सब पर भारी स्वच्छ छवि की ढाल, नाम है जयराम
'अब बदला, तब बदला, कब बदला, समझो बदल ही गया ' जयराम विरोधी हिमाचल में ये ही गाना गा रहे है और मुख्यमंत्री हर बार दमखम के साथ पलटवार करते आ रहे है। अटकलों पर विराम भी लगा रहे है और कयासों को खारिज भी कर रह है। 'मैं था, मैं हूँ और मैं ही रहूँगा' ये कहते हुए मुख्यमंत्री विपक्ष को नसीहत भी दे रहे है और विरोधियों को सन्देश भी। पर सवाल ये है कि आखिर हंगामा बरपा क्यों है ? ऐसा क्या हो गया कि अचानक हिमाचल की राजनीति में ये नया शगूफा छिड़ गया। दरअसल, मिशन रिपीट के लिए सियासत की गुजरात प्रयोगशाला में भाजपा ने बड़ा प्रयोग किया है। सीएम तो बदला ही, विधानसभा स्पीकर सहित पूरी कैबिनेट बदल दी गई। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने इसी वर्ष हुए निकाय चुनाव का ये ट्राइड एंड टेस्टेड फार्मूला अपनाया है, ताकि संभावित सत्ता विरोधी लहर को साधा जा सके। इससे पहले कर्नाटक में मुख्यमंत्री को बदल दिया गया था और उत्तराखंड तो इसी वर्ष में तीन मुख्यमंत्री देख चूका है। असम में भी भाजपा बिना सीएम फेस के विधानसभा चुनाव में उतरी, पर प्रचार के दौरान ही हेमंत बिस्वा सरमा को मिल रही तवज्जो ने संकेत दे दिए थे कि परिणाम के बाद बदलाव मुमकिन है, और हुआ भी ऐसा ही। भाजपा आलाकमान का सन्देश स्पष्ट है, मिशन रिपीट के लिए कुछ भी किया जायेगा। जो सत्ता वापसी की गारंटी नहीं दे सकता वो चेहरा बदल दिया जायेगा। भाजपा के इस ट्रेंड ने ही हिमाचल के सियासी गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। सरकार विद्रोही हो या समर्थक सभी की धुकधुकी बढ़ गई है।
कुछ चुप बैठे तमाशे का इंतज़ार कर रहे है तो कुछ ने नसीहतें बांटना शुरू कर दिया है। इसपर प्रदेश में प्रो. प्रेम कुमार धूमल की बढ़ती सक्रियता और केंद्र की सियासत में अनुराग के बढ़ते कद ने भी हिमाचल की सियासत में नए समीकरण पैदा कर दिए है। बहरहाल, राग कोई भी गाया जाए पर एक बात तय है, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की स्वच्छ छवि और सरल स्वभाव ने हमेशा ही सरकार की खामियों को छुपाने के लिए ढाल का काम किया है। इसे जयराम ठाकुर का तिलिस्म ही कहेंगे कि जब कोरोना काल में स्वास्थ्य घोटाला हुआ तब भी सीएम की स्वच्छ और ईमानदार छवि पर कोई दाग नहीं लगा, जबकि तब स्वास्थ्य महकमा खुद सीएम जयराम ठाकुर देख रहे थे। इसी तरह बेशक भाजपा में हावी होती गुटबाज़ी ने हमेशा उन्हें कुछ असहज रखा हो लेकिन हर मौके पर जयराम चौका मारते रहे, संगठन में भी उनकी दखल और पकड़ इसे साबित करते है। आज सरकार और संगठन को एक भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। किन्तु मंत्रियों द्वारा दिए गए ऊल जलूल ब्यान और सरकार के निर्णय बदलने की छवि जरूर जयराम ठाकुर के सामने बड़ी चुनौती है। इसमें कोई संशय नहीं है कि कई बयानवीरों ने आम जनता के बीच सरकार की छवि खराब की है, वहीँ बैठे बिठाए विपक्ष को भी हल्ला बोलने के मौके दिए है। विशेषकर पिछले कुछ समय में निरंतर इस तरह के घटनाक्रम ने उपचुनाव से पहले सरकार की मुश्किलें बढ़ाई है। अगर वक्त रहते डैमेज कंट्रोल नहीं हुआ तो जाहिर है नतीजे प्रतिकूल हो सकते है।
उपचुनाव हुए नहीं, शोर अभी से मचा है
2022 विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में उपचुनाव होने है, जिन्हें सत्ता के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है। उपचुनाव में अच्छा परफॉर्म करने का प्रेशर भी जयराम सरकार पर है। उपचुनाव में यदि पार्टी अच्छा परफॉर्म करती है तो स्थिति 'सब चंगा', पर यदि भाजपा ने उपचुनाव में अच्छा नहीं किया तो आगे क्या होगा, इसे लेकर अभी से शोर मचा है। सियासी माहिर मानते है कि पार्टी तैयारियों को लेकर कितने ही दावे कर ले उपचुनाव भाजपा का कड़ा इम्तिहान लेंगे। कहीं मज़बूत प्रतिद्वंदी तो कहीं अपने ही पार्टी को डूबा सकते है। मंडी लोकसभा हो या जुब्बल कोटखाई, अर्की, और फतेहपुर विधानसभा हर निर्वाचन क्षेत्र भाजपा के टिकट को लेकर होड़ मची हुई है। हर जगह पार्टी गुटों में विभाजित नज़र आ रही है जो पार्टी को भारी पड़ सकता है। इस अंतर्कलह को साधने की कवायद बोर्ड और निगम में अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के प्रस्ताव से की जा रही है, पर कुछ ठीक होता नज़र नहीं आ रहा। अंतर्कलह से इतर मंडी लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की तरफ से यदि प्रतिभा सिंह मैदान में उतरती है तो भाजपा की कठिनाइयां बढ़ने के आसार है। जाहिर है पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद सहानुभूति लहर कांग्रेस को फायदा दे सकती है। ऐसे में भाजपा को मजबूत प्रत्याशी देना होगा और कोई कैबिनेट मंत्री भी चेहरा हो सकता है। वहीं जुब्बल कोटखाई में सेब के गिरते दाम से माहौल कुछ खराब है। इस पर पार्टी के भीतर से परिवारवाद के खिलाफ आवाज भी उठ रही है। बात फतेहपुर की करें तो यहां भाजपा के सामने दोहरी चुनौती होगी, एक तरफ कांग्रेस प्रत्याशी तो दूसरी तरफ हमारी पार्टी हिमाचल पार्टी के संस्थापक और 5 बार के विधायक राजन सुशांत भी मैदान में हो सकते है। इस पर अबकी बार चक्की पार का नारा भी भाजपा की बेचैनी बढ़ा रहा होगा। अर्की में भी फिलवक्त भाजपा के लिए अंतर्कलह सबसे बड़ी चुनौती होगी।