सोशल मीडिया पर कमजोरी कांग्रेस को भारी न पड़ जाए!
- इस मर्तबा निकाय चुनाव में सोशल मीडिया बेहद महत्वपूर्ण
इस बार के निकाय चुनाव में सोशल और वेब मीडिया निर्णायक भूमिका निभा सकता हैं। पांच साल पहले हुए चुनाव के मुकाबले लोगों का रुझान सोशल और वेब मीडिया की तरफ बहुत अधिक बढ़ चूका हैं, जिससे मतदाता का निर्णय प्रभावित हो सकता हैं।
चुनाव प्रचार में इस मर्तबा सोशल मीडिया की एंट्री तमाम समीकरण बदल सकती है, खासतौर से न्यूट्रल मतदाता पर इसका काफी असर देखने को मिल सकता हैं। यही कारण हैं कि चुनाव की जंग जितनी जमीन पर लड़ी जा रही है उतनी ही सोशल मीडिया के अखाड़े में। हर उम्मीदवार सोशल मीडिया और वेब मीडिया का इस्तेमाल कर वोटर्स को साधने की जुगत में हैं। अब कोरोना काल में इसे मौके की नजाकत समझें या फिर तकनीक का स्मार्ट इस्तेमाल, लेकिन इस मर्तबा निकाय चुनाव के प्रत्याशी सोशल और वेब मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल करने से जरा भी पीछे नहीं हैं।
वहीँ पार्टी स्तर पर यदि सोशल मीडिया पर जंग की बात करें तो निसंदेह इसमें भाजपा का कोई मुकाबला नहीं हैं। बेशक चुनाव बिना पार्टी सिंबल के लड़े जा रहे हैं लेकिन भाजपा का आईटी सेल पूरी तरह सक्रीय दिख रहा हैं। सोशल मीडिया पर, खासतौर से फेसबुक पर भाजपा के पास सैकड़ों आधिकारिक एक्टिव पेज हैं। इसके अतिरक्त पार्टी ने आईटी व सोशल मीडिया के लिए कई पदाधिकारी नियुक्त किये हुए हैं जिनके कौशल और अनुभव का लाभ भी पार्टी समर्थित उम्मीदवारों को मिलेगा। मतदाता के साथ संवाद साधने में ये बेहद कारगर सिद्ध होगा। सुनियोजित तरीके से भाजपा ने सोशल मीडिया पर अपनी दमदार उपस्तिथि बनाई हुई हैं जो उसे लाभ दे सकती हैं।
उधर, कांग्रेस जमीनी संगठन की तरह ही सोशल मीडिया पर भी दिशाहीन दिख रही हैं। औपचारिकता के लिए पार्टी का सोशल मीडिया सेल तो हैं, पदाधिकारी भी हैं पर उनका काम असरदार नहीं दिख रहा। कुछ नेता सोशल मीडिया पर एक्टिव भी हैं तो अपने बुते पर, पार्टी की तरफ से न कोई आवश्यक दिशा निर्देश हैं और न ही मार्गदर्शन। खासतौर से जब कोरोना के चलते डोर टू डोर प्रचार भी सिमित रहने वाला हैं, सोशल मीडिया पर पार्टी की ये कमजोरी इस निकाय चुनाव में भारी पड़ सकती हैं।