उपचुनाव तो टल गए, पर क्या सियासी ग्रह भी टलेंगे ?
हिमाचल प्रदेश में आगामी उपचुनाव तो टल गए है पर क्या भाजपा सरकार पर कुदृष्टि बनाए हुए ग्रह भी टलेंगे ? ये वो सवाल है जो फिलवक्त हिमाचल भाजपा के हर कार्यकर्ता के मन में होगा। यकायक सियासी ग्रहों की चाल ऐसी बदली है कि जयराम सरकार को संभलने का मौका ही नहीं मिल रहा। रही सही कसर आ बैल मुझे मार वाली मानसिकता ने पूरी कर दी। पहले सेब के दामों पर घिरी सरकार की परेशानी उनके ही नेताओं ने उल जुलूल बयान देकर बढ़ा दी। फिर बैठे बिठाये सरबजीत सिंह बॉबी का लंगर हटाकर अधिकारीयों ने सरकार का स्वास्थ्य बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिस तरह का समर्थन पुरे प्रदेश से सर्वजीत सिंह बॉबी को मिला उसकी शायद सरकार और उक्त अधिकारीयों को उम्मीद नहीं रही होगी।
बरहाल उपचुनाव टलने से भाजपा ने राहत की सांस ज़रूर ली होगी। स्थिति फिलवक्त कुछ यूँ है कि सरकार के सियासी किले पर महंगाई का परचम लहरा रहा है, बेरोज़गारी चरम पर है, कर्मचारी आश्वासन के झूले झूल रहे है और बागवान लगातार सरकार से राहत की गुहार लगा रहे है। इस पर हावी अफसरशाही और पार्टी में पनपते अंतर्कलह ने हमेशा ही सरकार को असहज रखा है। सो जाहिर है भाजपा को उपचुनाव टलने से कुछ समय मिल गया है और समर्थक इसी उम्मीद में होंगे कि सरकार बेवजह के विवादों से बचते हुए वक्त रहते ट्रैक पर लौट आएं। प्रदेश में चार उपचुनाव होने है, एक लोकसभा उपचुनाव और तीन विधानसभा उपचुनाव। इससे पहले ज़ाहिर है प्रदेश सरकार चाहेगी कि आमजन के बीच किसी भी तरह का असंतोष न रहे जिसका खामियाजा उसे भुगतान पड़े। सरकार की सबसे बड़ी ताकत मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरल और ईमानदार छवि है, और हर विकट परिस्थिति में मुख्यमंत्री के चेहरे ने ही संजीवनी का काम भी किया है।
बागवान हित में अहम् फैसले अपेक्षित
जयराम सरकार के सामने बागवानों को साधना बड़ी चुनौती होगी। विपक्ष तो इस मुद्दे पर आक्रामक है ही, सरकार अपने नेताओं के बेतुके बयानों का खामियाजा भी भुगत रही है। स्तिथि ये है कि कहीं मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाए गए तो कहीं बागवान मंत्री काफिला रोका गया। सरकार ने समय रहते बागवानों का ये गुस्सा शांत नहीं किया तो समस्या अधिक बढ़ सकती है। जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होना है और यहाँ बागवानों का वोट निर्णायक सिद्ध होता है। वहीँ मंडी संसदीय क्षेत्र में भी कई हलके ऐसे है जहाँ बागवान वोट ख़ासा असर रखता है। जानकार मानते है कि चुनाव से पहले सरकार प्रदेश में फ़ूड प्रोसेसेसिंग यूनिट्स, सीए स्टोर्स जैसी कई योजनाओं को लेकर अहम् फैसले ले सकती है। इसके अलावा हिमाचल में भी कश्मीर की तर्ज पर नैफेड जैसी किसी केंद्रीय संस्था द्वारा ग्रेड सिस्टम के आधार पर सेबों की खरीद को लेकर सरकार से सकरात्मक रुख अपेक्षित है।
कर्मचारी वर्ग को साधने की कवायद शुरू
कर्मचारी फैक्टर चुनाव के वक्त क्या मायने रखता है ये सभी राजनीतिक दल अच्छी तरह जानते समझते है। फिलवक्त जयराम सरकार ने भी मिशन रिपीट और उपचुनाव में जीत के लिए कर्मचारियों को साधने की कवायद शुरू कर दी है। 25 सितंबर को जेसीसी की तारिख तय की गयी है जिससे हिमाचल के पौने तीन लाख कर्मचारी उमीदें लगाए बैठे है। कर्मचारियों को उम्मीद है कि जो पिछले कई सालों में नहीं हुआ वो शायद अब जेसीसी की इस बैठक के बाद पुरे हो जाए। माहिर मानते है कि बीते कुछ दिनों में सरकार हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत परिषद में कार्यरत जूनियर टी-मेट व कनिष्ठ सहायक श्रेणी के कर्मचारियों की पदोन्नति अवधि पांच वर्ष से घटाकर तीन वर्ष करने की घोषणा कर और शिक्षा विभाग में कार्यरत 231 पीईटी को पदोन्नत करने का एलान कर कर्मचारी वर्ग को साधने की शुरुआत कर चुकी है।
अपनों ने भी उड़ाई है भाजपा की नींद
छोटी बड़ी कठिनाइयों के साथ पार्टी में व्याप्त अंतर्कलह भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। उपचुनाव के चारों निर्वाचन क्षेत्रों में टिकट के लिए जंग सी छिड़ी हुई है। हर क्षेत्र से टिकट के दावेदारों कि लम्बी कतारें भजपाईओं की नींद उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। बताया जा रहा है कि इस अंतर्कलह को साधने के लिए पार्टी ने कई नाराज़ कार्यकर्ताओं के सामने बोर्ड और निगमों के अध्यक्ष पद का प्रस्ताव भी रखा गया है। अर्की में गोविंदराम शर्मा की नारजगी चिंता बढ़ा रही है तो जुब्बल कोटखाई में परिवारवाद के खिलाफ नीलम सरैक की बुलंद आवाज। वहीँ फतेहपुर में अबकी बार चक्की पार का नारा बुलंद है।