कर्नल एक्शन में, विरोधी टेंशन में
कर्नल एक्शन में है और विरोधी टेंशन में है। फिलवक्त सोलन कांग्रेस का सूरत ए हाल कुछ ऐसा ही है। इसी वर्ष के शुरुआत में जिला परिषद चुनाव हुए थे और तभी से सोलन विधायक कर्नल धनीराम शांडिल ने आक्रामक रुख इख्तियार किया हुआ है। पहले जिला परिषद चुनाव में अपनी इच्छा अनुसार टिकट आवंटन कर अपनी ताकत मनवाई। हालांकि नतीजे मनमाफिक नहीं रहे पर सियासी चश्मे से देखे तो कर्नल की नज़र जिला परिषद् पर कम और 2022 पर ज्यादा थी। इसके बाद अप्रैल में हुए नगर निगम सोलन के चुनाव में भी कर्नल का जादू खूब चला। खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सोलन के वार्ड - वार्ड घूमे, बावजूद इसके सोलन नगर निगम पर कांग्रेस का कब्ज़ा हुआ। अब कर्नल के तेवर फिर बदले-बदले से है। कर्नल शांडिल समस्त निर्वाचन क्षेत्र में निरंतर दौरे कर रहे है और 2022 के लिए अपनी जमीन मजबूत भी।
सोलन में कांग्रेस की राजनीति की बात करें तो लम्बे वक्त से मुख्य तौर पर यहां पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह गुट का ही बोलबाला रहा। पर कर्नल धनीराम शांडिल दिल्ली आलाकमान में अपनी पहुंच और पकड़ की बदौलत वीरभद्र सिंह के दौर में भी अपनी जगह बनाये रखने में कामयाब रहे। हालांकि राजा गुट के साथ उनकी खींचतान किसी से छुपी नहीं रही, पर इसमें कोई संशय नहीं है कि उन्होंने कभी भी राजा गुट के आगे हथियार नहीं डाले। अब वीरभद्र सिंह नहीं है और आने वाला वक्त उनके निष्ठावानों की कड़ी परीक्षा लेगा। जो लोग कर्नल शांडिल की खुलकर मुखालफ़त करते रहे है उनके राजनैतिक भविष्य को लेकर भी कयास लगने शुरू हो गए है। ऐसे में सोलन कांग्रेस की राजनीति में कई दिलचस्प उतार -चढ़ाव देखने को मिल सकते है।
न काहू से दोस्ती न काहू से बैर
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर सवाल उठ रहे है। पार्टी में कई वरिष्ठ नेता है जो नेतृत्व करने का मादा रखते है और कर्नल शांडिल भी उनमें से एक है। शांडिल दो बार शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे है, कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य रहे है और वर्तमान में दूसरी दफा सोलन निर्वाचन क्षेत्र से विधायक है। पर उनकी असल ताकत उनका बेदाग़ राजनैतिक करियर है। जब प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी तब भाजपा कांग्रेस के मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चार्ज शीट लेकर आई थी, उक्त चार्ज शीट में भी शांडिल का नाम नहीं था। यानी विरोधी भी शांडिल की ईमानदारी पर कभी सवाल नहीं उठा पाए। एक बात और कर्नल शांडिल के पक्ष में जाती है, वो है उनकी गुटबाजी से दुरी। प्रदेश कांग्रेस में कई धड़े है और शांडिल किसी भी गुट में शामिल नहीं है। यानी न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।
शांडिल का कोई विकल्प नहीं
इन दिनों सोलन में कर्नल शांडिल के विरोधियों ने एक नया शगूफा छेड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि 2022 के लिए शहर की सियासत के एक चेहरे को तैयार करने की जद्दोजहद ज़ारी है। पर हकीकत ये है कि फिलवक्त सोलन कांग्रेस ने ऐसा कोई चेहरा नहीं दिखता जो कर्नल शांडिल का विकल्प बन सके। हालांकि विकल्प न होना कांग्रेस के लिए एक बेहतर स्थिति नहीं है, पर निजी तौर पर बात करें ये बात कर्नल शांडिल को और मजबूत करती है।
ब्लॉक और शहरी इकाई में शांडिल के निष्ठावान
सोलन में कांग्रेस के संगठन की बात करें तो फिलहाल मंडल और शहर में कर्नल शांडिल की ही पकड़ है। दोनों की कमान कर्नल के निष्ठावानों के हाथ में है। हालांकि जिला संगठन और कर्नल शांडिल के बीच की खींचतान काफी वक्त से चर्चा में है। वैसे कांग्रेस के जिला संगठन की सक्रियता को लेकर भी सवाल उठ रहे है। ऐसे में आगामी वक्त में फेरबदल के कयास भी लग रहे है।
विभाजित भाजपा, लाभ कर्नल को
आपसी खींचतान के चलते सोलन भाजपा गुटों में विभाजित है जिसका सीधा लाभ कर्नल शांडिल को मिलता दिख रहा है। न कांग्रेस में कर्नल शांडिल का कोई विकल्प है और न ही फिलहाल भाजपा इतनी मजबूत दिख रही है कि शांडिल के लिए कोई बड़ी चुनौती पेश कर सके। हकीकत ये है कि भाजपा की स्थिति 2017 के मुकाबले भी कमजोर दिखती है। हालाँकि चुनाव में अभी एक साल से अधिक का वक्त है और ऐसे में उम्मीद है कि अभी सोलन की राजनीति कई दिलचस्प मोड़ लेगी।