नड्डा और केजरीवाल के कार्यक्रमों की तुलना, भाजपा के लिए सोचने का संदर्भ
आगाज ठीक है, पर बेहतर हो सकता था। जानकार मान रहे है कि हिमाचल की सियासत के दुर्ग कहे जाने वाले कांगड़ा में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का चुनावी उद्घोष पूरे शबाब में नहीं दिखा। विशेषकर जब अगले ही दिन अरविंद केजरीवाल की जनसभा में भी कमोबेश उतनी ही भीड़ उमड़ी, तो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के प्रबंधन पर सवाल उठना तो लाजमी है। हिमाचल प्रदेश में कुल 7792 बूथ है और हर बूथ पर भाजपा के त्रिदेव ( बूथ पालक, बूथ अध्यक्ष, पन्ना प्रमुख) है। जमीनी संगठन भी मजबूत है और संसाधनों के लिहाज से भी पार्टी ताकतवर। दूसरी तरफ हिमाचल में जुम्मा -जुम्मा चार दिन पहले आई आम आदमी पार्टी, जिसके पास न संगठन है और न ही प्रदेश में गहरी सियासी जड़ें। अब राजनैतिक आयोजनों के बाद अगर दोनों की तुलना करनी पड़े तो भाजपा के लिए ये सोचने का संदर्भ जरूर है।
यहाँ ये जहन में रखना जरूर आवश्यक है कि एक माह के अंदर हिमाचल में ये नड्डा का दूसरा रोड शो था और इसके बाद भी उनके दौरे हिमाचल में जारी रहेंगे। स्पष्ट है भाजपा मिशन रिपीट में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। वहीँ जगत प्रकाश नड्डा के लिए तो हिमाचल प्रदेश जीतना प्रतिष्ठता का सवाल भी है क्यों कि ये उनका गृह राज्य है। बहरहाल इस बात के लिए भाजपा की तारीफ जरूर करनी होगी कि पार्टी प्रो एक्टिव दिख रही है और ये खूबी ही भाजपा को सम्भवतः अन्य पार्टियों से अलग बनाती है। नड्डा के अलावा मई में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित कई अन्य केंद्रीय मंत्री हिमाचल प्रदेश का रुख करेंगे। वहीं जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिलासपुर में एम्स का उद्घाटन करने आएंगे।
कांग्रेस को बदलना होगा गियर :
कांगड़ा की सियासत में अगर बात कांग्रेस की करें तो अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में फिलहाल पार्टी की गतिविधियां लगभग शून्य ही है। इसे कांग्रेस की विफलता ही कहेंगे कि मौजूदा समय में वो चर्चा से भी गायब है। पर कांग्रेस के काडर को हल्का लेने की भूल नहीं की जा सकती। हाल फिलहाल तो हिमाचल प्रदेश में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही संभावित है, बाकी राजनीति में कुछ भी मुमकिन है।