25 विधानसभा हलकों से सिर्फ एक मंत्री
25 विधानसभा हलकों से सिर्फ एक मंत्री
राजयोग उसका जिसे मिले कांगड़ा और मंडी का साथ
सत्ताधारी कांग्रेस के हिस्से में है 11 सीटें
क्या कांगड़ा में कांग्रेस की खींचतान डाल रही अड़ंगा !
भाजपा में मंडी को भरपूर मान, कांगड़ा दिखे हल्का
मंडी में कांग्रेस को चाहिए व्यवस्था परिवर्तन
12 जिलों में 68 विधानसभा सीटें और 25 सीटें सिर्फ दो जिलों से। यानी करीब 37 प्रतिशत सीटें इन्हीं दो जिलों से है। इसीलिए कहते है हिमाचल प्रदेश में उसका राजयोग पक्का समझो जिसे कांगड़ा और मंडी का साथ मिल जाएँ। इन दो जिलों की चाल, सत्ता की ताल बदल देती है। 15 सीटों वाला जिला कांगड़ा और 10 सीटों वाला जिला मंडी सियासी दलों को मजबूर भी कर सकते है और मजबूत भी। ये ही कारण है की इन्हें सत्ता में भागीदारी भी उसी लिहाज से मिलती रही है।
2022 के विधानसभा चुनाव में जिला कांगड़ा कांग्रेस के साथ गया और पार्टी 10 सीटें ले आई। वहीँ मंडी ने भाजपा और जयराम ठाकुर का मान रखा और दस में से नौ सीटों पर भाजपा को शानदार जीत मिली। दोनों जिलों की 25 में से 11 पर कांग्रेस को जीत मिली। खेर सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस की सरकार बन गई। मंडी ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया लेकिन कांगड़ा का भरपूर प्यार मिला। सिलसिलेवार दोनों ज़िलों की बात करते है और शुरुआत करते है ज्यादा सियासी वजन वाले जिला कांगड़ा से।
कांगड़ा को जिस सियासी अधिमान की अपेक्षा थी वो अब तक नहीं मिला, कैबिनेट में इसका वजन अब तक हल्का है। कांगड़ा के हिस्से में अब तक सिर्फ एक मंत्री पद आया है। कैबिनेट में तीन स्थान खाली है और जाहिर है इसमें कांगड़ा का भी हिस्सा होगा, लेकिन जो मंत्रिपद पांच साल के लिए मिल सकते थे अब चार साल के लिए मिलेंगे, या उससे थोड़ा कम ज्यादा। जाहिर सी बात है कैबिनेट के चेहरे तय करने में कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान अड़ंगा डाल रही है, जिसका खमियाजा कांगड़ा को भुगतना पड़ रहा है। दूसरा सवाल ये भी है कि क्या कांगड़ा में वजनदार नेता नहीं रहे जो जिला के हक की बात रखे। जीएस बाली के रहते कांगड़ा का दावा सीएम पद के लिए था लेकिन अब हालात ये है कि मंत्रिपद के लिए भी कांगड़ा तरस गया है। दूसरा बड़ा नाम सुधीर शर्मा भी पार्टी के भीतरी संतुलन में अब तक कतार में ही है। वीरभद्र सरकार के समय सुधीर और स्व बाली, दोनों ही नेता सियासी मोर्चे पर वॉयलेंट रहते थे, अब बाली रहे नहीं और सुधीर साइलेंट है। दिग्गज ओबीसी नेता चौधरी चंद्र कुमार कांगड़ा से एकलौते मंत्री है, पर उनके जूते में भी उनके पुत्र और पूर्व विधायक नीरज भारती का पांव नहीं पड़ रहा। यानी मंत्री के घर में भी असंतोष है। जिला से दो सीपीएस बनाये गए है मगर ये सीपीएस रहेंगे या नहीं ये भी कोर्ट को तय करना है। आरएस बाली को जरूर कैबिनेट रैंक दिया गया है। इनके अलावा यादविंद्र गोमा, संजय रतन, भवानी पठानिया, मलेंद्र राजन और केवल पठानिया भी अपने अपने हलकों की सियासत में सिमित है। दिलचस्प बात ये है कि जला कांगड़ा के ये दस विधायक चार अलग-अलग गुटों से है। इनमें से तीन गुट कभी साथ थे, अब इनके बिखराव ने इन्हें कमजोर कर दिया है। बहरहाल कांगड़ा को आश्वासन तो मिल रहे है और शायद जल्द मंत्री पद भी मिले, लेकिन इस विलम्ब से कांग्रेस को हासिल क्या होगा, ये बड़ा सवाल है। वहीँ पद देकर किसका कद बढ़ाया जाता है, पुरानी निष्ठाएं बरकारार रहती है या बदलती है, इस पर भी निगाह रहेगी।
बात भाजपा की करें तो भाजपा संगठन में भी कांगड़ा हल्का ही दीखता है। उम्मीद थी कि भाजपा का अगला प्रदेश अध्यक्ष जिला कांगड़ा से हो सकता है लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कांगड़ा से प्रदेश संगठन में एक महामंत्री है, वहीँ अन्य पदों में भी कांगड़ा को वैसी तवज्जो नहीं दिखती जैसी अपेक्षा थी। कांग्रेस की तरह ही यहाँ भाजपा में भी गुट है और गुटों में भी गुट है। 2022 के विधानसभा चुनाव में यहाँ भाजपा को सिर्फ चार सीट मिली थी, दो कैबिनेट मंत्री और संगठन के महामंत्री भी चुनाव हार गए थे। कांगड़ा में कमजोरी पार्टी के सत्ता से वनवास का बड़ा कारण बनी।
अब बात जिला मंडी की करते है। 2017 के विधानसभा चुनाव से ही मंडी भाजपा के साथ है। तब भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। वहीँ 2022 में भी कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली। भाजपा ने पांच साल मंडी को सीएम पद दिया और विपक्ष में आकर नेता प्रतिपक्ष का पद। यहाँ संकट कांग्रेस के समक्ष है। कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्गज चुनाव हार गए जिनमें सीएम पद के दावेदार कौल सिंह ठाकुर भी है। जिला में एकमात्र विधायक है धर्मपुर से चंद्रशेखर। ऐसे में यहाँ मंत्री पद की संभावना न के बराबर है। किन्तु चंद्रशेखर को किसी अहम पद पर एडजस्ट जरूर किया जा सकता है।
बहरहाल यहाँ भाजपा के लिए सब दुरुस्त है लेकिन 2017 और 2022 की पुर्नावृति न हो, इसके लिए कांग्रेस को मजबूत एक्शन प्लान की दरकार जरूर है। जिला मंडी में कांग्रेस के लिए आँतरिक व्यवस्था परिवर्तन समय की जरुरत है। मंत्रिपद न सही लेकिन मंडी को भागीदारी भरपूर देनी होगी।