आशा भी हैं और प्रतिभा भी
समर्थकों को आशा भी हैं और महिला नेताओं में प्रतिभा भी, तो क्या आने वाले समय में हिमाचल की पहली महिला मुख्यमंत्री के इंतज़ार पर विराम लग सकता हैं ? ये वो सियासी पहेली हैं जिसे बुझना मुश्किल है। दिन प्रति दिन हिमाचल की सियासत बदलती जा रही है। बस इतना समझ लीजिये की कल सियासत में भी मोहब्बत थी अब मोहब्बत में भी सियासत है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में सर्वमान्य चेहरे की जंग ने तूल पकड़ लिया है। कांग्रेस में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति बनती जा रही है। कई भावी मुख्यमंत्री अभी से दिख रहे है। मुख्यमंत्री पद पर ज़िलों का दावा भी आने लगा हैं। अब यहां कई शगूफों में से एक शगूफा प्रदेश को पहली महिला मुख्यमंत्री मिलने का भी है। हिमाचल कांग्रेस की दो कद्दावर महिला नेता भी चर्चा में है, जिन्हें सत्ता वापसी की स्थिति में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है। इसमें पहली है पूर्व मंत्री व डलहौज़ी से विधायक आशा कुमारी और दूसरी है पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह। प्रदेश की सियासत में महिला नेताओं का योगदान असरदार रहा है मगर अब तक प्रदेश को महिला मुख्यमंत्री नहीं मिली है। अब इन दोनों नेताओं के बढ़ते कद ने प्रदेश में पनपती पहली महिला मुख्यमंत्री की उम्मीद को और भी तेज़ कर दिया है। हालांकि अभी इब्तिदा है, पर आगे -आगे क्या होता है ये देखना रोचक होने वाला है।
आशा पर टिकी समर्थकों की आशा
पूर्व मंत्री और डलहौज़ी विधायक आशा कुमारी को सत्ता वापसी की स्थिति में सीएम पद का दावेदार माना जा रहा है। समर्थक अभी से उन्हें प्रदेश की भावी सीएम और प्रदेश की होने वाली पहली महिला मुख्यमंत्री करार देने लगे है। चलिए समर्थकों की अपनी भावनाएं है लेकिन सियासी वजन भी तोला जाये तो हिमाचल कांग्रेस में मौजूदा महिलाओं में आशा कुमारी सबसे अनुभवी चेहरे के तौर पर खड़ी दिखती हैं। आशा कुमारी निसंदेह तेजतर्रार भी है और अच्छी वक्ता भी। सदन में भी सक्रिय दिखती है और जब शिमला में होती है तो सरकार को घेरने में भी पीछे नहीं रहती। इस पर गांधी परिवार से उनकी नजदीकी भी उनका दावा जरूर मजबूत करेगी। आशा कुमारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सचिव और पंजाब की एआईसीसी प्रभारी भी रह चुकी है। वह कई अन्य राज्यों की भी सहप्रभारी रही है। 6 बार डलहौज़ी से विधायक और इसी के साथ वह 2003 से 2005 तक राज्य की शिक्षा मंत्री भी रही है। पर अतीत के कई विवाद आशा कुमारी का पीछा आसानी से नहीं छोड़ेगे। इस पर पार्टी में व्याप्त अंतर्कलह भी उनके रास्ते में आएगी। आशा कुमारी की पूर्व में वीरभद्र सिंह के साथ भी खींचतान दिखती रही, मगर मौजूदा समय में उनके जाने से पहले आशा कुमारी पूर्णतः उन्ही के समर्थन में दिख रही थी। खुद वीरभद्र सिंह उन्हें अपनी बेटी समान करार देते थे। मगर अब बदली राजनीतिक फिजा में आशा कुमारी और होलीलॉज के ताल्लुकात काफी कुछ तय कर सकते है। बात करें आशा कुमारी की सर्व स्वीकार्यता की तो फिलवक्त उनकी स्थिति भी नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री जैसी है, शिमला और अपने जिले में तो ठीक है पर पूरे प्रदेश में उन्हें अपनी स्वीकार्यता सिद्ध करनी होगी। आशा में उनके समर्थकों को खूब आशा दिख रही है, ऐसे में आने वाले वक्त में उनकी असल परीक्षा होनी है।
होलीलॉज के निष्ठावानों को प्रतिभा सिंह से आस
कयास थे कि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद होलीलॉज का तिलिस्म ध्वस्त हो जाएगा। वीरभद्र परिवार के वर्चस्व पर एक बड़ा और गहरा संकट खड़ा हो जाएगा, मगर अब तक ऐसा होता नहीं दिख रहा है। जिस तरह विक्रमादित्य अपने पिता की सियासी विरासत को संभाल रहे है, परिपक्वता दिखा रहे है, ऐसे में विरोधियों का सुकून निश्चित तौर पर तार-तार हो रहा है । इस पर वीरभद्र सिंह की पत्नी और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह की सक्रीय सियासत में वापसी भी लगभग तय मानी जा रही है। मंडी संसदीय क्षेत्र में उपचुनाव होने है और प्रतिभा सिंह के चुनाव लड़ने की अटकलों ने ही न सिर्फ भाजपा का सुकून चुराया लिया है बल्कि कहीं - कहीं कांग्रेस में भी ऐसे ही हाल है। प्रतिभा सिंह दो बार मंडी से सांसद रह चुकी है। हालांकि वे पिछले कुछ समय से चुनावी राजनीति से दूर रही है मगर इस बार उनका कमबैक अभी से लाइमलाइट में हैं। उनके पास दूसरा विकल्प अर्की उपचुनाव भी हैं, जहां से वे विधानसभा पहुँचने का मार्ग चुन सकती हैं। अगर प्रतिभा सिंह उपचुनाव में जीत जाती है तो निसंदेह होलीलॉज के निष्ठावान उन्हें भावी मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहेंगे। प्रतिभा सिंह 2004 में मंडी सीट से पहली बार जीतकर लोकसभा पहुंची थी। तब उन्होंने भाजपा नेता महेश्वर सिंह को चुनाव हराया था। इसके बाद 2013 में वे दोबारा सांसद बनी और तब उनके सामने थे प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में वे राम स्वरुप शर्मा से हार भी गई थी। लोकसभा से तो प्रतिभा सिंह का पुराना नाता है मगर अब तक वे विधानसभा चुनाव के मैदान में नहीं उतरी है, जो कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की कुर्सी और उनके बीच का फासला बढ़ा सकता है।
हिमाचल भाजपा में भी कई महिला नेताओं ने अपना वर्चस्व बरकरार रखा है। सबसे पहली है सरवीण चौधरी जो वर्तमान में शाहपुर से विधायक भी है और हिमाचल कैबिनेट में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री भी। सरवीण चौधरी 1992 से सक्रिय राजनीति में है और चौथी बार विधायक बनी है। वह 2008 से 2013 तक धूमल कैबिनेट में भी सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रह चुकी है। दूसरी है इंदु गोस्वामी। हिमाचल में वर्ष 1998 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम की सदस्य रह चुकी राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद सियासी ध्रुव के रूप में चमकती रही है। 2022 के विस चुनाव से पहले दिल्ली हाईकमान इंदु गोस्वामी को लगातार पदोन्नति दे रहा है। वर्ष 2017 में इंदु को प्रदेश महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया। 2020 में राज्यसभा सांसद और अब विधानसभा चुनाव से डेढ़ साल पहले भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में उन्हें पदोन्नति दी गई। जानकार इसे सोची समझी सियासत का नाम दे रहे है। यहाँ ये भी याद रखना जरूरी हैं कि स्वास्थ्य घोटाले के बाद जब डॉ राजीव बिंदल को प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी तो इंदु अध्यक्ष पद कि प्रबल दावेदार थी। एक मर्तबा तो वरिष्ठ भाजपा नेता ने उन्हें ट्वीट कर बधाई भी दे डाली थी, पर सियासी गृह दशा बदली और अध्यक्ष पद इंदु के हाथ आते -आते रह गया। पर इसके बाद भी इंदु का रसूख कायम हैं।
वीरभद्र का तिलिस्म और सीएम बनते-बनते रह गई मैडम स्टोक्स !
प्रदेश की सियासत में नारी शक्ति का असर कभी फीका नहीं रहा। हालाँकि हिमाचल के सियासी क्षितिज पर बेहद कम महिलाएं अब तक अपना नाम चमकाने में कामयाब रही और शायद इसका बड़ा कारण ये है कि प्रदेश के प्रमुख राजनैतिक दलों ने कभी महिलाओं पर ज्यादा भरोसा जताया ही नहीं। पर कई चेहरे ऐसे है जिनके बगैर हिमाचल की सियासी कहानी अधूरी हैं। कई महिलाएं न सिर्फ विधानसभा में जनता की आवाज बनी, बल्कि मंत्री भी रही। देश की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर भी हिमाचल प्रदेश से ही सांसद थी। वहीँ प्रदेश की सियासत में एक मौका ऐसा भी आया जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्या स्टोक्स मुख्यमंत्री बनते बनते रह गई। दरअसल वर्ष 2003 में कांग्रेस की हिमाचल की सत्ता में वापसी हुई थी। 1998 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के मिशन रिपीट के अरमान पर पानी फेर दिया था फिर जब 2003 में मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो ठियोग विधायक और कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष विद्या स्टोक्स ने वीरभद्र को चुनौती दे दी। प्रदेश में माहौल बना की शायद मैडम स्टोक्स सोनिया गांधी से अपनी नज़दीकी के बूते सीएम बनने में कामयाब हो जाए। बताया जाता हैं कि तब मैडम स्टोक्स ने दिल्ली दरबार में विधायकों के समर्थन का दावा भी पेश कर दिया था। विद्या दिल्ली में थी और वीरभद्र सिंह ने शिमला में अपना तिलिस्म साबित कर दिया। दरअसल तभी शिमला में वीरभद्र सिंह ने मीडिया के सामने अपने 22 विधायकों की परेड करा कर अपनी ताकत और कुव्वत का अहसास आलाकमान को करवा दिया। इसके बाद जो परेड में शामिल नहीं हुए उनमे से भी अधिकांश होलीलॉज दरबार में पहुंच गए। सो वीरभद्र सिंह पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए और प्रदेश को महिला सीएम मिलने का इंतज़ार खतम नहीं हो सका।
आठ बार विधायक बनी विद्या स्ट्रोक्स
वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्या स्टोक्स कांग्रेस से आठ बार विधायक चुनी गई। उनका रिकॉर्ड कोई दूसरी महिला नेता नहीं तोड़ पाई है। स्ट्रोक्स पहली बार 1974 में विधायक बनी थी। वह विधानसभा की अध्यक्ष भी रहीं है और नेता विपक्ष भी बनी। स्ट्रोक्स 1974, 1982, 1985, 1990,1998, 2003, 2007 व 2012 में विधायक रही।
वर्तमान में पांच महिला विधायक
2017 के विधानसभा चुनाव में चार महिलाओं ने जीत दर्ज की। भाजपा टिकट पर शाहपुर सीट से सरवीण चौधरी, भोरंज से कमलेश कुमारी और इंदाैरा से रीता देवी विधायक बन कर विधानसभा पहुंची थी, जबकि कांग्रेस की आशा कुमारी डलहौजी से चुनाव जीत कर विधायक बनी थी। इसके बाद 2019 में उपचुनाव में पच्छाद से भाजपा की रीता कश्यप जीत हासिल कर विधायक बनी।
उपचुनाव में दिखेगी महिला शक्ति !
जल्द हिमाचल प्रदेश की तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना हैं। माना जा रहा हैं कि कांग्रेस की तरफ से प्रतिभा सिंह मंडी संसदीय क्षेत्र या अर्की विधानसभा क्षेत्र से मैदान में उतरेगी। अगर वो जीत दर्ज करती हैं तो संसद या विधानसभा में महिला नुमाइंदो की संख्या में इजाफा करेगी। इसी तरह भजपा से भी कई महिलाएं टिकट की दौड़ में हैं। जुब्बल कोटखाई विधानसभा उप चुनाव के लिए नीलम सरैक टिकट की मजबूत दावेदार हैं। वहीँ मंडी से पायल वैद्य भी टिकट की दौड़ में हैं।
1998 में जीती थी सबसे अधिक 6 महिलाएं
हिमाचल प्रदेश के इतिहास पर नज़र डाले तो 1998 के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक 6 महिअलों ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में कांग्रेस की विप्लव ठाकुर, मेजर कृष्णा मोहिनी, विद्या स्ट्रोक्स, आशा कुमारी और भाजपा की उर्मिल ठाकुर और सरवीण चौधरी ने जीत दर्ज की। हालांकि बाद में भाजपा नेता महेंद्र नाथ सोफत की याचिका पर सोलन का चुनाव सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द घोषित कर दिया गया जहाँ से पहले मेजर कृष्णा मोहिनी को विजेता घोषित किया गया था। वहीं 1998 में परागपुर में हुए उप चुनाव में निर्मला देवी ने जीत दर्ज की।
सरला शर्मा से सरवीण चौधरी तक
प्रदेश में 1972 में पहली बार सरला शर्मा मंत्री बनी। फिर 1977 में श्यामा शर्मा मंत्री रही। उसके बाद आशा कुमारी, विप्लव ठाकुर, चंद्रेश कुमारी, विद्या स्टोक्स मंत्री रही। वहीं वर्तमान सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री सरवीण चौधरी इससे पहले धूमल सरकार में भी मंत्री रह चुकी है।
सिर्फ तीन महिलाएं पहुंची लोकसभा
लोकसभा की बात करें तो वर्ष 1952 में राजकुमारी अमृत कौर प्रदेश की पहली महिला सांसद बनी। इसके बाद चंद्रेश कुमारी वर्ष 1984 में कांगड़ा से सांसद चुनी गई। वहीँ प्रतिभा सिंह मंडी सीट से दो बार लोकसभा सांसद रही है। वे वर्ष 2004 और 2013 के उप चुनाव में विजेता रही।
1956 में लीला देवी बनी थी राज्यसभा सांसद
अपर हाउस राज्यसभा की बात करें तो आज तक हिमाचल प्रदेश की कुल 7 महिलाएं राज्यसभा में पहुँच सकी है। सबसे पहले वर्ष 1956 में कांग्रेस नेता लीला देवी राज्यसभा के लिए चुनी गई। इसके बाद 1968 में सत्यावती डांग, 1980 में उषा मल्होत्रा, 1996 में चंद्रेश कुमारी, 2006 व 2014 में विप्लव ठाकुर को कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा भेजा। वहीं भाजपा से 2010 में बिमला कश्यप व 2020 में वर्तमान राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी राज्यसभा पहुंची।