क्या सफल होगा भाजपा की सियासी लेबोरेटरी का नया फार्मूला ?
** केवल प्रयोग के लिए प्रयोग नहीं करती भाजपा
** सांसद लड़ रहे विधानसभा चुनाव, जाने कितना पड़ेगा प्रभाव ?
** तीन राज्यों में अब तक 18, अभी बढ़ेगा ये आँकड़ा
** समझे क्या है भाजपा की रणनीति
आज की भाजपा वो पार्टी है जो हमेशा इलेक्शन मोड में रहती है, 365 दिन और 24 घंटे। साथ ही भाजपा का मतलब है दुनिया का सबसे बड़ा राजैनतिक दल और हमेशा प्रयोग करने के लिए ओपन। चुनावी राजनीति में हमेशा प्रयोगों की गुंजाइश रही है और जब भाजपा जैसी पार्टी प्रयोग करें तो उसके पीछे निश्चित रूप से इसके पीछे गहन विमर्श और दूरगामी सोच होती है। भाजपा केवल प्रयोग के लिए प्रयोग नहीं करती। बीते कुछ वक्त में कई राज्यों में भाजपा ने चुनाव से पहले सीएम बदलने का प्रयोग किया और वो बेहद सफल रहा, मसलन गुजरात और उत्तराखंड। अब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव है और इस बार भाजपा की सियासी लेबोरेटरी में जीत का नया फार्मूला तैयार किया गया है।
मध्य प्रदेश में भाजपा ने 39 उम्मीदवारों की दूसरी सूची में तीन केंद्रीय मंत्रियों और सात सांसदों तथा एक राष्ट्रीय महासचिव को उतारा, तो राजनीति के माहिरों को विशेलषण करने को भरपूर मसाला मिल गया। सीधा सरल विश्लेषण ये कहता है कि मध्य प्रदेश में भाजपा की स्थिति खराब है, इसलिए भाजपा ने दिग्गजों को मैदान में उतार दिया। इसके बाद छत्तीसगढ़ में प्रत्याशियों की सूची आई तो चार सांसदों का नाम था। कहा गया कि छत्तीसगढ़ भाजपा में रमन सिंह के बाद भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं है जिसे पार्टी भूपेश बघेल के समानांतर खड़ा करे। इसलिए सांसदों को विद्यानसभा चुनाव लड़वाया जा रहा है। वहीँ राजस्थान में भी अब तक सिर्फ 41 प्रत्याशियों का ऐलान हुआ है और उनमें सात सांसद है। कहा जा रहा है कि 200 प्रत्याशियों की घोषणा होते होते ये संख्या एक दर्जन होने के आसार है। कहा ये भी जा रहा है कि वसुंधरा राजे सिंधिया पार्टी की पसंद नहीं है और उनके अलावा राज्य स्तर का कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिसे अशोक गहलोत की तुलना में आगे बढ़ाया जा सके। इसलिए पार्टी इतनी संख्या में सांसदों को चुनाव मैदान में उतारने को विवश हो गई। पर ये विवशता नहीं, रणनीति है। ये भाजपा को व प्रयोग है जो अगर सफल रहा तो नतीजे तो प्रभावित करेगा ही, इन राज्यों में भाजपा की भीतर की सियासत भी बदल कर रख देगा।
जो सांसद चुनावी समर में उतारे गए हैं, वे सब निसंदेह अनुभवी भी है और लोकप्रिय भी। इन्हे मैदान में उतारते वक्त जातिगत समीकरणों का भी ख्याल रखा गया है और क्षेत्रीय समीकरणों का भी। ये चुनाव नदजीकी हो सकते है और एक एक सीट महत्वपूर्ण है, ऐसे में बड़े चेहरों के मैदान में होने से भाजपा को उम्मीद है कि नजदीकी मुकाबले में उसे लाभ मिलेगा। इनमे कई चेहरे ऐसे है जो नजदीकी सीटें भी प्रभावित करेंगे। तो कई को समर्थक अभी से सीएम घोषित करके चल रहे है, ऐसे में इसका व्यापक असर हो सकता है।
दूसरा लाभ ये है कि इससे पार्टी में भीतरघात कुछ कम हो सकता है। दरअसल तीनो राज्यों में पार्टी ने सीएम फेस घोषित नहीं किया, बल्कि कई दिग्गजों को मैदान में उतारकर कन्फूज़न क्रिएट कर दिया है। ये कन्फूज़न कह सकता पार्टी के लिये सम्भवतः अच्छा है। कई लोकप्रिय और प्रभावी चेहरे मैदान में हैं, जिनकी संगठन से लेकर आम जनता में अच्छी पैठ है। सबके मन में होगा कि चुनाव जीतने के बाद हममें से कोई भी मुख्यमंत्री हो सकता है। जाहिर है ऐसे में सभी भरपूर प्रयास करेंगे। भाजपा में कोई भी सीएम हो सकता है, गुजरात, उत्तराखंड सहित कई राज्यों के जरिये पार्टी ये सन्देश देती रही है।
वहीं अगर तीनों राज्यों में भाजपा में मौजूदा चेहरों की बात करें तो मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने बुधनी से उम्मीदवार घोषित किया है। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया लगातार चुनाव अभियान में हैं और संभवतः झालरापाटन से मैदान में होगी। वहीँ छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम रमन सिंह को राजनंदगांव सीट से टिकट दिया गया है। यानी भाजपा ने मौजूदा चेहरों को साइडलाइन नहीं किया है अपितु रणनीति बदलते हुए कई चेहरों को एकसाथ आगे बढ़ाया है।
बहरहाल अब तक घोषित हुए उम्मीदवारों की बात करते है। 90 सीटों वाले छत्तीसगढ़ में अब तक भाजपा ने 85 उम्मीदवार घोषित किये है जिनमे चार सांसद है। 230 विधानसभा सीटों वाले मध्यप्रदेश में अब तक भाजपा चार सूचियों में कुल 136 उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है जिनमें तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसद है। इसी तरह 200 विधानसभा सीटों वाले राजस्थान में अब तक भाजपा ने 41 नामों का ऐलान किया है और इनमें सात सांसद है। तीनों राज्यों की कुल 520 सीटों पर अब तक 262 प्रत्याशी घोषित किये है जिनमें 18 सांसद है। माहिर मान रहे है कि अभी ये संख्या और बढ़नी है, विशेषकर राजस्थान में अभी भी करीब आधा दर्जन सांसदों को चुनावी रण में उतारने की चर्चा है।
बहरहाल भाजपा इन विधानसभा चुनावों को युद्ध की तरह लड़ रही है और जाहिर है पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। अब भाजपा का ये प्रयोग कितना सफल होता है ये जनता तय करेगी और 3 दिसंबर को नतीजा सामने होगा।