दुनिया कोरोना वायरस और कांग्रेस 'छोड़ो ना' से संक्रमित
दुनिया पर कोरोना वायरस का संकट छाया है और कांग्रेस 'छोड़ो ना' वायरस से संक्रमित है। ये वायरस पार्टी के भीतर इस कदर घर कर गया है कि पार्टी खाली और खोखली होती जा रही है। हिमाचल जैसे कुछ राज्यों को छोड़ दे तो देश के अधिकांश राज्यों में न सिर्फ नेता पार्टी का साथ छोड़ रहे है बल्कि वोटर के लिए भी पार्टी अछूत सी होती जा रही है। उत्तर प्रदेश में पार्टी के वरिष्ठ नेता जितिन प्रसाद सबसे ताजा उदहारण है। गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे नेता पार्टी की नीतियों और नेतृत्व को लेकर मुखर हो रहे हैं। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की घोर फजीहत हुई है। पश्चिम बंगाल में तो पार्टी का खाता भी नहीं खुला। कांग्रेस की इस दुर्गति का प्रमुख कारण है कमजोर संगठन, पर जब नेतृत्व ही नहीं है तो संगठन कैसे मजबूत होगा। 3 जुलाई 2019 को राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, उसके बाद से करीब दो वर्ष बीत चुके है पर कांग्रेस अध्यक्ष तक नहीं चुन सकी। तब से सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई है। वर्तमान में जिस दौर से पार्टी गुजर रही है ,पार्टी की ऐसी दुर्दशा भी यकीनन इससे पहले नहीं हुई। जिस तरह कांग्रेस का पतन हो रहा है, उस लिहाज से पार्टी के भविष्य पर ही सवाल उठ रहे है। पुरे देश की कांग्रेस वेंटीलेटर पर नज़र आ रही है।
इसमें भी कोई संशय नहीं है कि कांग्रेस में इंटरनल डेमोक्रेसी खत्म सी हो चुकी है। कोई आवाज़ उठाये तो पार्टी में उसका रहना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में आलाकमान से असंतुष्ट नेता एक -एक करके पार्टी से अपनी राह अलग कर रहे है। शायद नेतृत्व परिवर्तन हो तो इस बीमारी से पार्टी को ईजाद मिल जाए लेकिन मानो कांग्रेस खुद ही भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना पूरा करने का संकल्प लिया हो। 135 साल के पार्टी के इतिहास पर गौर करें तो अधिकांश वक्त पार्टी की कमान नेहरू - गाँधी परिवार के हाथ में रही है।1919 में पहली बार मोतीलाल नेहरू पार्टी के अध्यक्ष बने थे, तब से अब तक शायद ही ऐसा कोई दौर आया हो जब कांग्रेस पूरी तरह नेहरू -गाँधी परिवार के वर्चस्व से बाहर निकली हो। पर कहते है समय बड़ा बलवान है। वर्ष 1919 में मोतीलाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे और अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि इसके ठीक सौ साल बाद 2019 में उनके वंशज राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा। इन सौ सालों में लगभग 42 वर्ष तक गांधी नेहरू परिवार ने ही कांग्रेस की सरदारी संभाली है और राहुल गाँधी एक अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद अंतरिम अध्यक्ष भी गांधी नेहरू परिवार से ही है। यदि आज़ादी के बाद के 72 वर्षों की बात करें तो इनमें से 37 वर्ष तक गांधी -नेहरू परिवार को ही को सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष रहा है। इतना ही नहीं इस दौरान करीब 38 वर्ष तक नेहरू- गांधी परिवार के सदस्यों ने बतौर प्रधानमंत्री देश की भागदौड़ संभाली है। देश को तीन प्रधानमंत्री देने वाला ये परिवार बीते पांच साल में सबसे बुरे राजनैतिक अनुभव से गुजरा है। लोकसभा चुनाव में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी उन परिवार का गढ़ माने जाने वाली अमेठी सीट भी नहीं बचा पाए। यहीं कारण है राहुल को अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा और अब पार्टी के भीतर बगावत के सुर उठने लगे है।
2014 से पहले कई दिग्गजों ने छोड़ी थी पार्टी
करीब ढाई दशक पहले जब कांग्रेस अपने बुरे दौर से गुजर रही थी तो कमान सोनिया के हाथ में आई। पर तब पार्टी में विद्रोह हो गया। उस दौर में कई दिग्गज पार्टी को अलविदा कह गए जिसका खामियाजा अब तक कांग्रेस भुगत रही है। इनमें शरद पवार भी शामिल थे। खेर सोनिया और नेहरू गांधी परिवार का जादू चला और पार्टी ने दस वर्ष सत्ता का सुख भी भोगा लेकिन संगठनात्मक तौर पर पार्टी दिन ब दिन बिखरती रही। पर कांग्रेस की असली दुर्दशा शुरू हुई 2013 के बाद से। तब चौधरी वीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत सिंह, रीता बहुगुणा जोशी, जगदम्बिका पाल सहित कई बड़े नाम कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। इतना ही नहीं पार्टी जगनमोहन रेड्डी और चंद्रशेखर राव को भी साथ रखने में नाकामयाब सिद्ध हुई। आज जगमोहन आंध्र प्रदेश की सत्ता पर काबिज है तो चंद्रशेखर राव 2014 से तेलंगाना के मुख्यमंत्री है। इन गलतियों से भी पार्टी ने सबक नहीं लिया। हालांकि इस बीच पार्टी की कमान युवा राहुल गांधी के हाथ में भी आई, लेकिन बतौर अध्यक्ष राहुल पूरी तरह विफल रहे। कांग्रेस को नेतागिरी की ज़रूरत थी, लेकिन राहुल के दौर में चमचागिरी हावी रही। बहरहाल पार्टी की कमान फिर उनकी मां सोनिया गांधी के पास है, पर बदला कुछ नहीं है।
गोवा और अरुणाचल ने जीतकर भी नहीं बनी थी सरकार
कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व पार्टी के इतिहास का सबसे कमजोर नेतृत्व दिख रहा है। इसका उदहारण है गोवा और अरुणाचल प्रदेश, जहाँ कांग्रेस चुनाव भी जीती लेकिन सरकार बनी भाजपा की। ऐसा मज़ाक पार्टी का शायद ही कभी उड़ा हो। फिर गांधी परिवार के ख़ास माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से रुक्सत कर गए और मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार भी ढेर हो गई। बावजूद इसके पार्टी सबक लेती नहीं दिख रही।
पंजाब और राजस्थान में भी घमासान
वर्तमान में देश के तीन राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री है, राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़। इनमें से राजस्थान और पंजाब में खींचतान कभी भी पार्टी को भारी पड़ सकती है। पंजाब में सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच की अंतर्कलह अब खुलकर सामने आ गई है। अगले साल शुरू में चुनाव होने है और पार्टी अभी झगडे सुलझाने में लगी है। सिद्धू पार्टी में ज्यादा पुराने नहीं है तो जाहिर है उन्हें तवज्जो दिए जाना पुराने कांग्रेसियों को रास नहीं आ रहा। हालांकि आलाकमान कप्तान को वर्तमान और सिद्धू को भविष्य का नेता बता रहा है, पर सवाल ये है कि भविष्य की चाह में पार्टी वर्तमान क्यों खराब कर रही है। दूसरा, पार्टी के पास प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ सहित कई ने नेता भी है जिन्हें भविष्य में बड़ा दायित्व दिया जा सके तो सिद्धू पर विशेष मेहरबानी क्यों ? इसी तरह राजस्थान में सचिन पायलट को लेकर भी तरह तरह के कयास लग रहे है। पिछली बार जब सचिन पायलट नाराज़ हुए थे तो किसी तरह पार्टी ने गहलोत सरकार को बचा लिया था। पायलट को आश्वासन दिया गया था और एक कमिटी बनाई गई थी। पर अब अहमद पटेल के निधन के बाद न उक्त कमिटी का कोई पता है और न ही राजस्थान में सचिन को पहले का मान - सम्मान मिलता दिख रहा है। वर्तमान में सचिन पायलट के पास न राजस्थान सरकार में और न संगठन में कोई महत्वपूर्ण ओहदा है और न ही केंद्र की राजनीति में में उनकी कोई भागीदारी दिख रही है। यानी सचिन पूरी तरह साइडलाइन है। ऐसे में हालात जल्द ठीक न हुए तो जल्द बगावत के सुर मुखर हो सकते है।
ये नेहरू-गांधी रहे अध्यक्ष ...
- मोतीलाल नेहरू 1919 से 1920 तक कांग्रेस अध्यक्ष बने।- वर्ष 1928 से 1929 तक एक बार फिर मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस की भागदौड़ संभाली।
-वर्ष 1929 से 1930 तक मोतीलाल नेहरू के पुत्र जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष रहे ।
-वर्ष 1936 और इसके बाद वर्ष 1937 में भी जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस की सरदारी संभाली।
-जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री रहते हुए वर्ष 1951 से 1952, वर्ष 1953 और वर्ष 1954 में भी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।
-जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी वर्ष 1959 में पहली बार कांग्रेस की अध्यक्ष बनी।
- इंदिरा गांधी ने वर्ष 1978 से 1983 तक और वर्ष 1984 में भी पार्टी का अध्यक्ष पद संभाला।
- तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी ने वर्ष 1985 से 1991 तक पार्टी की भागदौड़ संभाली। वर्ष 1991 में राजीव गांधी की भी हत्या कर दी गई थी।
- राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने वर्ष 1998 में पार्टी की भागदौड़ संभाली। वे वर्ष 2017 तक कांग्रेस की अध्यक्ष रही।
- 2017 में सोनिया व राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी पराजय के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला लिया था। अतः 3 जुलाई को उन्होंने आधिकारिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया।
- वर्तमान में सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष है।