क्या नड्डा लड़ेंगे लोकसभा चुनाव ?
दस में से आठ मौकों पर भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्षों ने लड़ा है चुनाव
हिमाचल की सभी सीटों पर पड़ेगा फर्क
नड्डा बड़ा नाम; मंडी, हमीरपुर, कांगड़ा सभी विकल्प
भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष के खुद लोकसभा चुनाव लड़ने का रिवाज पुराना है। 1984 में अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर 2019 में अमित शाह तक अगर एकाध मौकों को छोड़ दिया जाएँ तो पार्टी के सभी अध्यक्ष अपने कार्यकाल में खुद लोकसभा चुनाव लड़े है। 1999 में कुशाभाऊ ठाकरे और 2004 के लोकसभा चुनाव में वैंकया नायडू ही अपवाद है। अब मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी क्या चुनाव लड़ेंगे या अपवादों की फेहरिस्त में शामिल होंगे, इस पर सबकी निगाह है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा क्या लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और लड़े तो सीट कौन सी होगी, ये देखना रोचक होगा। जगत प्रकाश नड्डा के सियासी कद को लेकर कोई सवाल नहीं है और उनके लिए मैदान खुला है। हिमाचल प्रदेश की सियासत को नड्डा बखूबी समझते है और लाजमी है कि प्रदेश की ही एक सीट से मैदान में हो। वर्तमान में नड्डा राज्यसभा सांसद है और उनका कार्यकाल आगामी अप्रैल में पूरा होगा। लगभग इसी दौरान लोकसभा चुनाव है और संभव है नड्डा खुद मैदान में हो।
हिमाचल प्रदेश में चार लोकसभा सीटें है और इनमे से सिर्फ शिमला सीट ही आरक्षित है। यानी तीन सीटें ऐसी है जहाँ से नड्डा चुनाव लड़ सकते है। मंडी से पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह सांसद है और भाजपा को दमदार चेहरा चाहिए। अगर जयराम ठाकुर को भाजपा प्रदेश की राजनीति में ही रखती है तो खुद नड्डा एक विकल्प है। हमीरपुर से निसंदेह अनुराग ठाकुर के रूप में भाजपा के पास मजबूत चेहरा है लेकिन ये सम्भावना भी है कि नड्डा हमीरपुर से लड़े और अनुराग को कांगड़ा से चुनाव लड़वा दिया जाएँ। या हमीरपुर में कोई प्रयोग न कर खुद नड्डा ही कांगड़ा से ताल ठोक दें। बहरहाल विकल्प कई है, लेकिन सवाल ये है कि क्या नड्डा लोकसभा चुनाव लड़ेंगे ?
माहिर मानते है कि अगर नड्डा को पार्टी मैदान में उतारती है तो हिमाचल प्रदेश की सभी सीटों पर इसका प्रभाव पड़ेगा। मोदी सरकार पार्ट 3 के लिए एक एक सीट अहम है और ऐसे में संभवतः खुद नड्डा हिमाचल में फ्रंट से लीड करते दिखे।
हिमाचल में भाजपा 2021 के चार उपचुनाव हारने के बाद 2022 में सत्ता भी गवां चुकी है। ऐसे में राजनैतिक विशेष्ज्ञ मानते है कि खुद नड्डा अब अपने गृह प्रदेश हिमाचल से मैदान में उतरकर कमान संभाल सकते है।
बहरहाल ये तो सियासी अटकलें है और अंतिम निर्णय आलाकमान या यूँ कहे खुद नड्डा को लेना है। पल पल बदलते सियासी समीकरणों के बीच सियासत क्या मोड़ लेती है ये देखना रोचक होगा।
भाजपा में इत्तेफ़ाक़ कुछ ऐसा भी है कि पार्टी के सत्ता में आने पर राष्ट्रीय अध्यक्ष को गृह मंत्री बनाया जाता है, बशर्ते राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकसभा पहुंचे। लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और अमित शाह, तीनों राष्ट्रीय अध्यक्ष लोकसभा पहुंचे और देश के गृह मंत्री बने। अब नड्डा पर निगाह है, दमदार केंद्रीय मंत्री तो नड्डा रह चुके है क्या गृह मंत्री बन जायेंगे ? एक फेहरिस्त में एक अपवाद भी है, कुशाभाऊ ठाकरे जो 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी के अध्यक्ष थे। ठाकरे ने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था, तब पार्टी सत्ता में आई, लेकिन ठाकरे को सरकार में एंट्री नहीं मिली।