सनद रहे, 1998 में तीसरी पार्टी थी किंग मेकर
' हिमाचल में तीसरे मोर्चे या पार्टी का कभी कोई अस्तित्व नहीं रहा'..जब से आम आदमी पार्टी मैदान में उतरी है, भाजपा -कांग्रेस के कई नेता एक सुर में ये ही सियासी राग अलाप रहे है। पर ये सत्य नहीं है। 1998 के चुनाव में तीसरी पार्टी ही किंगमेकर थी। तब हिमाचल विकास कांग्रेस की वजह से भाजपा सरकार बनी और कांग्रेस ने पांच साल सत्ता विरह भोगा। 1998 के बाद अब पहली बार हिमाचल प्रदेश में कोई तीसरी पार्टी दमखम से मैदान में उतरती दिख रही है। आम आदमी पार्टी का दावा है कि सरकार उनकी बनेगी, सियासत में ऐसे दावे सभी करते है सो आप भी कर रही है। ये अलग बात है कि आप के पास फिलवक्त वो जमीनी संगठन नहीं दिख रहा जो उसे कांग्रेस -भाजपा के मुकाबले में लाकर खड़ा कर दें। पर असल सवाल ये है कि 'किंग' न सही क्या आम आदमी पार्टी 'किंग मेकर' बन सकती है। क्या जो 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस ने किया था वैसा आप कर पायेगी। इसका जवाब तो आने वाला समय ही देगा लेकिन ये तय है कि आप को हल्के में लेना कांग्रेस -भाजपा दोनों को भारी जरूर पड़ सकता है।
ऐसे किंग मेकर बने थे पंडित सुखराम :
1993 में प्रचंड बहुमत के साथ कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में लौटी और वीरभद्र सिंह ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सरकार का कामकाज ठीक ठाक था और प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार के खिलाफ कोई एंटी इंकम्बेंसी नहीं थी, अपितु कुछ हद तक प्रो इंकम्बैंसी जरूर दिख रही थी। पर कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं था। दरअसल पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह की महत्वकांक्षाएं पहले से ही टकराती आ रही थी। 1982 में जब ठाकुर राम लाल को बदलने का वक्त आया था तो पार्टी में वीरभद्र सिंह को पंडित सुखराम पर तवज्जो दी गई थी। फिर 1990 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में पार्टी हारी तो पंडित सुखराम को आस थी कि अगली मर्तबा मुख्यमंत्री का ताज उनके सिर सजेगा। पर ऐसा हुआ नहीं और 1993 में भी वीरभद्र सिंह ही मुख्यमंत्री बने। हालांकि तब सांसद रहे पंडित सुखराम को केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार में टेलीकॉम मंत्री का पद दिया गया था। मंत्री रहते पंडित जी ने मंडी का खूब विकास किया लेकिन 1996 में उन पर टेलीकॉम घोटले का आरोप लगा और उसके बाद कांग्रेस से उनकी राह जुड़ा हो गई। 1998 आते - आते पंडित सुखराम ने हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया और उनकी पार्टी में कई कांग्रेसी विधायक और नेता भी जुड़े गए जिनमें महेंद्र सिंह और रामलाल मारकंडा सहित कई बड़े नाम थे। पार्टी पुरे दमखम से लड़ी और माहौल कुछ ऐसा बना कि विधासभा कि लड़ाई त्रिकोणीय हो गई। जब नतीजे आएं तो पंडित जी की पार्टी सत्ता में तो नहीं आई पर किंगमेकर की भूमिका में जरूर आ गई। त्रिशंकु विधानसभा में पांच सीटें हिमाचल विकास कांग्रेस ने जीती और उनके बगैर सरकार का गठन मुमकिन नहीं था। पंडित जी ने वीरभद्र सिंह के साथ न जाकर प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा गठबंधन सरकार को समर्थन दिया। गठबंधन की ये सरकार बनी भी और पहली बार हिमाचल में पांच साल गठबंधन की सरकार चली भी।
23 सीटों पर तह कांटे का मुकाबला :
1998 के विधानसभा चुनाव में काँटे के मुकाबले में 23 सीटें ऐसी थी जहाँ जीत - हार का अंतर दो हज़ार वोट से कम था। इनमें से 14 सीटें कांग्रेस हारी थी जिसमें तीन सीटों पर तो उसे हिमाचल विकास कांग्रेस ने सीधे मात दी थी। इसके अलावा कई सीटें ऐसी थी जहाँ कांग्रेस की हार का अंतर बेशक दो हज़ार वोट से अधिक था लेकिन पार्टी का खेल हिमाचल विकास कांग्रेस ने ही बिगाड़ा था। तब यदि हिमाचल विकास कांग्रेस न होती तो 1998 में वीरभद्र दूसरी बार रिपीट कर जाते। इससे पहले 1985 में उन्हीं के नेतृत्व में आखिरी बार हिमाचल में कोई सरकार रिपीट हुई थी।
बगैर चेहरे के नहीं बनेगी 'आप' की बात !
पंडित सुखराम हिमाचल की सियासत का वो नाम है जो किसी परिचय का मोहताज नहीं। हिमाचल विकास कांग्रेस का चेहरा खुद पंडित सुखराम थे। जबकि आम आदमी पार्टी अब तक अरविन्द केजरीवाल के चेहरे पर आगे बढ़ रही है। प्रदेश का कोई ऐसा चेहरा पार्टी के साथ नहीं है जो पंडित सुखराम जैसा सियासी वजन रखताहो। मज़बूत हिमाचली चेहरे का न होना आप की सबसे बड़ी कमजोरी है और जानकार मानते ही कि यदि चेहरा न मिला तो इस बार के चुनाव में आप की भूमिका "वोट कटवा" से ज्यादा शायद न रहे। पंजाब में पार्टी दस साल की मेहनत के बाद सत्ता में लौटी है, पर हिमाचल में ढंग से काम करते अभी जुमा - जुमा चार दिन हुए है।