अगर कांग्रेस आई, तो कौन होगा मुख्यमंत्री ?
'कांग्रेस आ रही है' पार्टी के होर्डिंग्स और प्रचार सामग्री पर छापा ये नारा अब पार्टी के नेताओं की जुबां पर आ गया है और पुरे आत्मवश्वास के साथ पार्टी के तमाम बड़े नेता दो तिहाई बहुमत के साथ सत्ता वापसी का दावा कर रहे है। कांग्रेस के तमाम दिग्गज एक सुर में रिवाज बदलने का सियासी राग दोहरा रहे है। रिकॉर्ड मतदान और प्रदेश का सियासी इतिहास भी कांग्रेस के दावे को मजबूत करता है। इसके अलावा माहिर मानते है कि पुरानी पेंशन और महंगाई जैसे मुद्दे भी संभवतः कांग्रेस के पक्ष में गए है। बेहतर टिकट आवंटन और सीमित बगावत भी कांग्रेस के दावे को और बल दे रहे है। यानी कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस आ सकती है। हालांकि, जनादेश आठ दिसंबर को आएगा और तब तक इन दावों और विश्लेषणों में कितना दम है, इसके लिए इंतजार करना होगा। बहरहाल, अगर कांग्रेस सात में आई तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा, ये फिलवक्त सबसे बड़ा और पेचीदा सवाल है।
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता है, सब सियासी महारथी और सब दावेदार। कम से कम आठ चेहरे ऐसे है जिनका नाम उनके समर्थक खुलकर मुख्यमंत्री के लिए प्रोजेक्ट कर रहे है। हालांकि ये तमाम नेता खुद शांत है और उम्मीद से विपरीत इस अनुशासन के लिए निसंदेह पार्टी बधाई की हकदार भी है। वरना वीरभद्र सिंह के निधन के बाद एक बड़ा वर्ग ये मानता था कि पार्टी में 'अपनी डफली अपना राग' की स्थिति खुलकर सामने आ जाएगी। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस को लेकर सबसे बड़ा सवाल ये था कि पार्टी किसके चेहरे पर चुनाव लड़ेगी। पर कांग्रेस ने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और लड़ा भी। आगे भी ये एकजुटता और अनुशासन कायम रह पाता है या नहीं, ये तो समय के गर्भ में छिपा है पर चुनाव तक तो कांग्रेस ने कमाल कर के दिखा ही दिया। अब ज्यूँ ज्यूँ नतीजों का दिन नजदीक आ रहा है, पार्टी के भीतर की खलबली मचना स्वाभविक है। जाहिर है कई दिग्गज नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर निगाह गड़ाएं हुए है और अब पार्टी आलाकमान का आशीर्वाद और समर्थक विधायकों का संख्याबल ये तय करेगा कि किसके अरमान पूरे होते है।
पार्टी में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह, चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर, रामलाल ठाकुर और आशा कुमारी वो प्रमुख नाम है जिनके समर्थक खुलकर उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे है। इनके अलावा एक और नाम समर्थकों द्वारा जमकर प्रोजेक्ट किया जा रहा है, वो है युवा नेता विक्रमादित्य सिंह। हालांकि ये वर्तमान स्थिति में व्यावहारिक नहीं लगता, पर इससे विक्रमादित्य की लोकप्रियता का अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। बहरहाल मौजूदा परिवेश में नजर डाले तो सीएम पद की दौड़ में शामिल इन नेताओं में से किसकी इच्छा पूरी होती है, ये समर्थक विधायकों का संख्याबल भी तय करेगा। पार्टी के भीतर इसे लेकर सिसायत जरूर चरम पर है, पर सुखद बात ये है कि पार्टी के भीतर की ये सियासत अनुशासन के दायरे में हो रही है।
5नए सियासी गठजोड़ संभव
कांग्रेस के टिकट आवंटन पर निगाह डाले तो होलीलॉज के निष्ठावानों के अलावा सबसे ज्यादा टिकट सुक्खू कैंप को मिले है। दोनों तरफ के निष्ठवानो में से किसके कितने समर्थक जीतकर आते है, ये सीएम पद के चयन के लिहाज से महत्वपूर्ण होगा। इन दोनों के बीच ठाकुर कौल सिंह भी है जो जिला मंडी में कांग्रेस की प्रचंड जीत का दावा कर रहे है। कौल सिंह और होलीलॉज का सियासी गठजोड़ एक बार फिर मुमकिन है और ऐसे में प्रतिभा सिंह या ठाकुर कौल सिंह का दावा मजबूत हो सकता है। जानकार मान रहे है कि अगर प्रतिभा सिंह के नाम पर सहमति नहीं बनती है तो होलीलॉज, कौल सिंह ठाकुर के साथ जा सकता है। हालांकि ये सिर्फ कयास है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री भी होलीलॉज के करीबी रहे है, ऐसे में उनका नाम भी खारिज नहीं किया जा सकता। आशा कुमारी भी दावेदार है और संभवतः होलीलॉज कैंप के साथ ही आगे बढ़ रही है। उधर सुखविंद्र सिंह सुक्खू तो अपने समर्थकों के साथ मजबूत दिख ही रहे है। रामलाल ठाकुर और हर्षवर्धन चौहान जैसे अन्य नेता किस रणनीति पर आगे बढ़ते है, ये देखना भी रोचक होगा। क्या होलीलॉज के समानांतर एक और सियासी गठजोड़ होता है या नहीं, ये देखना दिलचस्प होने वाला है। क्या होलीलॉज निष्ठावानों की गिनती भी कम -ज्यादा होगी, इस पर भी निगाह टिकी है।
कमतर नहीं दिख रहे सुक्खू
अपनी शर्तों पर सियासत करते आएं सुखविंद्र सिंह सुक्खू के दावे को कमतर आंकना किसी के लिए भी बड़ी भूल सिद्ध हो सकता है। जो नेता वीरभद्र सिंह से टकराते हुए खुद की सियासी जमीन बचा ले, वो आसानी से हार कैसे मान सकता है। सुक्खू के जिन समर्थकों को टिकट मिला है उनमें से अधिकांश अपनी अपनी सीटों पर अच्छा करते दिख रहे है। इसके अलावा होलीलॉज कैंप के बाहर के कई अन्य नेता भी खुद का दावा कमजोर पड़ने पर अपने समर्थकों सहित सुक्खू का साथ दे सकते है। यानी सुक्खू संख्याबल के मामले में भी कम नहीं माने जा सकते। पार्टी आलाकमान के भी वे नजदीकी माने जाते है।
'प्रतिभा' की 'प्रतिभा' पर संशय नहीं
हिमाचल प्रदेश को आज तक महिला मुख्यमंत्री नहीं मिली है और ऐसे में प्रतिभा सिंह एक मजबूत दावेदार है। पार्टी आलाकमान को वीरभद्र सिंह के नाम के असर का बखूभी इल्म है और उपचुनाव के नतीजों में इसका असर भी दिख चूका है। इस बार भी चुनाव सामग्री में जिस तरह वीरभद्र सिंह के नाम का इस्तेमाल किया गया है वो इसे साफ़ दर्शाता है। मंडी संसदीय उपचुनाव जीतकर प्रतिभा सिंह भी अपनी प्रतिभा दिखा चुकी है और शायद ये ही बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनकी नियुक्ति का अहम् कारण बना। जानकार मानते है कि अब भी बतौर मुख्यमंत्री प्रतिभा सिंह का दावा मजबूत है।
सबसे वरिष्ठ कौल सिंह ठाकुर
करीब 50 साल लम्बे राजनीतिक सफर में कौल सिंह ठाकुर ने पंचायत समिति से लेकर कैबिनेट मंत्री तक का फासला तय किया है। वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे है और कांग्रेस ने निष्ठावान सिपाही है। जानकार मानते है कि अगर मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में सहमति नहीं बनती है तो कौल सिंह ठाकुर वो नाम है जिसपर वरिष्ठता का हवाल देकर आलाकमान सबको मना सकता है। होलीलॉज से भी कौल सिंह ठाकुर के सम्बंध बेहतर दिख रहे है, ऐसे में वरिष्ठता का लाभ उन्हें मिल सकता है।
होलीलॉज के समर्थक पर टिकी मुकेश की दावेदारी
मुकेश अग्निहोत्री ने नेता प्रतिपक्ष रहते हुए बीते पांच साल में जयराम सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुकेश भी सीएम पद के प्रबल दावेदार है, हालांकि उनकी दावेदारी होलीलॉज के भरोसे ज्यादा टिकी दिखती है। दरअसल जिस तरह सुखविंद्र सिंह सुक्खू के अपने कई समर्थक और निष्ठावान चुनावी मैदान में है, उस तरह मुकेश अग्निहोत्री का अपना कोई अलग कैंप नहीं दिखता। ऐसे में क्या होलीलॉज उन्हें प्रोजेक्ट करता है, ये देखना रोचक होगा। संभवतः मुकेश होलीलॉज के साथ ही आगे बढ़ेंगे, लेकिन उनकी दावेदारी को हल्का नहीं लिया जा सकता। वे होलीलॉज की पसंद भी हो सकते है।