मिशन रिपीट के लिए जयराम को भेदना होगा मुद्दों का ये 'चक्रव्यूह
हर पांच वर्ष में सत्ता परिवर्तन के सियासी रिवाज को बदलने की कवायद में भाजपा हर वो कोशिश कर रही है जो संभव हो। साम -दाम -दंड -भेद ,सभी का इस्तेमाल कर भाजपा मिशन रिपीट के पथ पर अग्रसर है और रास्ते में आने वाली हर अड़चन को किनारे किया जा रहा है। कुछ मसले आपसी सूझबुझ से हल किये जा रहे है, तो कुछ केंद्र की सहायता से। विपक्ष द्वारा उठाए गए हर मुद्दे को जयराम एक के बाद एक उखाड़ फेंक रहे है, मगर साधन संसाधन से सुसज्जित भाजपा के विजय रथ के आगे अब भी कुछ ऐसी अड़चने है जिन्हें पार कर पाना फिलवक्त संभव नहीं लगता। इनमें सबसे अहम मसले कर्मचारियों से जुड़े हुए है, तो कुछ अन्य वर्गों के बड़े मुद्दे है। आपको अवगत करवाते है ऐसे सात मुद्दों से जिनके चक्रव्यूह में फिलहाल जयराम सरकार का मिशन रिपीट फंसता दिख रहा है।
पुरानी पेंशन बहाली
सर्वविदित है कि हिमाचल की सियासत में कर्मचारी फैक्टर बेहद महत्वपूर्ण है। किसी भी अन्य राज्य के मुकाबले यहां जनसँख्या के हिसाब से कर्मचारियों की संख्या बहुत ज्यादा है। कहते है कर्मचारी जिससे खफा उसकी सत्ता से विदाई तय समझो। ये ही कारण है कि पिछले कुछ समय में प्रदेश की जयराम सरकार ने कर्मचारियों को लेकर बड़ा दिल दिखाया है। कर्मचारियों की कई महत्वपूर्ण मांगे पूरी की गई है। मगर कर्मचारी इस सरकार से पूरी तरह संतुष्ट है, ये कहा नहीं जा सकता। प्रदेश के अधिकतर कर्मचारियों का सबसे बड़ा मसला, पुरानी पेंशन की बहाली अब तक अधूरा है। पुरानी पेंशन बहाली प्रदेश के हजारों कर्मचारियों का अहम मुद्द्दा है। कांग्रेस शासित दोनों राज्यों, राजस्थान और छतीसगढ़ में पुरानी पेंशन बहाल हो चुकी है और हिमाचल में कांग्रेस खुलकर इसे बहाल करने का वादा कर रही है। वहीं भाजपा इस मुद्दे से बचती दिख रही है लेकिन कर्मचारी भाजपा को छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहे है। लगातार प्रदर्शन हो रहे है और भाजपा खामोश है। ये मुद्दा भाजपा के मिशन रिपीट में सबसे बड़ी बाधा साबित हो सकता है।
लगातार बढ़ता कर्ज
भाजपा सरकार के कार्यकाल में प्रदेश की अथिक स्थिति खराब होती नज़र आई है। प्रदेश सरकार पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। हिमाचल में प्रति व्यक्ति आय 7121 रुपये घट गई है। इसका खुलासा हिमाचल की आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में हुआ है। हालाँकि अब हिमाचल प्रदेश की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2021-22 में 8.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। कोविड-19 महामारी से प्रभावित वित्त वर्ष 2020-21 में राज्य की आर्थिक वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत थी। हिमाचल पर इस वक्त करीब 63400 करोड़ का कर्ज है मगर सरकार को केंद्र से अब तक कोई सहायता नहीं मिल पाई है। विपक्ष लगातार जयराम सरकार को प्रदेश को कर्ज में डुबाने वाली सरकार करार दे रहा है। वहीं अब तक जयराम सरकार केंद्र से भी कोई विशेष पैकेज लाने में कामयाब नहीं हुई है। ऐसे में बढ़ते कर्ज के बीच चुनावी वर्ष में केंद्र से क्या राहत मिलती है, ये देखना रोचक होगा।
आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नीति की दरकार
हिमाचल प्रदेश के करीब 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों को उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश सरकार उनके लिए कोई सशक्त नीति बनाएगी। प्रदेश के अधिकांश सरकारी विभागों में आउटसोर्स कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इनके लिए आज तक सरकार ने कोई नीति का प्रावधान नहीं किया है। इन कर्मचारियों को बजट से काफी उम्मीदें थी, पर इनके हाथ खाली रहे। आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याएं हल करने के लिए कैबिनेट सब कमेटी भी बनाई गई है जिसके अध्यक्ष जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर है। बजट से पहले इस सब कमेटी की बैठक हुई थी जिसमें कर्मचारियों को ये आश्वासन मिला था की उनके लिए बजट में पॉलिसी का प्रावधान किया जाएगा। आउटसोर्स कर्मचारी काफी हद तक आश्वस्त थे की जैसा कहा गया है वैसा ही होगा। परन्तु इस बजट से प्रदेश के आउटसोर्स कर्मचारियों को निराशा ही मिली। अब माना जा रहा है कि सरकार जल्द आउटसोर्स नीति पर मुहर लगा सकती है।
एचआरटीसी को रोडवेज बनाने की मांग
वर्तमान परिवेश में हिमाचल की सरकारी परिवहन व्यवस्था कॉर्पोरेशन के रूप में कार्य कर रही है। आसान शब्दों में कहे तो खुद कमाओ खुद खाओ वाली स्थिति इस वक्त एचआरटीसी में है। हालाँकि लगातार घाटे में होने के चलते समय -समय पर सरकार की ओर से कुछ सहायता एचआरटीसी के संचालन के लिए मिलती रही है। इसके बावजूद भी एचआरटीसी के कर्मचारियों को वेतन ओर पेंशन से जुड़ी समस्याओं का अक्सर सामना करना पड़ता है। जो सुविधाएं सरकारी कर्मचारियों को मिलती है वो एचआरटीसी के कर्मचरियों को मिलती ज़रूर है, मगर कभी भी समय पर नहीं मिलती। इसीलिए ये कर्मचारी चाहते है की एचआरटीसी को रोडवेज बना दिया जाए ताकि जो भी लाभ सरकार अपने कर्मचारियों को देगी वो सभी इन्हें भी मिल पाएंगे। जिस तरह बीते दिनों शिमला की सडकों पर बुजुर्ग रिटायर्ड एचआरटीसी कर्मचारी उतरे है, उससे साफ जाहिर है कि ये तबका सरकार से नाखुश है।
जनजातीय दर्जे की आस में हाटी समुदाय
हाटी क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने की दिशा में सरकार ने एक सकरात्मक कदम जरूर उठाया है, पर यदि चुनाव से पहले सरकार इसे अमलीजामा नहीं पहना पाती तो ये कदम उलटा भी पड़ सकता है। दरअसल प्रदेश और केंद्र दोनों में इस वक्त भाजपा की सरकार है, ऐसे में सरकार के पास कोई बहाना नहीं है। यदि ये मांग पूरी नहीं होती है तो आश्वासन के सहारे भाजपा इन क्षेत्रों में बेहतर कर पाएगी, ये मुश्किल लगता है। जिला सिरमौर की पांच में से चार सीटों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। जिस तरह से कुछ माह पूर्व हुई हाटी समुदाय की महाखुमली में नेताओं को घंटो खड़ा रखा गया, उससे साफ़ जाहिर है कि अब ये समुदाय आश्वासन नहीं एक्शन चाहता है। महाखुमली में हाटी समुदाय ने ये याद दिलाने से भी गुरेज नहीं किया था कि हाटियों का खूब नरम भी है और गरम भी। समुदाय के 'हक़ नहीं तो वोट नहीं' का उद्घोष ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा दी है।
महंगी पड़ सकती है बागवानों की नाराजगी
हिमाचल की करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये की सेब की आर्थिकी के लिए ईरान और तुर्की का सेब चुनौती बन गया है। बाजार में ईरान का सेब हिमाचली सेब को पछाड़ रहा है। बागवानों के अनुसार भारत में अफगानिस्तान के रास्ते ईरान और तुर्की से सेब का अनियंत्रित और अनियमित आयात हो रहा है, जो कि बागवानों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। ऐसे में बागवान ईरान और तुर्की से सेब आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे है। सेब की इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने की मांग भी वर्षों से लंबित है। साथ ही बागवानों का मानना है कि हिमाचल में भी कश्मीर की तरह नैफेड जैसी कोई केंद्रीय संस्था बागवानों का सेब खरीदें। इसके अलावा कार्टन में इस्तेमाल होने वाले एग्रो वेस्ट पेपर पर लगने वाले जीएसटी को कम करने की मांग भी उठ रही है। पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट के वादे भी सरकार की फाइल से आगे नहीं बढ़ पाए है। वहीँ जिला सोलन और सिरमौर के किसान भी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट को लेकर सरकार से खफा है।
नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता
नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता का लाभ देने का वादा भाजपा ने अपने 2017 के घोषणा पत्र में किया था। भाजपा सरकार तो बनी लेकिन सरकार इस वादे को भूल गई। हजारों कर्मचारियों में इस बात को लेकर टीस है। हालात ये है कि इसके चलते कई सीनियर कर्मचारी जूनियर हो चुके है और जूनियर सीनियर। जाहिर है ये मुद्दा कर्मचारियों के स्वाभिमान से जुड़ा भी है। इसे लेकर अगर जयराम सरकार जल्द कोई निर्णायक फैसला नहीं लेती है तो इसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ा सकता है। वहीँ कांग्रेस का रुख भी इस मुद्दे को लेकर साफ़ नहीं है।