अब भाजपा में राग- ए-अनुराग
जो अपेक्षित था, वो ही हुआ। कैबिनेट में प्रमोशन के बाद पहली बार हिमाचल पहुंचे अनुराग ठाकुर की जन आशीर्वाद यात्रा में शक्ति और भक्ति दोनों दिखे। धूमल पुत्र के स्वागत सत्कार में उमड़ी भीड़ से फिर साबित हो गया की हिमाचल भाजपा के सबसे बड़े धड़े की आस्था अब भी समीरपुर दरबार में ही है। इसे सियासी मजबूरी समझे या कुछ और, मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक हर कोई अनुराग के स्वागत के लिए तत्पर रहा। इस यात्रा में कई रोचक झलकियां दिखी। कहीं पुराने विरोधियों ने अनुराग के समर्थन में नारे लगाए तो कहीं अपनों के चेहरों पर भी नूर कुछ कम सा दिखा।
2017 में प्रो. प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद से जो निष्ठावान कोप भवन में दिख रहे थे, वे अब नई ऊर्जा के साथ मैदान में है। जो सियासी परिस्तिथि देख पाला बदल गए थे उन्हें भी अब दोबारा सोचना पड़ रहा है। तो कुछ ऐसे भी है जो कहीं के नहीं रहे थे, अब फिर से धूमल परिवार की छत्रछाया में पहुँचते दिख रहे है। ये ही राजनीति है, हर पल बदलती सियासी ग्रह दशा कब क्या करवा दे, कोई नहीं जानता। बहरहाल, सियासी क्षितिज में अनुराग का सितारा खूब चमक रहा है। केंद्र में अनुराग के बढ़े कद और हिमाचल में धूमल की बढ़ती सक्रियता ने हिमाचल भाजपा की सियासी गणित पूरी तरह बदल दी है। इसका असर कई कुंडलियों पर पड़ना तय है। उधर, प्रो धूमल के निष्ठावान अब अनुराग ठाकुर में भविष्य देख रहे है। फिलवक्त इन निष्ठावानों की तमन्ना ये ही है कि 2017 में जो नहीं हुआ वो 2022 में हो जाए।
जो कहीं के नहीं रहे वो भी अब यहां के होंगे
2017 के विधानसभा चुनाव में प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हारने के बाद धूमल के कई समर्थकों को जयराम मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। पर दिलचस्प बात ये है कि धूमल की कोप दृष्टि से चलते भी कई नाम मंत्रिमंडल से कट गए थे। माना जाता है इनमें एक ऐसे नेता भी थे जो जयराम और शांता कुमार की गुड बुक्स में तो कभी थे ही नहीं, पर विधानसभा चुनाव से पहले धूमल के प्रति भी निष्ठावान नहीं थे। सो धूमल के असर ने इन्हें पूरी तरह बेअसर कर दिया। प्रो धूमल के लिए नारे लगाने वाले ये नेता अब अनुराग का राग अलापने लगे है। बदली स्थिति - परिस्थिति में जानकार मानते है कि जो कहीं का भी नहीं था, वो भी अब यहीं का होना चाहता है, यानी समीरपुर दरबार में शरण चाहता है। पर अब सिर्फ इनके चाहने से क्या होगा
कौन इधर, कौन उधर, कौन किधर...सब कंफ्यूज
कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर, क्या हक़ीक़त है और सियासत क्या...कौन इधर है, कौन उधर है, कौन किधर है, हिमाचल भाजपा में सब कंफ्यूजन है। दरअसल, जयराम राज में धूमल कैंप के कई नेता हालात से समझौता कर पाला बदल गए और जिन्होंने नहीं बदला वो हाशिये पर ही रहे। हालांकि चंद ऐसे भी है जिन्हें संतुलन साधने के लिए सरकार में एडजस्ट किया गया। माहिर मानते है कि अब भाजपा के भीतर फिर से हावी होती दिख रही धूमल-अनुराग लहर में निष्ठा बदल चुके नेताओं को सोचना पड़ सकता है। वहीँ सरकार में बैठे कुछ नेता भी तेवर के जेवर पहन सकते है। इन सबके बीच आम कार्यकर्त्ता कंफ्यूज है। धूमल कैंप की शक्ति का सूचकांक बढ़ता जायेगा या सीएम गुट का मास्टर स्ट्रोक अभी बाकी है, ये फिलवक्त सबसे बड़ा सवाल है।
धूमल विरोधियों को सत्य तो स्वीकारना होगा
सियासी चश्मे से देखे तो अनुराग ठाकुर की जन आशीर्वाद यात्रा धूमल गुट का शक्ति प्रदर्शन भी था। विरोधियों को ये सत्य स्वीकारना होगा कि धूमल गुट का जो जलवा इस जन आशीर्वाद यात्रा में दिखा वैसा क्रेज 2017 के बाद कभी नहीं दिखा। अब कारण चाहे बेहतर इवेंट मैनेजमेंट हो या जन समर्थन, ये विश्लेषण का विषय है। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, अप्रैल में हुए नगर निगम चुनाव में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने वार्ड -वार्ड घूमकर प्रचार किया था और कई स्थानों पर मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों का हाल किसी से छिपा नहीं है। जानकार मानते है कि उस चुनाव में सीएम को सीधे तौर पर वार्डों की गलियों में घुमाकर रणनीतिकारों ने बना बनाया भ्रम ध्वस्त कर दिया। और तभी से आम कार्यकर्ता के मन में भी संशय उत्पन्न हुआ।
जयराम अब तक हिट, अब होगा असल इम्तिहान
2017 में जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री जरूर बने लेकिन अब तक का उनका कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहा है। कभी भाजपा में हावी गुटबाजी, तो कभी कोरोना काल ने उनका जमकर इम्तिहान लिया। इस पर खुद को सर्वमान्य नेता साबित करने की उनकी जद्दोजहद अब भी जारी है। पर तमाम चुनौतियों के बावजूद अब तक मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अधिकांश मोर्चों पर हिट साबित हुए है। पहले 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया। तदोपरांत पच्छाद और धर्मशाला में हुए उपचुनाव में जबरदस्त जीत दर्ज की। फिर इसी साल जनवरी में हुए पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में भी भाजपा इक्कीस रही। हालांकि इसके बाद हुए चार नगर निगम चुनाव में उन्हें पहला झटका लगा, जहाँ कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया। पर असल परीक्षा तो अभी शेष है। चार अनचाहे उपचुनाव भाजपा के साथ -साथ खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का भी इम्तिहान लेंगे। जानकार मानते है कि यहाँ परिणाम प्रतिकूल रहा तो पार्टी के भीतर भी खुलकर विरोध की स्थिति आ सकती है।
सत्ता-संगठन में जयराम की जय
बीते साढ़े तीन साल में तीन नेता भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाल चुके हैं। पहले थे सतपाल सिंह सत्ती जिनका कार्यकाल 2019 में पूरा हुआ। इसके बाद माननीय विधानसभा अध्यक्ष बना दिए गए डॉ राजीव बिंदल किसी तरह 2019 के अंत में प्रदेश अध्यक्ष बनने में कामयाब हुए। पर कोरोना काल में स्वास्थ्य घोटाले के बाद नैतिकता के आधार पर बिंदल को पड़ छोड़ना पड़ा। फिर कमान मिली शिमला सांसद सुरेश कश्यप को। माहिर मानते है की बतौर प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप की तैनाती सीएम जयराम ठाकुर का मास्टर स्ट्रोक रहा है। अब सत्ता के साथ -साथ संगठन की डोर भी अप्रत्यक्ष तौर पर जयराम ठाकुर के हाथ में ही है। कोई इसे बेहतर तालमेल के तौर पर देखता है, तो कोई सत्ता द्वारा संगठन के हाईजैक के तौर पर। पर जो भी हो संगठन में सीएम जयराम ठाकुर का भरपूर असर दिखता है।
शांता गुट अब एक किस्म से जयराम गुट
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के निर्णय लेनी की क्षमता को लेकर भी सवाल उठते रहे है और उनके कैबिनेट में तथाकथित सुपर सीएम होने पर भी विरोधी चुटकी लेते रहे है। पर उनका अब तक का कार्यकाल बेदाग़ रहा है। एकाध मामलों को छोड़ दे तो सरकार भी बेदाग़ है, कोई बड़ा आरोप न तो सरकार पर है और न ही खुद सीएम पर। आम जन के बीच मुख्यमंत्री का ये सरल व्यक्तित्व और ईमानदार छवि उनकी असल ताकत है जिसका तोड़ विरोधियों के पास नहीं है। इस पर हिमाचल भाजपा का शांता गुट अब एक किस्म से जयराम गुट हो चूका है। जयराम ठाकुर बेशक अपना अलग मजबूत धड़ा बनाने में कामयाब नहीं हो सके लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के निष्ठावानों के बुते उनकी ताकत कमतर भी नहीं है।