इंदौरा में मनोहर ने हरा भाजपा-कांग्रेस दोनों का चैन
**त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के सामने सीट बचाने की चुनौती
इंदौरा वो सीट है जहाँ एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भाजपा -कांग्रेस दोनों की धुकधुकी बढ़ाई हुई है। इस सीट से भाजपा के बागी मनोहर धीमान ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है और इसमें कोई संशय नहीं है कि इसका असर दोनों तरफ के परंपरागत वोट पर भी दिख सकता है। यानी यहाँ त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला है।
इंदौरा उन सीटों में से एक है जहाँ भाजपा ने इस बार भी महिला चेहरे को मैदान में उतारा है। भाजपा ने फिर मौजूदा विधायक रीता धीमान को टिकट दिया, हालाँकि भाजपा के इस फैसले के खिलाफ मनोहर धीमान ने मोर्चा खोल दिया और निर्दलीय मैदान में उतर गए। दरअसल इंदौरा में 2012 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय मनोहर लाल धीमान ने जीत हासिल की थी और दूसरे नंबर पर कांग्रेस उम्मीदवार कमल किशोर थे। जबकि तीसरे स्थान पर बीजेपी उम्मीदवार रीता धीमान रही थी। 2012 में जीत के बाद मनोहर लाल धीमान कांग्रेस के एसोसिएट विधायक रहे, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव के करीब 6 माह पूर्व मनोहर भाजपा में शामिल हो गए। तब मनोहर धीमान ने भाजपा से टिकट की मांग की थी, लेकिन भाजपा ने रीता धीमान पर ही दांव खेला। तब किसी तरह भाजपा ने मनोहर को मना लिया था। नतीजन कांग्रेस के कमल किशोर को हरा कर रीता धीमान ने इस सीट पर जीत दर्ज की। इस बार फिर भाजपा ने मनोहर को टिकट नहीं दिया लेकिन इस दफा पार्टी बगावत साधने में नाकामयाब रही और नाराज हो कर मनोहर धीमान भी बतौर निर्दलीय मैदान में उतरे है।
पिछ्ले दो चुनावों में अंतर्कलह के कारण कांग्रेस को इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा है, जबकि इस बार अंतर्कलह और बगावत के मर्ज से भाजपा ग्रस्त दिखी है। रीता धीमान को लेकर क्षेत्र में एंटी इंकम्बैंसी भी दिखती रही है। अब बगावत के साथ -साथ एंटी इंकमबैंसी ने यहाँ भाजपा की परेशानी जरूर बढ़ाई है।
इस बीच कांग्रेस की बात करे तो कांग्रेस ने भी इस बार टिकट बदल कर मलेंद्र राजन को मैदान में उतारा है। मलेंद्र राजन ने 2012 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था, हालाँकि तब उनकी जमानत तक नहीं बच पाई थी। पर तब से अब तक निसंदेह मलेंद्र राजन इस क्षेत्र में मजबूत जरूर हुए है। उधर भाजपा की बगावत का लाभ भी कांग्रेस को मिल सकता है।
बहरहाल इस त्रिकोणीय मुकाबले में किसी को कम नहीं आँका जा सकता। इंदौरा में कांग्रेस को भाजपा की बगावत से आस है, तो मनोहर को साहनुभूति से। ऐसे में क्या भाजपा इस सीट को बचा पायेगी, फिलवक्त ये बड़ा सवाल है।