ईमानदारी की वो सुबह फिर कभी तो आएगी....
गांधीवादी गुलजारी लाल नंदा दो बार भारत के कार्यवाहक-अंतरिम प्रधानमंत्री रहे। एक बार विदेश मंत्री भी बने थे। आजादी की लड़ाई में गांधी के अनन्य समर्थकों में शुमार नंदा को अपना अंतिम जीवन किराये के मकान में गुजारना पड़ा। उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में 500 रुपये की पेंशन स्वीकृत हुई थी। उन्होंने इसे लेने से यह कह कर इनकार कर दिया था कि पेंशन के लिए उन्होंने लड़ाई नहीं लड़ी थी। बाद में मित्रों के समझाने पर कि किराये के मकान में रहते हैं तो किराया कहां से देंगे, उन्होंने पेंशन कबूल की थी।
कहते है किराया बाकी रहने के कारण एक बार तो मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल भी दिया था। बाद में इसकी खबर अखबारों में छपी तो सरकारी अमला पहुंचा और मकान मालिक को पता चला कि उसने कितनी बड़ी भूल कर दी है। आज तो ऐसे नेता की कल्पना भी नहीं की जा सकती जो पीएम और केंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद अपने लिए एक अदद घर नहीं बना सका और किराये के मकान में अपनी जिंदगी गुजार दी। दो बार भारत के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा सक्रिय राजनीति को अलविदा करने के बाद दिल्ली में किराए के मकान में रहते थे और उनके पास किराया भी नहीं होता था। जब वे किराया नहीं दे सके तो उनकी बेटी उन्हें अपने साथ अहमदाबाद ले गईं।
गुलजारीलाल नंदा मुंबई विधानसभा के दो बार सदस्य रहे थे। पहली बार वह 1937 से 1939 तक और दूसरी बार 1947 से 1950 तक विधायक चुने गये थे। उनके जिम्मे श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार था, तब मुंबई विधानसभा होती थी। 1947 में नंदा की देखरेख में ही इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई। मुंबई सरकार में गुलजारीलाल नंदा के काम से प्रभावित होकर उन्हें कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली बुला लिया। फिर नंदा वह 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में उनका काफी योगदान माना जाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री भी रहे।
गुलजारीलाल नंदा दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री भी रहे। पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन पर और दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के निधन पर उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री का दायित्व सौंपा गया था। उनका पहला कार्यकाल 27 मई 1964 से 9 जून, 1964 तक रहा। दूसरा कार्यकाल 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक रहा। गांधीवादी विचारधारा के नंदा पहले 5 आम चुनावों में लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
सिद्धांतवादी गुलजारीलाल नंदा अपनी ही पार्टी की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के देश में इमरजेंसी लगाने के फैसले से नाराज हो गए थे। तब वो रेलमंत्री थे। उन्होंने आपातकाल के बाद चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। इंदिरा गांधी, राजा कर्ण सिंह समेत कई हस्तियां मनाने आईं, लेकिन वे फैसले पर अटल रहे। इसके बाद कभी चुनाव नहीं लड़ा।
गुलजारीलाल नंदा ने कभी प्राइवेट काम में सरकारी गाड़ी प्रयोग नहीं की। वे कुरुक्षेत्र में नाभाहाउस के साधारण कमरों में ठहरते थे। परिवार गुजरात में ही था। सन् 1967 के बाद उनका अधिकांश समय कुरुक्षेत्र में गुजरा। वे गृहमंत्री थे तब एक बार दिल्ली निवास से उनकी बेटी डाॅ. पुष्पा यूनिवर्सिटी में फार्म भरने सरकारी गाड़ी में चली गईं। पता चलने पर नंदा खफा हुए। उन्होंने आठ मील गाड़ी आने-जाने का किराया बेटी की तरफ से खुद भरा। आज के दौर में तो ऐसी कल्पना करना भी बेहद मुश्किल है।