नतीजे प्रतिकूल आएं तो भाजपा संगठन पर सवाल उठना लाजमी
क्या हिमाचल प्रदेश में भाजपा संगठन में सर्जेरी की दरकार है, ये वो सवाल है जो या तो आठ दिसंबर के बाद तूल पकड़ेगा या गायब हो जायेगा। दरअसल, पिछले साल हुए मंडी संसदीय उपचुनाव और तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव में करारी शिकस्त के बाद भाजपा संगठन को लेकर कई सवाल उठे थे। तब कयास लग रहे थे कि पार्टी चेहरा बदल सकती है और संगठन में भी बदलाव संभव है। मंथन हुआ, चिंतन हुए लेकिन बदलाव नहीं हुआ। सरकार का फेस जयराम ही रहे और संगठन सुरेश कश्यप के हाथों में ही रहा। तब बदलाव न करने का निर्णय सही था या नहीं, ये भी आठ दिसम्बर को तय होगा। जाहिर है नतीजे प्रतिकूल रहे तो जवाब उन लोगों को देना होगा जिनके भरोसे पार्टी रिवाज बदलने का दावा करती रही है। पूर्व अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती की जगह भाजपा ने 2019 के अंत में डॉ राजीव बिंदल को प्रदेश संगठन की कमान सौंपी थी। बिंदल ने चार्ज लेते ही कई नियुक्तियां की और भाजपा संगठन में उनकी कार्यशैली की छाप स्पष्ट दिखने लगी। इसके बाद कोरोना काल में हुए स्वास्थ्य घोटाले में बिंदल का नाम उछला तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
दिलचस्प बात ये है की स्वास्थ्य महकमा सीएम के पास था और इस्तीफा प्रदेश अध्यक्ष ने दिया। हालांकि इसके बाद बिंदल को क्लीन चिट मिली। बिंदल के स्थान पर सुरेश कश्यप को नया अध्यक्ष बनाया गया। तब तक पार्टी की परफॉरमेंस अव्वल थी। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप कर चुकी थी और दो उपचुनाव भी जीत चुकी थी। पर सुरेश कश्यप के आने के बाद पार्टी सिंबल पर हुए चार नगर निगम चुनाव में से पार्टी को दो में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद एक लोकसभा उपचुनाव और तीन विधानसभा उपचुनाव भी पार्टी हार गई। जाहिर है ऐसे में सवाल उठना तो लाजमी है। अब विधानसभा चुनाव के नतीजे भी यदि प्रतिकूल रहते है तो बतौर अध्यक्ष सुरेश कश्यप की परफॉरमेंस पर बात तो होगी ही। पर यदि भाजपा हिमाचल प्रदेश में रिवाज बदलने में कामयाब रही तो प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप को भी इसका श्रेय मिलेगा। ऐसा हो पाया तो सुरेश कश्यप और जयराम ठाकुर मिलकर इतिहास रच देंगे।
गजब का तालमेल, पक्ष में गया या नहीं ?
डॉ राजीव बिंदल और सुरेश कश्यप दोनों का काम करने का तरीका अलग है। पर बिंदल ने अध्यक्ष रहते जो टीम नियुक्त की थी अमूमन उसी टीम के साथ कश्यप ने काम किया है। यानी अध्यक्ष तो बदला लेकिन भाजपा की टीम में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ। इसके अलावा आम तौर पर भाजपा में सरकार और संगठन दोनों अलग -अलग काम करते है, सामंजस्य होता है लेकिन दोनों स्वायत्त तरीके से काम करते है। पर सुरेश कश्यप के रहते सरकार और संगठन दोनों पर जयराम ठाकुर का ही पूर्ण प्रभाव दिखा। संगठन, सरकार की छाया बना दिखा। अब ये गजब का तालमेल भाजपा के पक्ष में गया या नहीं, ये नतीजे ही तय करेंगे।
भीतरघात और बगावत ने बढ़ाई टेंशन !
भीतरघात की आशंका से झूझ रही भाजपा की चिंता कुछ वायरल ऑडियो भी बढ़ा रहे है। बीत दिनों एक पूर्व मंत्री का बताया जा रहा वायरल ऑडियो ये दर्शाने के लिए काफी है कि किस कदर पार्टी में अनुशासनहीनता है। हालांकि इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं हुई है। इसके अलावा करीब एक तिहाई सीटों पर बागियों का होना भी ये बताता है कि पार्टी में किस हद तक अंसतोष की स्थिति है।