मंत्री को हराकर पहला चुनाव जीते थे डॉ सैजल, अब खुद मंत्री
** कसौली के त्रिकोणीय मुकाबले में स्वास्थ्य मंत्री डॉ सैजल का असल इम्तिहान
** दमखम से लड़े है विनोद सुल्तानपुरी, 'करो या मरो' का चुनाव
** हरमेल धीमान ने दोनों तरफ लगाई है सेंध, रोचक है जंग
2007 का विधानसभा चुनाव चल रहा था और कसौली विधानसभा सीट से वीरभद्र सरकार के पशुपालन मंत्री और पांच बार के विधायक रघुराज मैदान में थे। उनका मुकाबला था भाजपा के डॉ राजीव सैजल से। 36 साल के सैजल का ये पहला चुनाव था। पर कसौली की जनता ने रघुराज पर डॉ राजीव सैजल को वरीयता दी और डॉ सैजल चुनाव जीत गए। दरअसल मंत्री बनने के बाद कसौली वालों की अपेक्षाएं रघुराज से बढ़ गई थी और इन्ही अपेक्षाओं का बोझ उन पर भारी पड़ा। तब जीत के साथ आगाज करने वाले डॉ सैजल अब तक जीत की हैट्रिक लगा चुके है और इस बार जीत का चौका लगाने के इरादे से मैदान में है।
खास बात ये है कि इस बार डॉ राजीव सैजल भी मंत्री रहते हुए चुनाव लड़े है और उनसे भी जनता की बेशुमार अपेक्षाएं रही है। जाहिर है ऐसे में ये चुनाव डॉ राजीव सैजल के आसान बिल्कुल नहीं रहा है। सैजल ने दमखम के साथ चुनाव लड़ा है और ऐसे में अब देखना ये होगा कि क्या डॉ सैजल जनता का दिल चौथी बार जीत पाएं है।
यूँ तो कसौली निर्वाचन क्षेत्र लम्बे अर्से तक कांग्रेस का गढ़ रहा है। 1982 से 2003 तक हुए 6 विधानसभा चुनावों में से पांच कांग्रेस ने जीते और पांचों बार प्रत्याशी थे रघुराज। सिर्फ 1990 की शांता लहर में एक मौका ऐसा आया जब रघुराज भाजपा के सत्यपाल कम्बोज से चुनाव हारे। इसके बाद 2007 से इस सीट पर सैजल ही जीतते आ रहे है और इस बार भी पार्टी ने उन्हीं पर भरोसा जताया है। उधर डॉ सैजल के विरुद्ध लगातार दो चुनाव मामूली अंतर से हारने वाले विनोद सुल्तानपुरी को कांग्रेस ने तीसरा मौका दिया है। जाहिर है ऐसे में विनोद के लिए ये 'करो या मरो' वाला चुनाव रहा है और इसकी झलक उनकी जमीनी मेहनत में भी दिखी है।
पिछले दोनों ही मौकों पर कांग्रेस की अंतर्कलह सुल्तापुरी को भारी पड़ी थी लेकिन इस बार कांग्रेस भी मोटे तौर पर एकजुट दिखी है और चुनाव प्रबंधन भी बेहतर दिखा है। ऐसे में जाहिर है इस बार विनोद का दावा हल्का नहीं है।
कसौली के चुनाव को इस बार त्रिकोणीय बनाया है हरमेल धीमान ने। कसौली भाजपा के वरिष्ठ नेता व भाजपा एससी मोर्चा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष रहे हरमेल धीमान ने कुछ माह पूर्व भाजपा छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया था और आप प्रत्याशी के तौर पर दमखम से चुनाव लड़ा है। नतीजा जो भी रहे पर हरमेल धीमान इस चुनाव में बड़ा अंतर डाल गए है। जानकार मानते है कि हरमेल धीमान ने सिर्फ एकतरफ सेंध नहीं लगाई, बल्कि दोनों ओर फर्क डाला है। ऐसे में जाहिर है कसौली का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प है।