सीएम भी हमीरपुर से, इसमें राणा का क्या कसूर !
2017 के विधानसभा चुनाव में सुजानपुर सीट से भाजपा के सीएम फेस प्रो प्रेम कुमार धूमल को हराकर प्रदेश की सियासी तस्वीर बदलने वाले राजेंद्र राणा इस बार तीसरी दफा विधानसभा पहुंचे है। यूँ तो प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता वापसी हुई है, पर राजेंद्र राणा भी उन चंद चेहरों में शुमार है जिनके हिस्से में अब तक कुछ नहीं आया। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेंद्र राणा को उनके समर्थक तो बतौर सीएम प्रोजेक्ट कर रहे थे, लेकिन सियासी ग्रह दशा का फेर देखिये कि राणा को मंत्री पद तक नहीं मिला। दरअसल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी जिला हमीरपुर से ही है, इसके चलते राणा का पत्ता कट गया। माहिर मान रहे है कि पहले कैबिनेट विस्तार की तरह ही अगले कैबिनेट विस्तार में भी राजेंद्र राणा के हाथ खाली ही रहेंगे।
सियासी नजर से देखे तो राजेंद्र राणा का सियासी वजन इतना भी कम नहीं है कि उनको पूरी तरह दरकिनार किया जा सके। इस चुनाव में राजेंद्र राणा के सामने यूँ तो कैप्टेन रणजीत सिंह थे, लेकिन खुद प्रो प्रेम कुमार धूमल ने कैप्टेन के लिए मोर्चा संभाला था। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी सुजानपुर को विशेष समय दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुजानपुर में रैली की थी। बावजूद इसके राजेंद्र राणा ने जीत दर्ज कर अपना सियासी कद और ऊँचा किया। राणा के कांग्रेस आलाकमान से भी अच्छे संबंध है। पर इसके बावजूद राणा को सुक्खू कैबिनेट में न तो अब तक जगह मिली है और आगे भी इसकी संभावना कम ही ही। ऐसा क्यों है, ये भी आपको बताते है।
** पहला कारण : खुद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जिला हमीरपुर से है। ऐसे में हमीरपुर से किसी अन्य नेता को मंत्रिमंडल में स्थान मिलना मुश्किल है।
** दूसरा कारण : राजेंद्र राणा को होली लॉज कैंप का माना जाता है। चुनाव नतीजों से पहले राजेंद्र राणा वो पहले नेता थे जिन्होंने सीएम पद हेतु प्रतिभा सिंह के समर्थन की बात कही थी। किन्तु सीएम की कुर्सी सुक्खू को मिली।
** तीसरा कारण : यूँ तो राजेंद्र राणा कांग्रेस आलाकमान के भी करीबी माने जाते है लेकिन चुनाव से पहले उनके भाजपा में जाने के कयास लगते रहे। हालांकि राणा ने खुलकर इस कयासबाजी का खंडन भी किया और कांग्रेस में ही रहे। पर माहिर मानते है कि उक्त अफवाहों ने राणा को नुक्सान जरूर पहुंचाया।
बहरहाल सियासत में कब समीकरण बदल जायें, कुछ कहा नहीं जा सकता। राणा के समर्थक इसी आस में है कि अगले कैबिनेट विस्तार में उन्हें जगह जरूर मिलेगी। वहीं जानकार मान रहे है कि यदि राणा को मंत्री पद न भी मिला तो भी उन्हें कोई अहम जिम्मेदारी दिए जाएं लगभग तय है।