जरियाल की सियासत में भटकाव, एक बार फिर कुलदीप से टकराव
अरविन्द शर्मा। फर्स्ट वर्डिक्ट
आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र बढ़ते सियासी तपन की जद में जिला चंबा का भटियात निर्वाचन क्षेत्र भी आ चुका है। बीते कुछ वक्त में दूसरी बार विधायक बन विधानसभा पहुँचे विक्रम जरियाल ने ख़ुद अपनी लोकप्रियता को खासा नुकसान पहुँचाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह कई मौक़ों पर दिखने वाले विधायक के कड़े तेवर हैं, जो उनकी अपनी शालीन एवं सौम्य छवि के विपरीत हैं। साथ ही प्रदेश की अपनी ही सरकार होने के बावजूद भटियात क्षेत्र के लिए कोई बड़ी उपलब्धि लाना भी उनके लिए दूर की कौड़ी साबित हुआ है। पिछले साढ़े चार वर्ष में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी भटियात में एक मर्तबा पहुंचे हैं, जबकि बाकि समूचे चंबा में अक्सर मुख्यमंत्री के दौरे होते रहते हैं। कांगड़ा और चंबा की सीमा से लगते इस विधानसभा क्षेत्र के बाबत अगर बुनियादी सुविधाओं की बात की जाए तो अच्छे स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए यहाँ के बाशिंदों को टाँडा मेडिकल कॉलेज कांगड़ा और धर्मशाला का रुख करना पड़ता है। अगर इस क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों, आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियो, प्लस टू किए गए स्कूलों की उद्घाटन पट्टिकाओं पर नज़र डालें तो ज्यादातर पर कुलदीप पठानिया का नाम दर्ज है। हालांकि पिछले दिनों कैबिनेट में भटियात को लेकर चवाड़ी में पीडब्ल्यूडी डिवीजन खोले जाने की घोषणा जरूर जरियाल के लिए हर्ष का विषय हो सकता है, पर अभी तक यह घोषणा ही है।
मौजूदा संभावित प्रत्याशियों के परिपेक्ष में पूर्व के आंकड़ों पर नज़र डालें तो भटियात विधानसभा में राजपूत व अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बहुलता है। अगर 2012 के विधानसभा को देखें तो जरियाल यह चुनाव भारी मतों से जितने में सफल रहे थे, जबकि चार बार के विधायक रहे पठानिया आसानी से हार गए थे। इसका कारण था यहाँ से निर्दलीय उम्मीदवार रहे भूपिंदर सिंह चौहान जिन्होंने दस हज़ार के आस-पास मत प्राप्त किये थे। साफ़ तौर पर मतों का विभाजन यहाँ दिखता है। 2017 में फिर जरियाल को यहाँ के लोगों ने विधानसभा पहुँचाया। तब विक्रम सिंह जरियाल ने कुलदीप सिंह पठानिया को 6885 वोटों के मार्जिन से हराया था। इस बार यूँ तो दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों से टिकट के कई दावेदार है पर संभवतः जरियाल और पठानिया फिर आमने -सामने होंगे।
आज के इस सूचना -क्रांति वाले आधुनिक दौर में भी कोई चाहे लाख ख़ुद को समझदार मान कर चलें लेकिन सियासी शतरंज की बिसात पुराने तरीके से ही बिछाई जाती हैं। भटियात में भी ये ही कहानी है। यहाँ भी जातीय ध्रुवीकरण और मत विभाजन फैक्टर पर आधारित वोट बैंक की राजनीति को नज़र अन्दाज़ नहीं किया जा सकता। इस सीट पर गुज्जर, गद्दी और पिछड़े वर्ग के मतदाता जिसके पक्ष में एकजुट होकर वोट करेंगे, उसकी राह आसान होगी। बाकि पिछले दो -एक महीनों से प्रदेश में सक्रिय हुई आम आदमी पार्टी का ऊँट इस विधानसभा क्षेत्र में किस करवट बैठता है यह देखना भी दिलचस्प होगा।
शांता ने गोद लिया, पर हालात नहीं बदले ...
दत्तक पुत्र नाम से जाने वाले लाहड़ू के साथ लगते गांव परछोड़ को सांसद रहते हुए शांता कुमार ने गोद लिया था, लेकिन शांता भी इस गांव को गोद लेने की घोषणा ही कर पाए थे और कभी इस गाँव में जा नहीं सके। परछोड़ गांव में फिन्ना सिंह नहर का निर्माण पिछले कई वर्षों से चल रहा है और उस नहर के निर्माण कार्य को शुरू करवाने के श्रेय का दावा कांग्रेसी और भाजपाई दोनों करते आए हैं। पर हकीकत ये है कि अब तक कार्य अधर में लटका है।
जरियाल का प्रधान से विधायक तक का सफर :
विक्रम सिंह जरियाल राजनीति में आने से पहले भारतीय सेना में रहे। इसके बाद वे टुंडी पंचायत के प्रधान रहे। तदोपरांत दो बार जिला परिषद सदस्य चुने गए, जिसके बाद भाजपा ने उन्हें ज़िला सचिव बनाया। 2012 के चुनावों में जरियाल पहली बार विधायक चुने गए।