बदली सियासी फ़िजा में कितना मजबूत है सुधीर का दावा ?
सुधीर शर्मा, ये वो नाम है जिसके चर्चे वीरभद्र सरकार में हर तरफ थे। सुधीर को तब सरकार में नंबर दो माना जाता था और कहते है तब सुधीर की रज़ा में ही वीरभद्र सिंह की रज़ा होती थी। फिर सियासी फिजा कुछ यूँ बदली कि 2017 में सुधीर विधानसभा भी नहीं पहुंच पाएं। 2019 के उपचुनाव से भी उन्होंने खुद को दूर कर लिया और माना जाता है कि होली लॉज से भी पहले सी नजदीकियां नहीं रही। हालांकि सुधीर को अब भी होली लॉज कैंप का ही माना जाता है। वहीं इस बार सुधीर शर्मा ने विधानसभा चुनाव जीतकर खुद की जमीन को मजबूत तो कर लिया, लेकिन चुनाव से पहले उनके भाजपा से संपर्क में होने के चर्चे खूब हुए। सुधीर ने खुलकर इन चर्चाओं का खंडन तो किया, लेकिन सियासत में अगर बात निकलती है तो दूर तलक जाती है। अब क्या सच और क्या झूठ, ये अलग बात है, पर मुद्दे की बात ये है कि बेशक झूठी ही सही लेकिन इन चर्चाओं का खामियाजा कहीं सुधीर शर्मा को मंत्री पद गंवाकर भुगतान न पड़ जाएँ। बहरहाल सुक्खू कैबिनेट के पहले विस्तार में सुधीर शामिल नहीं थे, अब सिर्फ तीन मंत्री पद शेष है और सुधीर शर्मा के समर्थक इसी आस में है कि उन्हें जगह जरूर मिलेगी।
क्या सुधीर शर्मा को सुक्खू कैबिनेट में स्थान मिलेगा, ये बात आगे बढ़ाने से सियासी समीकरणों को समझने के लिए थोड़ा अतीत में झांकना जरूरी है। 2012 में कांग्रेस की सत्ता वापसी के बाद सत्ता वीरभद्र सिंह संभाल रहे थे और संगठन के सरदार थे सुखविंदर सिंह सुक्खू, जो अब सीएम की कुर्सी पर विराजमान है। तब सत्ता और संगठन के बीच की खाई किस कदर गहराई थी, ये किसी से छिपा नहीं है। कई मौकों पर वीरभद्र सिंह ने खुलकर सुक्खू पर ब्यानबाण छोड़े और उधर सुक्खू डटे भी रहे और खड़े भी रहे। पर वक्त टिक कर कहाँ रहता है, वीरभद्र सिंह के निधन के बाद हाल और हालात दोनों बदल गए। हालांकि होली लॉज का सियासी तिलिस्म बरकरार है लेकिन दरबारी कुछ कम हो गए। बेशक प्रतिभा सिंह के हाथ में अब प्रदेश संगठन की कमान है और विक्रमादित्य सिंह की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती रही है, लेकिन सियासी शतरंज के जो दांव वीरभद्र सिंह जानते थे, उसकी कमी जरूर खली है। अब भी होली लॉज का मान अधिमान बरकरार है, विक्रमादित्य सिंह के मंत्री बनने से नई ऊर्जा भी आई है, लेकिन ये तो मानना होगा कि अब सुक्खू ही सरताज है। बदली हुई इस सियासत में अब होली लॉज अपने निष्ठावानों के लिए लड़ रहा है। पर क्या इस फेहरिस्त में सुधीर शर्मा भी प्रमुख तौर पर है, इस सवाल का जवाब बहुत कुछ तय कर सकता है।
उधर, पहले मंत्रिमंडल विस्तार में सुधीर शर्मा को जगह न मिलने के बाद धर्मशाला में 3 जनवरी को हुई जनसभा का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है जिसमें सुधीर हाथ पकड़ते दिख रहे है और सुक्खू हाथ छुड़ाते। अब सुधीर क्या सुक्खू कैबिनेट में कुर्सी तक पहुंच पाएंगे, इसे लेकर कयासबाजी जारी है। आपको बता दें जिला कांगड़ा से एक मंत्री पद किसी ब्राह्मण चेहरे को मिल सकता है और इस लिस्ट में सुधीर शर्मा और संजय रतन के नाम प्रमुख तौर पर शामिल है। रोचक बात ये है कि दोनों ही होली लॉज कैंप से माने जाते है और संजय रतन को सुधीर का भी करीबी माना जाता है। मंत्री पद के लिए सुधीर शर्मा का दावा इसलिए भी खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि धर्मशाला प्रदेश की दूसरी राजधानी है और इस धर्मशाला के विकास में सुधीर का योगदान नकारा नहीं जा सकता। स्मार्ट सिटी हो या नगर निगम का दर्जा, वो सुधीर ही थे जिन्होंने हमेशा धर्मशाला के हक की दमदार पैरवी की थी। ऐसे में अगर उन्हें मंत्री पद मिलता है तो दूसरी राजधानी के विकास को पंख लग सकते है। इसके अलावा उनका परिवार हमेशा कांग्रेस का निष्ठावान रहा है, वे दिग्गज कांग्रेस नेता पंडित संतराम के सुपुत्र है। उनके भाजपा में जाने की कितनी भी अफवाहें रही हो लेकिन सुधीर ने जैसा कहा था, वे कांग्रेस में ही है।