पवार की Power : NCP में साइडलाइन हुए अजित पवार?
एनसीपी के 25 वीन स्थापना दिवस दिवस पर जो हुआ वो पार्टी के इतिहास में दर्ज हो गया । कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करने को शरद पवार माइक पकड़ते है और चंद मिनटों में महाराष्ट्र की राजनीति में उफान आ जाता है। दरअसल शरद पवार पार्टी के दो कार्यकारी अध्यक्षों की घोषणा की गई - बेटी सुप्रिया सुले और छगन भुजबल। कोई जिम्मा देना तो दूर पुरे भाषण में एनसीपी के नंबर दो माने जाने वाले भतीजे अजित पवार का जिक्र तक नहीं करते। ये है शरद पवार और उनकी राजनीति का तरीका।
पवार ने एक तीर से दो निशाने लगाने का काम किया है। शरद पवार ने अजित पवार को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि एनसीपी में अब उनकी कोई ख़ास जगह नहीं बची है। दूसरा बेटी सुप्रिया सुले एनसीपी चीफ की अगली उत्तराधिकारी होगी, ये भी लगभग तय हो गया है। फिलहाल, अजित पवार के पास महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी है।
एनसीपी में दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की खबर के बाद अजित पवार और उनके समर्थकों का क्या रुख रहता है, ये देखना दिलचस्प होगा। अजित अब एनसीपी में हाशिये पर है और आगे उनके पास अलग राह पकड़ना ही एक मात्र विकल्प दिख रहा है। अजित पवार खुद को कभी शरद पवार के उत्तराधिकारी के तौर पर देखते थे। हालांकि, पिछले कुछ समय से दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं होने की खबरें आ रही थीं।
बता दें कि अजित ने 2019 में भाजपा के साथ हाथ मिलाया था और देवेंद्र फडणवीस के साथ सुबह-सुबह शपथ ग्रहण समारोह में उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। पर चाचा शरद पवार के सियासी तिलिस्म के आगे अजित के अरमान दो दिन में ढह गए थे। अजित को वापस लौटकर चाचा की शरण में आना पड़ा था और इसके बाद एनसीपी -कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन की सरकार बनी।
शरद पवार के मन में कुछ चल रहा है इसके संकेत पिछले महीने ही मिल गए थे जब उन्होंने पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ दिया था। तब उनके अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद जो भूचाल आया था, वह उनके इस्तीफा वापस लेने के बाद ही थमा था। ये एक तरह से सन्देश था कि शरद पवार ही एनसीपी है। माहिर मानते है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि पार्टी में उनकी कुव्वत और पकड़ को लेकर किसी कोई शक ओ शुबा न रहे।
दिलचस्प बात ये भी है कि शरद पवार के इस्तीफे के बाद अजित पवार ही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने शरद पवार के इस्तीफे का समर्थन किया था और पार्टी के अन्य नेताओं को इसका सम्मान करने को कहा था। पर अजित के अरमान पुरे नहीं हुए और शरद पवार ने इस्तीफा वापस ले लिया। इसके बाद अजित पवार के भाजपा में शामिल होने की अटकलें लग रही थीं, हालांकि, अजित ने इन अटकलों को सिरे से खारिज करते रहे है। बहरहाल पिछले डेढ़ महीने में जिस तरह से एनसीपी में सब घटा है उससे ये तय है कि शरद पवार को सियासत का चाणक्य क्यों कहा जाता है।