पांवटा साहिब : आसानी से नहीं मिलेगा सत्ता सुख
2008 में परिसीमन बदलने के बाद अस्तित्व में आए इस विधानसभा क्षेत्र में फिलवक्त भाजपा का कब्ज़ा है। बीते चुनाव में यहां से भाजपा सरकार में मंत्री सुखराम चौधरी ने कांग्रेस उम्मीदवार किरनेश जंग को करीब 12 हजार वोटों से हराया था। इससे पहले साल 2012 में किरनेश जंग बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े थे और उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवारों को पटकनी दी थी। दरअसल 2012 के चुनाव में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था व भाजपा प्रत्याशी सुखराम चौधरी को 790 मतों से हराया था। पर इस बार मंत्री सुखराम चौधरी के क्षेत्र पांवटा साहिब में भी भाजपा को आसानी से सत्ता सुख मिलता नहीं दिख रहा। भीतर खाते मंत्री की मुखालफत की झलकियां अभी से दिखने लगी है। पिछले वर्ष हुए निकाय चुनाव में भी भाजपा को मनमाफिक नतीजे नहीं मिले थे। उधर कांग्रेस संभवतः फिर करनेश जंग को मैदान में उतारे। हालांकि कई कांग्रेसी अब आप में गए है जिससे भाजपा जरूर उत्साहित होगी। आप में जाने वाले कांग्रेसियों में से एक युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मनीष ठाकुर भी शामिल है।
पच्छाद: कांग्रेस की अंतर्कलह से होगी आस
2019 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने एक युवा महिला नेता को टिकट के काबिल समझा और रीना कश्यप को पच्छाद उपचुनाव में जीत मिली। हालांकि भाजपा से बागी उम्मीदवार दयाल प्यारी भी मैदान में थी, पर यहां भी सुरेश कश्यप ने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपनी काबिलियत सिद्ध की। भाजपा ने दयाल प्यारी को टिकट नहीं दिया और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा व 11698 मत लेकर अपनी ताकत का अहसास भी करवाया। इसके बाद नाराज़ होकर भाजपा की निष्ठावान दयाल प्यारी कांग्रेस में चली गई। लगा जैसे दयाल प्यारी के कांग्रेस में शामिल होते ही सिरमौर के पच्छाद में पिछले तीन चुनाव हार चुकी कांग्रेस को संजीवनी मिल गई। लगने लगा की 2022 में कांग्रेस की उम्मीदवार दयाल प्यारी हो सकती है, मगर वर्तमान परिवेश में ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। दयाल प्यारी को कांग्रेस प्रदेश सचिव नियुक्त करने के बाद से ही गंगूराम मुसाफिर और उनके समर्थक खुल कर विरोध करने लगे थे। परन्तु अब एक बार फिर कमान गंगू राम मुसाफिर के हाथ में जाती हुई दिखाई दे रही है। तीन चुनाव हारने के बावजूद भी जिले में संगठनात्मक मामलों को देखने का निर्देश दिए गए है। सिरमौर की सियासत में एक बार फिर मुसाफिर का उदय होता दिखाई दे रहा है। जानकार मानते है की ये सब होली लॉज की कृपा के कारण संभव हुआ है। अगर ये कृपा बनी रही तो एक बार फिर गंगूराम को ही टिकट मिल सकता है। दरअसल पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में गंगूराम मुसाफिर कांग्रेस का एक अनुभवी चेहरा है। गंगूराम मुसाफिर ने 1982 से लेकर 2007 तक के विधानसभा चुनाव में लगातार सात बार जीत दर्ज की। 1982 में मुसाफिर ने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीता, लेकिन 1985 से वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। वह मंत्री के अलावा हिमाचल विधानसभा के स्पीकर भी रह चुके हैं। पर 2012 के विधानसभा चुनाव में मुसाफिर को भाजपा के सुरेश कश्यप से 2805 वोटों से हार मिली। 2017 में कांग्रेस ने फिर मुसाफिर को मैदान में उतारा लेकिन जनता ने उन्हें फिर नकार दिया। इसके बाद 2019 के उपचुनाव में भी कांग्रेस ने मुसाफिर पर भरोसा जताया लेकिन मुसाफिर जीतने में असफल रहे। अब मुसाफिर और दयाल प्यारी में से किसी एक को चुनना कांग्रेस के सामने असल समस्या है। उधर भाजपा में रीना कश्यप की राह भी आसान नहीं दिख रही। उपचुनाव में आश्वासन के बाद पीछे हटने वाले आशीष सिक्टा का दावा भी इस बार मजबूत है। जानकार मान रहे है कि भाजपा में भी टिकट के लिए जंग तय है।