चुनावी साल, और सरकार की चुनरी में लगा पेपर लीक प्रकरण का दाग
फर्स्ट वर्डिक्ट. शिमला
बेदाग़ छवि वाले मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार पर अब पुलिस भर्ती पेपर लीक मामले का दाग लगा है। जयराम सरकार की चुनरी में लगे इस दाग के धब्बे गहरे है और निश्चित तौर पर विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष इन्हें हल्का पड़ने नहीं देगा। तंत्र की इस नाकामी का ठीकरा सरकार के सर फूटना लाजमी है। हालांकि सरकार ने हरसंभव एक्शन लिया है लेकिन ये प्रकरण अब सियासी रंग ले चूका है। कोरोना काल में हुए स्वास्थ्य घोटाले के बाद ये पहला ऐसा बड़ा मामला है जिसने सरकार की छवि को तार -तार कर दिया है। स्वास्थ्य घोटाले की आंच मंद करने के लिए तब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल को कुर्सी की बलि देनी पड़ी थी, तो अब सरकार ने मामला सीबीआई को सौप कर अपनी स्वच्छ छवि बचाये रखने का प्रयास किया है। पर असल बात ये है कि इस प्रकरण में सरकार की खासी छीछा लेदर हो चुकी है। व्यवस्था पर सवाल उठ रहे है और सवाल न सिर्फ विरोधी राजनैतिक दल उठा रहे है अपितु आम जनता भी सोशल मीडिया पर जमकर भड़ास निकाल रही है। व्यवस्था पर सवाल उठना लाज़मी भी है क्यों कि सरकार और पुलिस प्रशासन की नाक तले पुलिस कांस्टेबल परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हो गया। जिस पुलिस भर्ती परीक्षा के आयोजन पर हिमाचल पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही थी, वही लिखित परीक्षा खाकी पर दाग बन गई है। यहां बड़ा सवाल ये भी है की जब पुलिस महकमा ही अपनी परीक्षा पारदर्शिता के साथ नहीं करवा पा रहा है तो दूसरे विभागों में इसकी उम्मीद कैसे की जा सकती है। इस मामले के सामने आते ही बेरोज़गारी के मसले पर सरकार को पहले से घेर रहा विपक्ष भी और अधिक सक्रीय हो गया है। ज़ाहिर है चुनाव से पहले यह मुद्दा सत्तारूढ़ भाजपा के लिए गले की फांस बन गया है।
यह मामला हजारों परिवारों से जुड़ा है। पुलिस कांस्टेबल की भर्ती 70 हजार से अधिक युवाओं ने दी है। खासकर जिन युवाओं ने अपनी मेहनत से पेपर पास कर मेरिट में जगह बनाई है, उनके सपनों पर पानी फिर गया है। यही वजह है कि कांग्रेस के साथ -साथ आम आदमी पार्टी और माकपा भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रही है। जयराम सरकार इस मामले में निष्पक्ष जांच का दावा ज़रूर कर रही है मगर आलोचनाओं का दौर थम नहीं रहा। हिमाचल में पुलिस भर्ती का लिखित पेपर पहली बार लीक हुआ है। दरअसल पुलिस ने पहली बार पेपर तैयार और प्रिंट करने का सिस्टम बदला था। अब आरोपों के घेरे मेें पुलिस भी है, इसलिए अब इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है।
जेओए भर्ती भी सवालों के घेरे में :
इस मामले ने सिर्फ सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल ही खड़े नहीं किये बल्कि बीते कुछ सालों में सफल न हो पाई उन भर्ती प्रक्रियाओं की याद भी दिला दी जिनसे प्रदेश के बेरोज़गार युवा अब तक परेशान है। पुलिस भर्ती के आलावा जेओए भर्ती भी सवालों के घेरे में है। अन्य महकमों में भी भर्तियां अभी लंबित चल रही हैं। शिक्षा विभाग में आठ हजार मल्टी टास्क वर्करों की भर्ती अभी तक पूरी नहीं हुई है। जेबीटी भर्ती भी लटकी हुई है। दिन प्रति दिनप्रदेश में बेरोज़गार युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। बेरोज़गारी एक ऐसा मसला बन चूका जिसका निवारण सरकार के पास नहीं दिखाई देता। इस पर भर्ती परीक्षाओं के पेपर लेक होने से युवाओं में रोष है।