होलीलॉज मजबूत, अब मुमकिन है फिर 'मुसाफिर'
- टिकट के लिए मजबूत हुआ मुसाफिर का दावा
एक बार फिर प्रदेश कांग्रेस की कमान होलीलॉज को सौंप दी गई है। प्रतिभा सिंह तो प्रदेश अध्यक्ष बनी ही है, वीरभद्र सिंह के करीबी रहे कई नेताओं को भी पार्टी ने अहम पदों पर जिम्मेदारी दी है। इस फेरबदल ने कई नेताओं की सुस्त होती दिख रही सियासत को भी चुस्त कर दिया है। ऐसा ही एक नाम है गंगूराम मुसाफिर का।
पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से रिकॉर्ड सात बार विधायक रहे मुसाफिर वीरभद्र सिंह के खासमखास सिपाही रहे हैं। गंगूराम मुसाफिर लगातार बीते तीन चुनाव हार चुके है और इस बार उनके टिकट को लेकर संशय की स्थिति है। पर अब उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी में उपाध्यक्ष बनाया गया है। ऐसे में ये तय है कि इस बार भी टिकट के लिए उनका दावा मजबूत रहने वाला है।
गंगूराम मुसाफिर ने 1982 से लेकर 2007 तक के विधानसभा चुनाव में लगातार सात बार जीत दर्ज की। 1982 में मुसाफिर ने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीता, लेकिन 1985 से वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। वह मंत्री के अलावा हिमाचल विधानसभा के स्पीकर भी रह चुके हैं। पर 2012 के विधानसभा चुनाव में मुसाफिर को भाजपा के सुरेश कश्यप से 2805 वोटों से हार मिली। 2017 में कांग्रेस ने फिर मुसाफिर को मैदान में उतारा लेकिन जनता ने उन्हें फिर नकार दिया। इसके बाद 2019 के उपचुनाव में भी कांग्रेस ने मुसाफिर पर भरोसा जताया लेकिन मुसाफिर जीतने में असफल रहे। लगातार तीन चुनाव हारने के बाद और दयाल प्यारी की एंट्री से भी इस बार मुसाफिर की राह आसान नहीं दिख रही थी, विशेषकर वीरभद्र सिंह के निधन के बाद। उधर, क्षेत्र में एक तबका दयाल प्यारी को टिकट देने का हिमायती दिख रहा था, लेकिन अब बदले राजनीतिक समीकरणों के बाद गंगूराम मुसाफिर फिर टिकट की रेस में बाजी मार सकते है।
मुश्किल हो सकती है दयाल प्यारी की राह :
दयाल प्यारी लम्बे समय तक भाजपा में रही लेकिन जब भाजपा में 2019 में उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ी। वे जीत नहीं सकी लेकिन चुनाव में अपनी दमदार मौजूदगी जरूर दर्ज करवाई। उनका भाजपा में कई नेताओं के साथ छत्तीस का आंकड़ा रहा है और शायद इसी के चलते उनकी भाजपा में घर वापसी नहीं हुई। इस बीच 2021 में वे कांग्रेस में शामिल हो गई। इसके बाद से ही मुसाफिर विरोधी गुट उन्हें टिकट देने की हिमायत कर रहा है। पर अब होलीलॉज और मुसाफिर के मजबूत होने के बाद दयाल प्यारी की राह मुश्किल हो सकती है।