सियासत-ए-पंजाब : लचर नेतृत्व और लाचार कांग्रेस
सिर मुंडवाया और ओले पड़ गए, पंजाब में कांग्रेस के साथ ऐसा ही हुआ है। कॉमेडी का सरदार जब असरदार दिखने लगा तो पार्टी ने सियासत के पुराने सरदार को साइडलाइन कर दिया। पर असल कॉमेडी कांग्रेस के साथ हो गई। कैप्टेन को सीएम पद से हटाने के बाद भी सिद्धू खुश नहीं हुए और प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। साथ में समर्थकों के इस्तीफे भी आ गए। यानी नए नवेले सीएम चरणजीत सिंह चन्नी भी सिद्धू को नहीं भाये। चन्नी को सीएम बने जुम्मा -जुम्मा चार दिन भी नहीं बीते और सिद्धू की प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू हो गई। अब माहौल कुछ ऐसा है कि जो कांग्रेस आसानी से मिशन रिपीट का ख्वाब संजोय बैठी थी फिलहाल अपनों के मक्कड़ जाल में ही उलझ कर रह गई है। अस्थिर पंजाब कांग्रेस में कब क्या होगा, कौन आएगा-कौन जायेगा, फिलवक्त कोई नहीं जानता। वहीँ इस स्थिति में आम आदमी पार्टी को जरूर सत्ता नजदीक दिख रही होगी।
पंजाब की सियासत में इस वक्त सबकी नज़रें कैप्टेन अमरिंदर सिंह पर टिकी है। कैप्टेन ने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया है, दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चुके है, पर भाजपा में जाने से भी इंकार कर रहे है। ऐसी स्थिति में क्या कैप्टेन अपनी अलग पार्टी बनाएंगे या कोई नया ट्विस्ट अभी बाकी है, ये बड़ा सवाल है। दरअसल भाजपा और कैप्टेन के बीच किसान आंदोलन की खाई है, ऐसे में नई पार्टी बनाने की अटकलें तेज है। वहीँ कैप्टेन के समर्थन में जी 23 सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता उतरे है, जिसके बाद ये भी कयास है कि क्या कांग्रेस में कुछ बड़ा बदलाव मुमकिन है।
बहरहाल पंजाब के मुख्यमंत्री बने चन्नी लगातार हर वर्ग को साधने के लिहाज से लुभावने वादे कर रहे है। सरकारी खजाना खाली सही लेकिन चन्नी दिल बड़ा रखे हुए है। कहते है न जब उधार का ही खाना है तो देसी घी क्यों न खाया जाए। सत्ता रही तो वित्तीय घाटा भी देखा जायेगा। पंजाब के पहले दलित सीएम चन्नी को करीब 32 प्रतिशत दलित वोट से बड़ी आस होगी। पर चुनाव सरकार और संगठन मिलकर लड़ते है, ऐसे में चन्नी के सामने अस्थिर संगठन भी एक चुनौती है। क्या सुलह की बिसात तैयार कर सिद्धू पर पार्टी पहले सा भरोसा जता पायेगी या संगठन में व्यापक बदलाव होगा, ये देखना दिलचस्प होने वाला है।
पार्टी में उठी आवाज, जल्द हो सीडब्ल्यूसी की बैठक
कांग्रेस की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई सीडब्ल्यूसी की बैठक जल्द बुलाने की मांग जोर पकड़ रही है। गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा सहित कई वरिष्ठ नेता बैठक की मांग कर रहे है। ये लोग चाहते है कि पार्टी से कई नेताओं के अलग होने के मद्देनजर आंतरिक रूप से चर्चा की जाए। साथ ही संगठन के चुनाव के रास्ते पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग भी पार्टी के भीतर उठ रही है। पंजाब इकाई में मचे घमासान को लेकर भी कई नेता मुखर होते दिख रहे है। जाहिर है ऐसे में गांधी परिवार पर जल्द सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलाने का दबाव बढ़ा है। कोरोना के बहाने मई माह में ये बैठक टाल दी गई थी।
