विधानसभा में अब तक तीन सीएम फेस
मार्च 2017 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में लौटी। त्रिवेंद्र सिंह रावत को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। करीब चार साल त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री रहे और लगने लगा कि शायद नारायण दत्त तिवारी के बाद वे दूसरे मुख्यमंत्री होंगे जो अपना कार्यकाल पूरा करें। पर राज्य में सरकार की लोकप्रियता के गिरते ग्राफ के चलते विधानसभा चुनाव के एक साल पहले भाजपा ने फेस बदल दिया। उनकी जगह सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन तीर्थ सिंह रावत की भी चार महीने से भी कम समय में विदाई हो गई। अब वर्तमान में मुख्यमंत्री है पुष्कर सिंह धामी। यहां भी पार्टी की मुश्किल कम होती नहीं दिख रही। दरअसल सतपाल महाराज और धन सिंह रावत को सीएम फेस का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन दोनों को ही पार्टी ने नहीं चुना। ऐसे में जाहिर है उत्तराखंड भाजपा में अब गुटबाजी चरम पर है।
'बयानवीर' तीरथ सिंह रावत के विवादित बयान
महज 115 दिन के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे तीरथ सिंह रावत भाजपा लिए राहत कम लाये और आफत ज्यादा बने। उनके कई बयानों ने आम जनता में भी पार्टी की छवि को ख़राब किया। कभी कुंभ की भीड़ तो कभी महिलाओं की फटी जींस पहनने को लेकर तीरथ सिंह रावत के बयानों से बीजेपी बैकफुट पर आ गई। सीएम बनते ही तीरथ सिंह रावत ने एक चौंकाने वाला बयान दिया। उन्होंने कहा कि मां गंगा की कृपा से कुंभ में कोरोना नहीं फैलेगा। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना भगवान से कर दी। इन बयानों की वजह से उनकी खूब किरकिरी हुई। इसके बाद सामने आया उनका संस्कार पुराण जिसमे उन्होंने फटी जींस पहनने वाली महिलाओं को संस्कार का ज्ञान बांटा। न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि पूरे देश में उनकी इस संकीर्ण सोच की जमकर निंदा हुई, उनके खिलाफ प्रदर्शन हुए।
तीरथ सिंह रावत यही नहीं थमे। इसके बाद उन्होंने जब अपने सामान्य ज्ञान का प्रदर्शन किया तो अच्छे-अच्छों ने सिर पकड़ लिया। एक बयान में उन्होंने भारत को अमेरिका का गुलाम बता दिया। उन्होंने कहा था कि 130-135 करोड़ लोगों की आबादी वाला भारत देश आज भी राहत महसूस करता है। अन्य देशों की अपेक्षा हम लोग 200 साल अमेरिका के गुलाम थे। पूरे विश्व के अंदर अमेरिका का राज था, लेकिन आज के समय में वो डोल गया। कोरोना काल में राशन वितरण को लेकर उन्होंने जो विचार साझा किये वो तो और भी अचंभित करने वाले थे। उन्होंने कहा कि ' सरकार ने हर घर में 5 किलो प्रति यूनिट अनाज देने का काम किया। जिसके 10 थे 50 किलो आ गया, जिसके 20 थे उसको 1 क्विंटल मिला। 2 थे तो 10 किलो ही आया। लोगों ने स्टोर बना लिए। खरीददार तलाश लिए। ज्यादा राशन मिलने से लोगों को एक दूसरे से जलन होने लगी। मेरे 2 हैं तो मुझे 10 किलो ही मिला। 20 वाले को 1 क्विंटल क्यों मिला? इसमें दोष किसका है, उसने 20 पैदा किए और आपने 2 पैदा किए। उसको 1 क्विंटल मिल रहा तो जलन क्यों? जब समय था तब आपने 2 ही किए 20 क्यों नहीं किए?