किस्सा : नेताओं को भी रुलाता रहा है प्याज
हिमाचल में उपचुनाव है और सियासत चरम पर। महंगाई को लेकर विपक्ष ने हल्ला बोल दिया है और महंगाई इस चुनाव में बड़ा मुद्दा है। लगातार बढ़ रही प्याज की कीमत भी सियासी चर्चा का विषय बन गई है। देश की सियासत पर नज़र डाले तो महंगाई हमेशा से चुनावी मुद्दा रहा है, विशेषकर प्याज के दामों ने कई बार सियासतगारों को रुलाया है। विपक्ष में बैठे नेताओं ने कई मर्तबा प्याज को चुनावी हथियार बनाया है। आपातकाल के बाद जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी तब विपक्ष में बैठी इंदिरा गांधी के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं था जिससे वो सरकार को घेर सके। तब प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी और बैठे बिठायें इंदिरा गाँधी को एक मुद्दा मिल गया। प्याज की बढ़ती कीमतों की तरफ ध्यान खींचने के लिए कांग्रेस नेता सीएम स्टीफन तब संसद में प्याज की माला पहन कर पहुँच गए और प्याज पॉलिटिक्स का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगा। 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने प्याज की माला पहनकर प्रचार किया। फिर वर्ष 1998 में केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो प्याज की कीमतों ने फिर रुलाना शुरू कर दिया। तब दिल्ली में भाजपा की सरकार थी और विधानसभा चुनाव दस्तक दे रहे थे। फिर एक बार कांग्रेस ने प्याज का जबरदस्त राजनीतिक इस्तेमाल किया और इस मुद्दे पर भाजपा को जमकर घेरा। नतीजन चुनाव में मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा बुरी तरह हार गई। इसी तरह 1998 में महाराष्ट्र में प्याज की भारी किल्लत थी और प्याज की कीमत आसमान पर। तब कांग्रेसी नेता छगन भुजबल ने दिवाली पर महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को मिठाई के डिब्बे में रखकर प्याज भेजे थे।