गहलोत ही 'पायलट' ! तख़्त पलटा तो 'ताज' किसका ?
** अशोक गहलोत इतिहास रचेंगे या भाजपा के दिग्गजों की फ़ौज भारी पड़ेगी ?
** वसुंधरा दरकिनार होगी या भाजपा के लिए मजबूरी सिद्ध होगी ?
** गहलोत पायलट की अदावत पर लग चूका है विराम या पिक्चर अभी बाकी है ?
तेवर भी दिख रहे है और तल्खियां भी। मुद्दे भी है, उपलब्धियां भी और खामियां भी। लड़ाई कांग्रेस-भाजपा में भी है, कांग्रेस-कांग्रेस में भी और भाजपा-भाजपा में भी। राजस्थान विधानसभा चुनाव में उभरे समीकरण राजनीति के किसी भी छात्र के लिए एक परफेक्ट केस स्टडी है। काफी कुछ घट रहा है और बहुत कुछ अभी बाकी है।
25 साल से राजस्थान में सरकार रिपीट नहीं हुई है। हर पांच साल बाद तख़्त पलटता है। ख़ास बात ये है कि आम तौर पर विधानसभा चुनाव में एंटी इंकम्बैंसी भी दिखती है। पर इस बार राजस्थान का मतदाता मोटे तौर पर शांत है। न खुले तौर पर एंटी इंकम्बैंसी दिख रही है और न प्रो इंकम्बैंसी। माहिर मान रहे है कि राजस्थान में कोई लहर नहीं है, ऐसे में सटीक टिकट आवंटन और न्यूनतम अंतर्कलह ही सत्ता की राह प्रशस्त करेंगे। राजस्थान का रण वो जीतेगा जिसकी रणनीति इक्कीस होगी। इस बार राजस्थान में सत्ता का ऊंट किस करवट बैठता है, ये देखना बेहद दिलचस्प होगा।
200 विधानसभा सीटों वाले राजस्थान में यहाँ के मौसम की तरह सियासत भी हमेशा तपती है। कहते है यहाँ सियासतगरों का मिजाज भी रेगिस्तान की रेत की तरह है, बिलकुल गर्म या बिलकुल ठन्डे। ऐसे में यहाँ का सियासी मौसम कब बदल जाएँ, कहा नहीं जा सकता।
ये ही कारण है कि राजस्थान में दोनों सियासी दल यानी कांग्रेस और भाजपा फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रहे है। भाजपा ने अब तक सिर्फ 41 सीटों पर उम्मीदवार उतारे है तो कांग्रेस की सूची का अब भी इन्तजार है।
भाजपा की पहली लिस्ट पर निगाह डाले तो इसमें सात सांसद है, वसुंधरा समर्थकों के टिकट कटे है। नाराजगी खुलकर सामने आ रही है और कई सीटों पर बगावत की स्थिति बनी हुई है। इसके बाद पार्टी डैमेज कण्ट्रोल में लगी है। अब भी 159 प्रत्याशियों का ऐलान होना है और जाहिर है पार्टी सारे गुणा भाग लगा आगे कदम बढ़ा रही है। माना जा रहा है कि अभी कई सांसदों को और टिकट मिलने है। पर सारा अटेंशन है वसुंधरा राजे पर। वसुंधरा शांत है, अपने सियासी अंदाज से बिलकुल विपरीत।
अभी 159 उम्मीदवारों का ऐलान बाकी है और वसुंधरा के गढ़ यानी झालावाड़ क्षेत्र में भी भाजपा ने प्रत्याशियों का ऐलान नहीं किया है। जानकार मान रहे है कि वसुंधरा भी इसलिए खामोश है। अगर वसुंधरा कैंप को तवज्जो नहीं मिलती है तो आगे बहुत उठापठक संभव है। बताया जा रहा है कि वसुंधरा समर्थक हर स्थिति परिस्तिथि के लिए तैयार है और महारानी के इशारे का इन्तजार है। हालांकि जानकार मान रहे है कि भाजपा कि अगली लिस्टों में संतुलन दिखेगा और वसुंधरा को तवज्जो भी।
भाजपा के लिए वसुंधरा क्यों जरूरी है, आपको ये भी बताते है। राजस्थान में करीब 14 फीसदी राजपूत वोट है और उनका 60 सीटों पर सीधा असर है। जयपुर, जालोर, जैसलमेर, बाड़मेर, कोटा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, नागौर, जोधपुर, राजसमंद, पाली ,बीकानेर और भीलवाड़ा जिलों में राजपूत वोटों की नाराजगी किसी भी पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है। वसुंधरा बड़ा राजपूत चेहरा है। हालांकि माहिर मान रहे है कि भाजपा दिया कुमारी और गजेंद्र सिंह शेखावत में उनकी काट तलाश रही है। किन्तु वसुंधरा राजे का अपना कद है और निसंदेह राजस्थान में भाजपा के पास कोई ऐसा नेता नहीं दिखता जिसकी जमीनी पकड़ वसुंधरा जैसी हो। महिला मतदाताओं में भी वसुंधरा राजे खासी लोकप्रिय है। बहरहाल जैसे जैसे उम्मीदवारों की घोषणा होगी वैसे वैसे अभी समीकरण बनने बिगड़ने है। पर असल सवाल ये ही है कि क्या भाजपा बगैर चेहरा घोषित करे राजस्थान चुनाव में आगे बढ़ेगी या चुनाव नजदीक आते आते महारानी पार्टी के लिए अनिवार्य हो जाएगी ?
अब बात करते है कांग्रेस की। राजस्थान कांग्रेस का पिछले पांच साल सियासी घटनाक्रम बेहद किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं रहा है। कभी गहलोत के को-पायलट रहे सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार क घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पर चुनाव से ठीक पहले पार्टी आलाकमान दोनों नेताओं के बीच की अदावत को थामने में कामयाब रहा। गहलोत के शब्दों में अब सचिन पायलट खुद आलाकमान है, यानी CWC सदस्य। इशारा साफ़ है कि राजस्थान में गहलोत ही है, और पायलट का डिपार्चर हो चूका है, पर कौन कितना मौजूद है इसका पता प्रत्याशियों के ऐलान के बाद ही लगेगा। टिकट आवंटन में किसकी कितनी चलती है और कौन अपने नाराज समर्थकों को अनुशासन में रख पाता है, ये ही राजस्थान में कांग्रेस की संभावनाएं तय करेगा।
राजस्थान में कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची कभी भी जारी हो सकती है। बताया जा रहा है कि स्क्रीनिंग कमेटी ने दो सौ में से 90 सीटों पर दो-दो संभावित प्रत्याशियों के नामों की सूची तैयार कर ली है। अधिकांश वर्तमान विधायकों को फिर से चुनावी मैदान में उतारा जाएगा। इसके अलावा गहलोत सरकार को समर्थन देने वाले 13 निर्दलीय विधायकों में से आठ से दस को टिकट मिल सकता है। ये सभी गहलोत समर्थक है। इसी तरह बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले तीन विधायकों को टिकट दिया जाना तय मान जा रहा है। साथ ही राष्ट्रीय लोकदल के साथ भरतपुर सीट पर फिर गठबंधन हो सकता है। पिछले चुनाव में भी कांग्रेस ने गठबंधन के तहत राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी सुभाष गर्ग के लिए भरतपुर सीट छोड़ी थी। चुनाव जीतने पर गर्ग को गहलोत सरकार में राज्यमंत्री बनाया गया था। इस बार भी गर्ग के लिए ये सीट छोड़ी जा सकती है।
बहरहाल जानकार मान रहे है कि कांग्रेस की पहली सूची के बाद काफी कुछ स्पष्ट होगा। भाजपा की तरह क्या कांग्रेस में भी बवाल होता है या पार्टी सबको साधने में कामयाब होती है, ये देखना रोचक होगा। वहीँ अब तक कमोबेश शांत दिख रहे सचिन पायलट पर भी निगाहें रहने वाली है ।