2007 से सैजल ही कसौली के सुल्तान, 2022 में कौन ?
2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक है और कसौली निर्वाचन क्षेत्र की राजनीति अब भी सुस्त। विशेषकर कांग्रेस की बात करें तो लगातार तीन चुनाव हारने के बाद भी पार्टी अब तक स्लीपिंग मोड में ही है। अगर परवाणु को छोड़ दिया जाए तो बीते साढ़े तीन साल में पार्टी हर जगह पार्टी बैकफुट पर दिखी है। वहीँ तीन बार के विधायक डॉ राजीव सैजल का कद और पद दोनों बढ़ चुके है। थोड़े बहुत गिले शिकवे है भी तो मंत्री अपने सरल व्यवहार से हर समस्या का समाधान कर लेते है। ऐसे में सुस्त दिख रही कांग्रेस अगर वक्त रहते चुस्त नहीं हुई तो देर हो जाएगी। 2007 का विधानसभा चुनाव 36 साल के डॉ राजीव सैजल का पहला चुनाव था। उनका सामना था रघुराज से जो कसौली से पहले ऐसे नेता थे जिन्हे मंत्री पद मिला था, पर वह जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे। जनता ने नए और कम अनुभवी डॉ राजीव सैजल पर वोटों का प्यार बरसाया। डॉ राजीव सैजल लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद अब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री बन चुके है। 2007 से अब तक सैजल ही कसौली की सियासत के सुलतान है। उधर बीते दो चुनाव में डॉ राजीव सैजल को कड़ी टक्कर देने वाले कांग्रेस नेता विनोद सुलतानपुरी अब भी अपनी जमीन मजबूत करने की जद्दोजहद में है। माहिर मानते है कि आम जनता से सुलतानपुरी की दुरी और कांग्रेस का भीतरघात पिछले चुनावों में उन पर भारी पड़ा। 2022 नजदीक है पर अब भी सुल्तानपुरी टॉप गियर में नहीं दिख रहे। हालांकि कांग्रेस में उनके विरोधी खेमे का दमखम भी अब पहले जैसा नहीं दिखता। विशेषकर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के उपरांत समीकरण अब तेजी से बदल सकते है। ऐसे में सुल्तानपुरी किस तरह इस स्थिति में अपनी जड़े मजबूत करते है, ये देखना रोचक होगा।
कसौली कांग्रेस में कुछ तो पक रहा है
पिछले कुछ समय से कसौली कांग्रेस का एक खेमा चेहरा बदलने को लेकर लामबंद होता दिख रहा है। हालांकि अभी तक इनकी मांग सोशल मीडिया से आगे नहीं बढ़ी है और न ही ये लोग जमीनी स्तर पर ज्यादा सक्रीय दिख रहे है, पर जाहिर है कुछ न कुछ जरूर पक रहा है। ऐसे में आगामी दिनों में कसौली कांग्रेस की राजनीति रोचक होने वाली है।
कई नेताओं की हसरत मन में ही रह गई
कसौली निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में से है जो हमेशा आरक्षित रहे है। ऐसे में कई कद्दावर नेताओं की विधायक-मंत्री बनने की हसरत कभी पूरी नहीं हुई। कुछ की उम्र संगठन की सेवा में बीत गई, तो कुछ को सत्ता सुख के नाम पर बोर्ड-निगमों में एडजस्ट कर दिया गया। माना जाता है कि सामान्य वर्ग के आने वाले कई नेताओं ने कई मौकों पर अपनी पार्टी प्रत्याशी की राह कठिन करी ताकि उनकी कुव्वत बनी रहे।
कांग्रेस की अंतर्कलह सैजल के लिए संजीवनी
2007 में अपने पहले चुनाव में डॉ राजीव सैजल ने 6374 वोट से शानदार जीत दर्ज की थी। पर अगले दोनों चुनाव में डॉ राजीव सैजल बमुश्किल अपनी सीट बचा पाए। 2012 में वे महज 24 वोट से जीते तो 2017 में अंतर 442 वोट का रहा। इन दोनों ही मौकों पर कांग्रेस की अंतर्कलह उनके लिए संजीवनी सिद्ध हुई।