अटल का अमर प्रेम: अधूरी प्रेम कहानी जिसे शादी का मुकाम नहीं मिला
मोहबबत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस क़ाफ़िर पे दम निकले...
मिर्ज़ा ग़ालिब का ये शेर अटल के जीवन की हकीकत था। अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेम कहानी निःसंदेह देश के राजनीतिक हलके में घटी सबसे सुंदर प्रेम कहानी थी। 1940 के दशक में अटल और राजकुमारी कौल दोनों एक ही वक्त ग्वालियर के एक ही कॉलेज में पढ़े थे। ये वो दौर था जब एक लड़के और लड़की की दोस्ती समाज को नागवार हुआ करती थी। प्रेम होने पर भी अक्सर लोगों में इजहार करने का हौसला नहीं हुआ करता था, पर अटल तो अटल थे। एक दिन लाइब्रेरी में एक किताब के भीतर राजकुमारी के लिए एक लव लेटर ररख दिया। इसके बाद शुरू हुआ जवाब का इन्तजार। दरअसल राजकुमारी ने अटल को जवाब किताब के अंदर ही रखकर दिया था, किन्तु वो अटल तक पहुंचा ही नहीं। जब अटल को इस हकीकत का पता चला तब तक समय का पहिया कई वर्ष आगे बढ़ चूका था।
इस बीच राजकुमारी के पिता ने उनकी शादी एक शिक्षक ब्रिज नारायण कौल से करवा दी।हालंकि ये भी कहा जाता है कि राजकुमारी कौल भी अटल से शादी करना चाहती थीं, पर परिवार को अटल मंजूर नहीं थे। राजकुमारी कौल की शादी के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने ताउम्र शादी नहीं की।
करीब डेढ़ दशक बाद जब दोनों फिर मिले तब तक अटल सांसद बन चुके थे। राजकुमारी कौल भी पति के साथ दिल्ली में बस चुकी थी। मोरारजी देसाई की सरकार में जब अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री हुए तो कौल परिवार लुटियंस जोन में उनके साथ आकर रहने लगा।
वर्ष 2014 में जब राजकुमारी कौल की मौत हुई तो इंडियन एक्सप्रेस ने छापा - "राजकुमारी कौल वह अटल जी के जीवन की डोर थीं। वह उनके घर की सबसे महत्वपूर्ण सदस्य और उनकी सबसे घनिष्ठ मित्र भी थीं। "
- दीनदयाल उपाध्याय की मौत के बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी का नाम संघ अध्यक्ष के लिए उठने लगा, तो उनका विरोध किया गया। दरअसल अटल गैरपरंपरागत जीवनशैली और मिसेज कौल के साथ उनके संबंधों के कारण जनसंघ में उनका विरोध हुआ था और बलराज मधोक जैसे लोगों ने खुलकर उनके और राजकुमारी कौल के सम्बन्ध को लेकर सवाल उठाये थे।