यूँ ही 6 बार सीएम नहीं बने थे वीरभद्र सिंह
अप्रैल 1983 में कांग्रेस आलाकमान ने तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल को हटाकर वीरभद्र सिंह को हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। इसके बाद वीरभद्र सिंह के जीवित रहते जब भी कांग्रेस की सरकार बनी, सीएम वे ही बने। कुल 6 बार सीएम रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हुए है और यदि कांग्रेस सरकार बनाती है तो सीएम कौन होगा, ये देखना रोचक होने वाला है। ऐसा नहीं है कि 6 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना वीरभद्र सिंह के लिए आसान रहा हो। अपने सियासी तिलिस्म के बूते कई बार वीरभद्र सिंह ने हारी हुई बाजी पलट दी और साबित किया क्यों उनका कोई सानी नहीं रहा। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव 1987 में होने थे लेकिन वीरभद्र सिंह ने समय से पहले वर्ष 1985 में ही चुनाव करवा दिए। 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद पुरे देश में कांग्रेस के पक्ष में लहर थी जिसे वीरभद्र भाप गए थे और उनका ये निर्णय ठीक साबित हुआ। 1985 में वीरभद्र सिंह दूसरी बार सीएम बने। 1990 आते -आते प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर हावी थी और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। इसके बाद बाबरी मस्जिद प्रकरण के बाद केंद्र सरकार ने हिमाचल सरकार को भी बर्खास्त कर दिया और 1993 में फिर चुनाव हुए। शांता सरकार से कर्मचारियों की नाराजगी के चलते कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटी। इसके बाद सबसे बड़ा सवाल ये था की मुख्यमंत्री कौन होगा। दरअसल पंडित सुखराम भी सीएम पद के प्रबल दावेदार थे लेकिन वीरभद्र सिंह की सियासी गणित पंडितजी पर भारी पड़ी और वीरभद्र तीसरी बार सीएम बने। तब कौल सिंह ठाकुर ने वीरभद्र सिंह का साथ दिया था और ये टीस आज भी पंडितजी के परिवार की जुबां से छलक ही जाती है। 1993 में पंडित सुखराम सीएम बनते -बनते रह गए थे और ताउम्र सीएम नहीं बन पाएं।
इसके बाद 1998 का चुनाव आया। तब वीरभद्र सिंह रिपीट को लेकर आश्वस्त थे। तब तक पंडित सुखराम और कांग्रेस की राह अलग हो चुकी थी और पंडित जी हिमाचल विकास कांग्रेस बना चुके थे। उस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा में कांटे का मुकाबला हुआ लेकिन निर्दलीय जीते रमेश धवाला और पंडित सुखराम आखिरकार भाजपा के साथ गए और पांच साल भाजपा और हिमाचल विकास कांग्रेस की सरकार चली। दिलचस्प बात ये है कि वीरभद्र सिंह 1998 में सीएम पद की शपथ भी ले चुके थे लेकिन उन्हें सुखराम का साथ नहीं मिला और बहुमत न होने के चलते उन्हें कुछ ही दिनों में इस्तीफा देना पड़ा। 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता वापसी हुई लेकिन सीएम वीरभद्र सिंह ही होंगे ये तय नहीं था। नतीजे आने के बाद विद्या स्टोक्स भी दावेदारी की तैयारी में थी। कहते है मैडम स्टोक्स अपना दावा ठोकने दिल्ली चली गई थी। पर पीछे से शिमला में वीरभद्र ने बाजी पलट दी और मीडिया के सामने विधायकों की परेड कराकर उनके दावे पर पूर्ण विराम लगा दिया। इस तरह मैडम स्टोक्स को मात देकर वीरभद्र सिंह पांचवी बार सीएम बने। 2007 में कांग्रेस फिर सत्ता से बाहर हुई और 2012 में पार्टी ने फिर वीरभद्र सिंह के चेहरे पर चुनाव लड़ा और वीरभद्र सिंह छठी बार सीएम बने।
2012 में अपने ही अंदाज में चेताया था आलकमान को
2007 में सत्ता से बाहर होने के बाद वीरभद्र सिंह ने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा और केंद्रीय मंत्री बन गए। पर 2011 में वे केंद्र से फिर प्रदेश की सियासत में लौट आएं। तब कांग्रेस कौल सिंह ठाकुर के नेतृत्व में आगे बढ़ती दिख रही थी और वीरभद्र सिंह को फेस घोषित करने से पार्टी बच रही थी। इसी दौरान चुनाव से चंद दिन पहले वीरभद्र सिंह ने शिमला में पत्रकार वार्ता कर कहा कि अगर सोनिया गाँधी चाहे तो वे फिर कांग्रेस को सत्ता में ला सकते है। तब वीरभद्र सिंह ने आलकमान को चेताते हुए कहा था 'मैं ढोलक बजाऊंगा और मेरी सेना नृत्य करेगी।' दबाव रंग लाया और आलाकमान ने वीरभद्र सिंह को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद वे ही सीएम बने।