अतीत के पन्नों से सियासत के रोचक किस्से
एक साथ लड़े लोकसभा और विधानसभा चुनाव :
उत्तर प्रदेश में हरदोई के दिग्गज नेता परमाई लाल ने 1989 में हरदोई लोकसभा और अहिरौरी विधानसभा क्षेत्र से एक साथ जोर आजमाया। मतदाता व किस्मत दोनों उनके साथ थे और वे दोनों सीटें जीत गए। फिर समस्या ये हुई कि वे विधानसभा में जायें या लोकसभा में? मित्रों से मशवरा करके उन्होंने लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी और विधायक बनकर रहे।
सोमनाथ चटर्जी : लोकसभा के अध्यक्ष के रूप कभी भुलाये नहीं जा सकते
4 जून, 2004 को 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटजी का सर्वसम्मति से निर्वाचन एक इतिहास बन गया। लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी का निर्वाचन प्रस्ताव कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रखा जिसे रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अनुमोदित किया। लोकसभा के 17 अन्य दलों ने भी सोमनाथ चटर्जी का नाम प्रस्तावित किया जिसका समर्थन अन्य दलों के नेताओं द्वारा किया गया। इसके बाद वह निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता विधेयक के विरोध में सीपीएम ने तत्कालीन मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। तब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे। पार्टी ने उन्हें स्पीकर पद छोड़ देने के लिए कहा लेकिन वह नहीं माने। इसके बाद सीपीएम ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। पर सोमनाथ चटर्जी ऐसे नेता था जिन्हें विरोधियों ने भी हमेशा अपना समझा। वे यूपीए के समर्थन से लोकसभा अध्यक्ष बने रहे। फिर 22 जुलाई 2008 को विश्वास मत के दौरान किए गए सभा के संचालन के लिए उनको देश के विभिन्न वर्गों के नागरिकों तथा विदेशों से काफी सराहना मिली।
तमिलनाडु में 1996 के विधानसभा चुनावों में मोड़ा करोची में एक साथ 1,033 उम्मीदवार थे। इनके चुनाव के लिए बैलेट पेपर एक पुस्तिका के रूप में था।
इंदिरा गांधी के विरोध में किया था एक राष्ट्रीय दल का गठन
1977 में हिंदी फिल्मों के जाने-माने अदाकार देवानंद ने इंदिरा गांधी के विरोध में एक राष्ट्रीय दल का गठन किया था। बाकायदा मुंबई के शिवाजी पार्क में एक शानदार रैली आयोजित की गई थी, जिसमें जाने-माने कानूनविद् नानी पालकीवाला और विजय लक्ष्मी पंडित भी उपस्थित हुए थे। किन्तु देवानंद की वह पार्टी कुछ ही वक्त में गुमनाम होकर रह गई। 1977 के आम चुनाव में उसका कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतरा।