रेणुकाजी /शिलाई : खेल न बिगाड़ दे हाटी समुदाय
रेणुकाजी और शिलाई में फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है और 2022 के लिए अभी से भाजपा को यहां कड़ी तैयारी करनी होगी। दोनों ही क्षेत्रों में भाजपा के लिए हाटी समुदाय को विशेष दर्जे का मुद्दा भी सरदर्द बनता दिख रहा है। पार्टी में टिकट दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त भी परेशानी बढ़ा सकती है। उधर कांग्रेस में सम्भवतः दोनों ही वर्तमान विधायकों को फिर मौका मिले। इन दोनों ही विधायकों को कांग्रेस न बड़ी ज़िम्मेदारियां सौंपी है। शिलाई से विधायक हर्षवर्धन चौहान को उपनेता प्रतिपक्ष तो रेणुका विधायक को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है।
वहीं भाजपा में शिलाई में बलदेव तोमर का टिकट तय माना जा रहा है लेकिन रेणुका जी में पार्टी के लिए उम्मीदवार का चयन सिरदर्द होगा। पिछले चुनाव में पार्टी ने हृदयराम पर बलबीर सिंह को वरीयता दी थी लकिन हृदयराम ने निर्दलीय ताल ठोक पार्टी की हार का बंदोबस्त कर दिया। ऐसे में इस बार भाजपा को फूंक -फूंक कर कदम रखना होगा।
बिंदल साइडलाइन, बाकी में वो बात नहीं !
सिरमौर में भाजपा के वर्तमान सियासी आउटलुक की बात करें तो तेजतर्रार नेता और नाहन विधायक डॉ राजीव बिंदल एक किस्म से साइडलाइन है। न सरकार में उन्हें अहमियत दी गई है और न ही संगठन में कोई अहम ज़िम्मेदारी। नगर निगम सोलन और अर्की उपचुनाव का प्रभारी जरूर उन्हें बनाया गया, किन्तु दोनों जगह पार्टी परास्त हुई। उन्हें साइडलाइन रख कई नेताओं की ताकत बढ़ाई गई जिससे समीकरण संतुलित रह सके। पर इसमें कोई संशय नहीं कि बिंदल जैसा जादू अन्य नेता नहीं दिखा पा रहे।
तो भाजपा को भुगतना होगा खामियाजा...
पिछले दिनों हुई हाटी समुदाय की महाखुमली में जुटे लोगों ने स्पष्ट कहा कि 2014 में तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नाहन के चौगान मैदान में गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का वादा किया था। तदोपरांत 2019 में तत्कालीन केंद्रीय जनजातीय मंत्री ने हरिपुरधार में इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की बात कही थी। वर्तमान में शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद सुरेश कश्यप भाजपाई है और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी है। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में यदि प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र का दर्ज नहीं मिलता है, तो उसका खामियाजा विधानसभा चुनाव में भाजपा को भुगतना होगा।
दरअसल गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का मसला 144 पंचायतों से सीधे जुड़ा है और इसके दायरे में चार विधानसभा क्षेत्र आते है। शिलाई के अतिरिक्त, श्रीरेणुकाजी, पच्छाद व पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्रों में भी ये मुद्दा निर्णायक भूमिका निभा सकता है। जाहिर है फिलवक्त भाजपा सत्ता में है तो नाराजगी का कोप भी भाजपा को भुगतना पड़ा सकता है। ऐसे में निसंदेह सत्तारूढ़ भाजपा अब इस मुद्दे पर कोई सार्थक पहल कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो पार्टी को इसका लाभ भी मिलना तय है।
नाहन : फिर लगने लगा धरतीपुत्र का नारा
2012 में परिसीमन बदल गए और सोलन निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित हो गया। फिर डॉ राजीव बिंदल ने नाहन को कर्मभूमि बना लिया। नाहन को अपना गढ़ बनाना बिंदल के लिए आसान नहीं था, मगर धीरे =धीरे बिंदल नाहन में अपने पैर जमाने में कामयाब हुए। 2017 में बिंदल ने फिर नाहन से चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की। नाहन में जरूर डॉ राजीव बिंदल खुद को साबित करते आ रहे है लेकिन मौजूदा स्थिति में वे भी सहज नहीं दिख रहे है। यहाँ अभी से धरतीपुत्र का नारा बुलंद होता दिख रहा है। साल 2017 में भी डॉ. राजीव बिंदल की घेराबंदी के लिए कांग्रेस ने धरती पुत्र का नारा बुलंद किया था। कांग्रेस लगातार बिंदल को बाहरी बताती रही है। बाहरी फैक्टर चला और कांग्रेस संगठित होकर चुनाव लड़ी, तो बिंदल को भी मुश्किल होती दिख रही है। इसके अलावा सवर्ण आंदोलन फैक्टर भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है।
उधर कांग्रेस में अजय सोलंकी टिकट के मुख्य दावेदार जरूर है लेकिन अन्य प्रत्याशी भी उनसे पीछे नहीं दिखते। गुटों में बंटी दिख रही कांग्रेस के लिए यहाँ राह आसान नहीं होगी। पार्टी बंटी रही तो एक बार शिकस्त तय है।